'हमें इंसान तो समझिए'
Morale education can change scenarioअंग्रेजी में कहावत है कि 'चैरिटी बिगिंस एट होमÓ। अगर हम सोसाइटी में वूमेन की रेस्पेक्ट चाहते हैं तो बदलाव की शुरुआत अपने ही घर से करनी होगी। हम जब घर में महिलाओं को सम्मान देंगे तो बच्चों में भी संस्कार की भावना पैदा होगी। गैंगरेप जैसी घटनाएं गिरते मॉरल वैल्यूज और संस्कार को दर्शाती हैं। यह मानना है सिटी की प्रॉमिनेंट वूमेन का। करीब 13 दिनों तक जिंदगी के साथ जंग करने के बाद सैटरडे को 'दामिनीÓ हार गई। 'क्या दामिनी की मौत जाया चली जाएगीÓ या यह सोसाइटी को नई दिशा देने वाली साबित होगी।
'आई नेक्स्ट' ने अलग-अलग सेक्टर्स को बिलांग करने वाली वूमेन के साथ चर्चा के दौरान इस सवाल का जवाब पाने की कोशिश की। चर्चा में सभी गेस्ट्स ने संजीदगी से अपने विचार रखे। सभी ने पारिवारिक परिवेश में बदलाव को जिम्मेदार बताने के साथ ही दरिंदों पर लगाम लगाने के लिए कड़े कानून और सही तरीके से इम्प्लीमेंट कराने पर जोर दिया। एक बात सभी ने जरूर महसूस की कि महिलाओं को अपने राइट्स को लेकर और बोल्ड होना पड़ेगा। यह घटना समाजिक परिवर्तन में क्रांतिकारी नजीर बनेगी। जरूरत है कि हम योगदान दें। इससे पहले आईनेक्स्ट के सीजीएम एएन सिंह ने गेस्ट्स का वेल्कम कर चर्चा की शुरुआत की। आईनेक्स्ट के एडीटोरियल हेड धर्मेंद्र सिंह ने चर्चा का कोऑडिर्नेशन किया। अंत में दैनिक जागरण संपादकीय प्रभारी सदगुरु शरण ने सभी को धन्यवाद ज्ञापित किया। इस ऑकेजन पर दैनिक जागरण और आई नेक्स्ट के पीएसएम हेड अमनदीप और राजेश भी मौजूद रहे। हादसे ने पहली बार पूरे देश को एकजुट किया है, यह अच्छा है। पर जो सबसे ज्यादा जिम्मेदार है वह है ऐसे हादसों के लिए पुरुषों को मिलने वाली पैसिव परमीशन। इसके लिए वास्तव में दोषी तो समाज ही है। जरूरत है कि लड़की को भी इंसान समझा जाए। समाज की रक्षा के लिए बनाए गए पुलिस-प्रशासन को पॉलिटिकल प्रेशर से मुक्त किया जाए। ब्वॉयज में बचपन से ही महिलाओं के इज्जत का भाव पैदा किया जाए। दामिनी की कुर्बानी के बाद तो देश जिस व्यथा में है, उसे दूर करने को फास्ट ट्रैक कोर्ट की स्थापना हो। अपराधियों का केमिकल कास्टेरेशन किया जाना चाहिए। गैंगरेप को रेयरेस्ट ऑफ रेयर क्राइम में लाया जाना चाहिए।
जो भी हुआ, वह लोमहर्षक है। इसे बदलने के लिए सामाजिक परिवर्तन की जरूरत है। अपराधियों में डर पैदा किया जाना जरूरी है। बच्चों को मोरल वैल्यूज के लेशन पढ़ाने नहीं हैं, उन्हें उनकी लाइफ में इंप्लीमेंट कराना है। इसकी सबसे बड़ी जिम्मेदारी मदर की है। जरूरत है कि वह बच्चों से रिलेटेड हर पहलू पर नजर रखें. स्कूल, फ्रेंडस के साथ डेली एक्टिविटीज पर पेरेंट्स की नजर होनी जरूरी है। उन्हें महिलाओं की रेस्पेक्ट करना घर में ही सिखाया जाना चाहिए। बच्चों की गलत बात को तो बिल्कुल भी शह न दें, यही उन्हें गलत काम करने के लिए प्रेरित करती है। दामिनी की कुर्बानी के बाद तो माहौल को बदलना ही होगा। यही उस बेटी के लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी। यही नैतिक न्याय हो सकता है।
महिलाओं को समझना होगा कि वह भोग की वस्तु नहीं हैं। अपराधियों को ऐसी सजा मिलनी चाहिए, जो नजीर बनकर सामने आए। इसके लिए समाज में जागरूकता लानी भी बहुत जरूरी है। दरअसल, ऐसी घटनाओं के बाद गल्र्स को घर से लेकर कोर्ट तक संघर्ष ही झेलना पड़ता है। इसके लिए सिस्टम ऐसा बनाया जाना चाहिए कि न्याय के लिए संघर्ष न करना पड़े। गल्र्स को समाज के सामने सरेंडर होने के बजाए अपनी आवाज उठाने के लिए हिम्मत करनी चाहिए। दामिनी की कुर्बानी के बाद तो गल्र्स को इतना आत्मविश्वास जगाना होगा कि वह कहीं भी प्रताडि़त न की जाएं.
दरिंदगी की मेन वजह बच्चों में संस्कारों की कमी है। हम वास्तव में वेस्टर्न कल्चर में इतना ज्यादा ढल गए हैं कि अध्यात्मिकता का मजाक बनाया जाता है। जरूरत तो समाज को बदलने की है, पर शुरुआत घर से होगी। इसके लिए घर में ही महिलाओं क ो सम्मान देना जरूरी है। दिक्कत गल्र्स के कपड़ों में नहीं वरन समाज के नजरिए में है। बच्चों को पहली गलती पर ही शह देने की बजाए थप्पड़ मिलना चाहिए। ऐसा न होने पर ही महिलाओं के प्रति क्राइम बढ़ता जा रहा है। 'दामिनीÓ की कुर्बानी के बाद उभरे आक्रोश से निश्चित ही नई क्रांति आएगी। पर इस क्रांति क ो राजनीतिक रंग नहीं दिए जाने चाहिए, तभी समाज की भलाई हो सकती है.