यह शुरुआती कदम है, आखिरी सफर नहीं
- उम्मीद के मुताबिक रिजल्ट न होने पर निराश न हो, फ्यूचर पर रहे फोकस्ड
- पेरेंट्स का अहम रोल, सपोर्ट करें, मोटिवेट करें और आगे की राह सुझाएBAREILLY: बोर्ड एग्जाम्स के रिजल्ट्स जारी होने का सिलसिला शुरू हो चुका है। एवरेज से लेकर मेरिटोरियस स्टूडेंट्स तक जबरदस्त तनाव के दौर से गुजर रहे हैं। किसी को पास होने की चिंता है तो कोई अपनी मेरिट को लेकर परेशान है। वहीं कई ऐसे भी हैं, जो इस चिंता में घुले जा रहे हैं कि उनके रिजल्ट पर पेरेंट्स और आस पड़ोस के लोगों का क्या रिएक्शन रहेगा। उन्हें कैसे औरों से कंपेयर किया जाएगा या फिर कम मार्क्स आने पर कहीं उनके लिए करियर के सारे दरवाजे बंद न हो जाएं। नाकामी का यह डर उन्हें कमजोर कर रहा है, जो कभी भी उन्हें नुकसान पहुंचा सकता है। ऐसे में पेरेंट्स और टीचर्स को एक बार फिर अपनी जिम्मेदारियों को समझने और उन्हें निभाने की जरूरत है।
बताएं यू आर द बेस्टबोर्ड एग्जाम्स में शामिल इन टीनएजर्स के लिए यह मुश्किल समय है और काफी सेंसेटिव भी। ऐसे में इस क्रूशिएल स्टेज में पेरेंट्स ही उनके लिए सबसे बड़ा संबल हैं। आपका बच्चा रिजल्ट में चाहे मेरिट में आए या नाकाम रहे, उन्हें हमेशा अहसास कराएं कि आप हर सिचुएशन में उनके साथ हैं। पेरेंट्स रिजल्ट वाले दिन बच्चों के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताने की कोशिश करें। उम्मीद के मुताबिक मार्क्स कम आए हो या रिजल्ट खराब हो गया हो यह सब नजरअंदाज कर बच्चों को सपोर्ट करें। उन्हें सेकेंड चांस की अहमियत समझा आगे के लिए मोटिवेट करें। उन्हें बताए कि हालात कितने खराब हो वह ही सबसे बेहतर हैं।
माइंडे सेट बदलें पेरेंट्स अमूमन आज भी ज्यादातर पेरेंट्स बच्चों के रिजल्ट को सोसाइटी में अपने मान-सम्मान से जोड़कर देखते हैं। यह गलत है। ऐसे पेरेंट्स को अपना यह माइंडसेट बदलने की जरूरत है। रिजल्ट वाले दिन कई स्टूडेंट्स परफॉर्मेस के मुताबिक नम्बर्स न आने पर हताश हो जाते हैं। कई तो रिजल्ट निकलने से पहले ही डिप्रेशन में जाने की शुरुआती स्टेज पर होते हैं, जो कई बार सुसाइडल टेंडेंसी की ओर ले जाता है। ऐसे में पेरेंट्स सबसे पहले खुद को संतुलित करें। रिजल्ट खराब होने पर बच्चों को कतई डांटे नहीं। स्टूडेंट्स की गल्तियों पर बात की जा सकती है पर उन्हें इनसल्ट महसूस न कराएं। उन्हें दूसरों के बच्चों से कंपेयर बिल्कुल न करें। स्टूडेंट्स भी बनें प्रैक्टिकलयह सच है कि रिजल्ट के समय स्टूडेंट्स पर फियर फैक्टर काफी हावी रहता है। कम मार्क्स या फेल हो जाना उन्हें बुरी तरह अंदर तक हर्ट भी करता है। साल भर की मेहनत खराब होता देख ऐसा होना नॉर्मल भी है। बावजूद इसके स्टूडेंट्स को इस कठिन समय में इमोशनल होने के बजाए प्रैक्टिकली और समझदारी से काम लेना होगा। स्टूडेंट्स अपने से लगाई उम्मीदों को रियलिटी ग्राउंड पर चेक करें। वह समझे कि यह महज एक बोर्ड एग्जाम्स रिजल्ट है। अभी जिंदगी के कई बड़े और कड़े इम्तिहान में शामिल होना बाकी है। स्टूडेंट्स भी समझे कि मार्क्स ही सब कुछ नहीं होते, हुनर और मेहनत ही कामयाबी के दरवाजे खोलती है। वह खुद को मोटिवेट करें।
अपनाएं एक्सपर्ट्स के सुझाव क्- रिजल्ट वाले दिन स्टूडेंट्स के रवैये पर रखें नजर। ख्- जरा भी शक होने पर उन्हें रिजल्ट देखने अकेले न भेजे, साथ जाएं। फ्- रिजल्ट खराब होने पर डांटे नहीं, दूसरों से कंपेयर बिल्कुल न करें। ब्- रिजल्ट से पहले पेरेंट्स भी मानसिक तौर पर पॉजिटीव रुख अपनाएं। भ्- सिर्फ बच्चों की इच्छाओं पर बात करें, अपनी बातें न करें। म्- बच्चों को दोषी न ठहराएं, उनके मजबूत पहलू पर जरूर बात करें।7- रिजल्ट के बारे में चर्चा न करें, घर पर माहौल भी नॉर्मल बनाए।
8- स्टूडेंट्स अपनी परेशानी शेयर न कर सकें तो डायरी में लिखें। 9- उम्मीदों के मुताबिक नम्बर्स न आने पर आगे के लिए बेहतर करें। क्0- पेरेंट्स बच्चों को आगे आने वाले मौकों के लिए मोटिवेट करें। रिजल्ट के दौरान बच्चों के बिहेवियर पर नजर रखें। शक हो तो उनके साथ ही रहे। रिजल्ट खराब होने पर पेरेंट्स बच्चों को डांटे नहीं और न ही इंसल्ट करें। उन्हें सेकेंड चांस की अहमियत समझाएं। - मीना गुप्ता, कांउसलर स्टूडेंट्स अपने रिजल्ट के अलावा दूसरों से कंपेयर किए जाने को लेकर भी डिप्रेशन में आ जाते हैं। ऐसे में पेरेंट्स उन्हें ज्यादा समय दें। उनकी मजबूत पहलू पर डिस्कस कर मोटिवेट करें। बच्चों को हमेशा साथ होने का अहसास कराएं। - डॉ। सुविधा शर्मा, सीनियर सायकोलोजिस्ट