-शिक्षकों की दलील, भारी शिक्षक कमी से जूझ रहे हैं सरकारी और एडेड स्कूल, कैसे निकले टॉपर्स

100 स्कूल, 121 करोड़ का बजट, 2027 शिक्षक, मेरिट शून्य

-जिले के टॉपर्स में से एक भी टॉपर सरकारी और एडेड स्कूल से नहीं

BAREILLY: यूपी बोर्ड के सरकारी स्कूल इस साल भी टॉपर्स देने में नाकाम रहे। हाईस्कूल व इंटरमीडिएट में जो भी टॉपर्स आए हैं वे प्राइवेट स्कूलों से हैं। ऐसे में राजकीय और एडेड स्कूलों में एजुकेशन की क्वालिटी सवालों के घेरे में आ गई है। जबकि सरकार डिस्ट्रिक्ट के क्00 स्कूलों पर हर साल क्ख्क् करोड़ रुपए खर्च करती है। स्थिति चिंताजनक है और यदि समय रहते इस पर कड़े कदम नहीं उठाए गए तो वह दिन दूर नहीं जब सरकारी स्कूलों में टीचर्स तो होंगे, लेकिन कक्षाएं खाली होंगी। हालांकि, माध्यमिक शिक्षा परिषद ने इस बाबत स्कूल को जवाब-तलब किया है।

टापर्स देने की नहीं रही कूबत

रिजल्ट से यह स्पष्ट है कि राजकीय व एडेड स्कूलों में टॉपर्स देने की कूबत नहीं रही। इसकी वजह पठन-पाठन की गुणवत्ता बेहतर न होना ही है और इसके लिए सीधे तौर पर टीचर्स ही जिम्मेदार हैं, जिनके कंधों पर स्टूडेंट्स को गुणवत्तापरक शिक्षा देने की जिम्मेदारी है। ऐसे में जरूरी होगा कि टीचर्स को जिम्मेदारी का अहसास दिलाया जाए। बल्कि, उन्हें जिम्मेदार बनाने के लिए कड़े नियम-कायदे भी बनाए जाएं।

टीचर्स की कमी कितनी जिम्मेदार

रिजल्ट खराब होने को लेकर स्कूल प्रबंधन अपनी जिम्मेदारी लेने की बजाय टीचर्स की कमी को बहाना बना रहे हैं। उनका कहना है कि स्कूलों में पिछले कई वर्षो से फ्0 पर्सेट टीचर्स के पद खाली हैं। ऐसे में, इसका असर एजुकेशन पर पड़ना स्वाभाविक है।

कौन तय करेगा जवाबदेही

एडेड स्कूलों पर स्कूल प्रबंधन और शासन दोनों का ही नियंत्रण होता है, लेकिन इनके शिक्षक दोनों ही संस्थाओं के सीधे नियंत्रण में नहीं हैं। चूंकि शिक्षण कार्य को लेकर शिक्षकों से कोई जवाबदेही तय नहीं है। ऐसे में स्कूल प्रबंधन भी इनसे सवाल-जवाब नहीं कर पाता है।

क्00 स्कूल, क्ख्क् करोड़ सालाना सरकारी स्कूलों में ख्0ख्7 शिक्षक हैं। जबकि हाईस्कूल व इंटरमीडिएट एग्जाम में इस साल ब्0 हजार स्टूडेंट्स अपीयर्ड हुए। बावजूद इसके रिजल्ट का आलम यह रहा कि यहां से एक भी टॉपर नहीं आए। जबकि प्राइवेट स्कूल में टॉप फोर रैंक वाले स्टूडेंट्स विद्या मंदिर से निकलकर आए हैं।

रैंक टॉपर स्कूल

क् अपूर्व सक्सेना भारत जी विद्या मंदिर इंटर कॉलेज, आंवला

ख् प्रखर सक्सेना व अमन कुमार जयनारायण विद्या मंदिर इंटर कॉलेज व एसडीएम विद्या मंदिर, मीरगंज

फ् प्रदीप कुमार एएसआईसी इंटर कॉलेज, नवाबगंज

ख्ख् सरकारी स्कूलों पर खर्च हो रहे क्म् करोड़

राजकीय हाईस्कूल और इंटर कॉलेज को मिलाकर कुल ख्ख् सरकारी स्कूल हैं। इन स्कूलों में पढ़ा रहे प्रिंसिपल समेत सहायक व एलटी ग्रेड टीचर की कुल संख्या ख्क्9 है। इन कुल ख्क्9 टीचर्स के सालाना वेतन के लिए सरकार क्म् करोड़ रुपया खर्च करती है। जबकि स्कूल स्टेशनरी, फर्नीचर, व दूसरे एक्स्ट्रा वेजेज के नाम पर दी जाने वाली मिनिमम राशि क् करोड़ रुपए है। इन ख्ख् स्कूलों से क्0वीं व क्ख्वीं की परीक्षा देने वाले स्टूडेंट्स की कुल संख्या भी मात्र 8000 ही है।

78 एडेड स्कूलों को 8ब् करोड़ ग्रांट

सरकारी सहायता राशि पाने वाले 78 स्कूलों को सालाना 8ब् करोड़ रुपए ग्रांट मिलती है। इस समय कुल क्808 टीचर्स एडेड स्कूलों में कार्यरत हैं। इतनी बड़ी राशि और सरकारी सहूलियत पाने वाले इस स्कूलों से इस साल क्0वीं व क्ख्वीं बोर्ड परीक्षा में कुल ख्0 हजार छात्र ने भाग लिया है। अफसोस की बात यह रही कि इनमें से एक भी स्कूल का स्टूडेंट टॉपर नहीं बन सका। इस्लामिया इंटर कॉलेज, मनोहर भूषण इंटर कॉलेज, साहू गोपीनाथ ग‌र्ल्स इंटर कॉलेज जैसे कुछ स्कूलों के बच्चों ने जगह बनाई है। लेकिन रेग्युलर टॉपर देने में ये स्कूल लगातार पिछले भ् सालों से फिसड्डी साबित हो रहे हैं।

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तो यह भी कारण हो सकते हैं

-सरकारी स्कूलों में जमकर छुट्टी होती है, ऐसे में ज्यादातर स्कूल अपना कोर्स ही पूरा नहीं करा पाते हैं।

-प्राइवेट स्कूलों में एक्स्ट्रा क्लास जैसी फैसेलिटी होती है, जबकि सरकारी स्कूलों में छुट्टी का मतलब छुट्टी होता है।

-प्राइवेट स्कूलों में टीचर्स की तरक्की क्लास के रिजल्ट के बेस पर होती है, जबकि सरकारी में ऐसा कोई नियम नहीं है।

-प्राइवेट स्कूलों में लैब, लाइब्रेरी जैसी अच्छी फैसिलिटी होती है, जबकि ज्यादातर सरकारी स्कूलों की हालत यह होती है कि इनका पता ही नहीं चलता है।

एडेड स्कूल के टीचर्स की जवाबदेही तय होनी चाहिए। जब टीचर्स पढ़ाएंगे नहीं तो अच्छा रिजल्ट कैसे आ सकता है। हालांकि इसके अलावा टीचर्स की कमी को भी दोषी मानते हैं।

प्रधानाचार्य परिषद के जिलाध्यक्ष सुरेश रस्तोगी

8वीं तक स्टूडेंट्स को फेल न किए जाने से दिक्कतें पैदा हुई हैं। 9वीं क्लास में एडमिशन लेने वाले ये स्टूडेंट्स एजुकेशनल रूप से कमजोर होते हैं। इसका असर बोर्ड के रिजल्ट पर पड़ता है। साथ ही इसकी एक दूसरी मुख्य वजह सरकारी स्कूलों में रिक्त शिक्षकों के पद हैं।

- सुरेश बाबू शर्मा, प्रांतीय अध्यक्ष-राजकीय शिक्षक संघ

फेल नहीं किए जाने से स्टूडेंट 8वीं पास कर लेते हैं, लेकिन इनका नॉलेज लेवल कम होता है। हाईस्कूल में ये इंटर्नल मा‌र्क्स से पास तो हो जाते हैं, लेकिन इंटर के रिजल्ट पर इसका स्वाभाविक असर पड़ता है। रही कसर मूल्यांकन की दोषपूर्ण प्रणाली पूरी कर देती है।

- मीरा प्रियदर्शनी, प्रिंसिपल-साहू गोपीनाथ ग‌र्ल्स इंटर कॉलेज

पिछले वर्षो में जीआईसी और जीजीआईसी से टॉपर निकले थे। इस साल ऐसा नहीं हुआ, जिसकी मुझे निराशा है। शिक्षकों की जवाबदेही तय करने और शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने पर काम किया जाएगा।

- आशुतोष भारद्वाज, डीआईओएस

Posted By: Inextlive