Bareilly: डॉक्टर का बेटा डॉक्टर सीए का बेटा सीए तो नेता का बेटा नेता क्यों नहीं? बात सिर्फ राहुल अखिलेश या जयंत की नहीं है हर जगह तमाम ऐसे परिवार हैैं जो कई पीढिय़ों से इलाके की सियासत को संभाल रहे हैं. दूसरी ओर ऐसे लोग भी कम नहीं है जिनकी फैमिली का दूर-दूर तक सियासत से कोई सरोकार नहीं रहा लेकिन उन्होंने अपने दम पर पॉलिटिक्स में जगह बनाई है...

बरेली
तीन पीढिय़ों से एमएलए
शहजिल इस्लाम के परिवार के सदस्य पीढ़ी दर पीढ़ी पॉलिटिक्स में है। शहजिल तीसरी अपने परिवार में तीसरी पीढ़ी है। 2002 में आरयू से बीबीए किया और पॉलिटिक्स में कदम रखा। शहजिल ने बताया कि वह अपने पिता और बाबा से काफी प्रभावित है। उनसे ही पॉलिटिक्स का ककहरा सीखा। पॉलिटिक्स की भाषा सीखने में कोई दिक्कत नहीं हुई। शहजिल का कहना है कि मैंने अपने दादाजी और पिता से यही सीखा है कि केवल नए लोगों को ही जीत या हार से कोई फर्क पड़ता हो। जनता की सेवा करने वालों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
शहजिल इस्लाम,इंडीपेंडेंट कंडीडेट
(2002 से शुरूआत, दो बार विधायक)
पिता : इस्लाम साबिर
(1989 से अब तक पॉलिटिक्स में, बीएसपी से)
दादाजी : अशफाक अहमद
(1969 से 2002 तक पांच बार विधायक, कांग्रेस)

बरेली
साधारण चेहरा, असाधारण सफर
संतोष गंगवार काफी साधारण परिवार से बिलांग करते हैं। उनके परिवार में कोई भी पालिटिक्स से जुड़ा नहीं था। वे अपने परिवार के इकलौता ऐसा सदस्य हैं जो पालिटिक्स में आए। उनके पिता स्वर्गीय रामलाल जी आयुर्वेदिक डॉक्टर थे। उनकी कुतुबखाने के पास एक मेडिकल शॉप भी थी, जो आज भी है। उन्होंने पीलीभीत से अपनी डॉक्टरी की पढाई पूरी की थी। वे ट्यूलिया गांव के रहने वाले हैं। उन्होंने बीएससी के बाद एमएससी नहीं किया। पिता की मौत के बाद उन्होंने बरेली कॉलेज से एलएलबी किया ताकि रेग्यूलर क्लास अटैंड न करना पड़े। इमरजेंसी में बंद लोगों केस लड़े। इस दौरान वो भी जेल चले गए। जहां उनकी मुलाकात कई नेताओं से हुई। 1981 में हुए उपचुनाव के दौरान उन्होंने पहला चुनाव लड़ा। जीते भी। तब से राजनीति में सक्रिय हो गए और 1998-99 में वे दो बार केंद्रीय मंत्री रहे और एक बार 2008 में वे पीएसी के चेयरमैन भी बने।

आगरा
घर में रहा राजनीतिक माहौल
राजनीति इन्हें विरासत में मिली है। इसी राजनीति के पेशे को वह अब आगे बढ़ाने में लगे हैं। आगरा के उत्तरी विधानसभा सीट से कांग्रेस-रालोद प्रत्याशी सुमित गुप्ता विभव ने कहा कि मेरे दादा जी और ताऊजी सक्रिय राजनीति में रहे हैं। जिसके कारण घर में राजनीतिक माहौल में पला-बढ़ा। उन्होंने बताया दादा जी कांग्रेस से लंबे समय तक विधायक रहे। प्रदेश सरकार में मंत्री भी रहे। मथुरा रिफाइनरी को शिफ्ट न होने देने को लेकर उनकी काफी महत्वपूर्ण भूमिका रही। ताऊजी सतीश चंद्र गुप्ता भी कांग्रेस पार्टी से पूर्वी सीट पर विधायक रहे। अब मैं इस परंपरा को आगे बढ़ा रहा हूं। सुमित के प्रेरणादायी राजीव गांधी है।
सुमित गुप्ता विभव
कांग्रेस-रालोद प्रत्याशी
(वर्ष 2005 से सक्रिय)
दादा जी
स्वर्गीय देवकी नंदन विभव (1964 से राजनीति, 1971-76 तक प्रदेश सरकार में मंत्री)
ताऊजी
सतीश चंद्र गुप्ता
(कांग्रेस से विधायक)
आगरा
राजनीति की दुनिया में पहला कदम
राजनीति को अब तक सिर्फ दूर से ही देखा था। परिवार में कोई भी राजनीतिक पृष्ठभूमि से नहीं रहा है। हालांकि, जनता की सेवा में वह हमेशा से ही तत्पर रहे हैं। आगरा के दक्षिण विधानसभा सीट से कांग्रेस-रालोद प्रत्याशी नजीर अहमद अब राजनीति के गलियारों में जाना पहचाना नाम हो गया है। नजीर बिजनेस से जुड़े हुए हैं। लेकिन, उनकी कार्यशैली को देखकर ऐसा नहीं लगता कि राजनीति उनसे अछूती रही हो। काम करने का उनका अपना स्टाइल है। ईमानदारी और निष्पक्षता जैसे उसूलों को लेकर वह राजनीति की दुनिया में आए हैं। नजीर अहमद का कहना है कि बिजनेस में पारदर्शिता रखने पर बिजनेस को सफल बनाया जा सकता है। अगर पारदर्शिता रखी जाए तो राजनीति में भी नई ऊंचाइयां दी जा सकती हैं। मैं तो इसी उसूल पर राजनीति में आया हूं। इसी का ही नतीजा है कि चुनाव प्रचार के दौरान कोई ये नहीं कह सकता कि मेरा कोई राजनीतिक बैकग्राउंड नहीं है।
लखनऊ
पिता के नक्शे-कदम पर
यह हैं आशुतोष टंडन उर्फ गोपाल जी। यह लालजी टंडन के बड़े बेटे हैं। लालजी टंडन इस समय लखनऊ के सांसद हैं और अब गोपाल जी लखनऊ उत्तर विधान सभा सीट के लिए चुनाव मैदान में हैं। गोपाल जी को राजनीतिक विरासत बचपन से ही मिली है। घर पर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक के नेताओं का आना-जाना था। ग्रेजुएशन करने के बाद वह भी पॉलिटिक्स में दखल रखने लगे। संगठन में भी पद संभाला और अब पहली बार वह चुनावी मैदान में हैं। गोपाल जी के मुताबिक, केवल नेता पुत्र होने के नाते उन्हें टिकट नहीं मिला है बल्कि क्षेत्र में वह कई सालों से जनता की समस्याओं को सुनते थे और इसी आधार पर पार्टी ने उन्हें टिकट दिया है। लालजी टंडन 78 से 84 और 90- 96 तक यूपी स्टेट लेजिस्लेटिव काउंसिल के मेम्बर, 1991-92 में मिनिस्टर ऑफ स्टेट, 1996- 2009 तक तीन बार विधायक, 1997 में आवास एवं नगर विकास मंत्री, 1997 से 2002 तक विधानसभा के लीडर ऑफ हाउस, 1999- 2002 तक आवास एवं नगर विकास मंत्री, 2002- 03 आवास, नगर विकास और पर्यटन मंत्री, 2003- 2007 लीडर ऑफ अपोजीशन, 2009 में 15 वीं लोकसभा के सदस्य, 6 अगस्त 2009 से अब तक कमेटी ऑन एस्टीमेट्स के मेम्बर हैं।
लखनऊ
राजनीति से नहीं रहा संबंध
लखनऊ उत्तर विधानसभा क्षेत्र में सपा प्रत्याशी अभिषेक मिश्रा के परिवार का इसके पहले राजनीति से कोई नाता नही था। उनका दावा है कि वह इस समय इलेक्शन लड़ रहे सभी कैंडीडेंट्स में मोस्ट एजूकेटेड हैं। उन्होंने बताया कि शुरुआती पढ़ाई सेंट फ्रांसिस से हुई। इसके बाद एलयू से ग्रेजुएशन किया। फिर इंग्लैंड में मास्टर इन मैनेजमेंट करने के बाद कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से उन्होंने एमफिल किया है। कैम्ब्रिज और एमआईटी के प्रोग्राम के तहत पीएचडी किया। स्कॉलरशिप और मेडल के ढेर लगे हैं। वे अहमदाबाद आईआईएम में प्रोफेसर थे और वहां इस्तीफा देने के बाद चुनावी मैदान में उतरे हैं। अभिषेक के मुताबिक, पब्लिक यह नहीं देखती है कि किसी प्रत्याशी का पॉलिटिकल बैकग्राउंड है या नहीं, वह भले ही राजनीति में नए उतरे हैं लेकिन जनता भी यह समझ रही है कि एक पढ़ा-लिखा प्रत्याशी जीत कर आए। मेरी एजूकेशन ही मेरा प्लस प्वाइंट है। अभिषेक के पिता जयशंकर मिश्रा 1980 बैच के आईएएस ऑफीसर हैं। दो बार वह लखनऊ के डीएम के अलावा कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे हैं।
मेरठ
विरासत की कुर्सी
मेरठ के किठौर विधानसभा सीट से  शाहीद मंजूर तीसरी बार विधायक का चुनाव लड़ रहे हैं.  इससे पहले वो दो बार इस सीट से जीत चुके हैं। घर में उन्हें राजनीतिक माहौल बना बनाया मिला। उनके पिता मंजूर अहमद वैसे तो शहर से कांग्रेस पार्टी की ओर से 1977 और 1980 में विधायक रह चुके हैं। लेकिन शाहिद मंजूर ने अपनी जड़ों को अपने स्थानीय कस्बे किठौर में जमाया और और समाजवादी पार्टी की ओर से अपनी उम्मीदवारी पेश की। पॉलिटिकल फैमिली और जमीन से जुड़े होने का उन्हें फायदा मिला। अब शाहिद मंजूर के बेटे नवाजिश भी अपने पिता के नक्शे कदम पर चल निकले हैं। भले वो पार्टी की ओर से चुनाव न लड़ रहे हों पर अपने पिता के साथ पूरी तरह से एक्टिव हैं। पिता के लिए वोट मांगते हैं, सभा करते हैं। उम्मीद है जल्द ही अपने पिता की तरह राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाएंगे।
शाहिद मंजूर, दो बार से लगातार विधायक
पिता: मंजूर अहमद, 1977 और 1980 में लगातार कांग्रेस से विधायक
मेरठ
भाग्य का टिकट
येभाग्य ही है कि 36 साल से वकालत कर रहे समाजवादी पार्टी की ओर से कैंट विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे अनिल बख्शी को टिकट मिल गया। इनके परिवार से कभी कोई पॉलिटीशियन नहीं रहा। बातचीत में बताते हैं कि मेरा और वो मेरे परिवार का कभी पॉलिटिक्स से लेना-देना नहीं रहा है। यहां तक वो अपने परिवार में अकेले लॉयर भी हैं और यूपी बार काउंसिल के मेंबर चुने गए हैं। उन्होंने कहा कि मैंने कभी पॉलिटिक्स के बारे में नहीं सोचा था, लेकिन पार्टी के बड़े नेताओं ने संपर्क किया और जल्द ही मैंने पार्टी ज्वाइन कर ली। उसके बाद आप सब ही जानते हैं। अपने बेटों को पॉलिटिक्स में लाने के बारे में कहते हैं कि ये उनकी मर्जी पर डिपेंड करता है। वैसे वो बीटेक एमबीए हैं और उनकी लाइफ वेल सेटेल्ड है।
कानपुर
वर्कर से एमएलए तक का सफर
अजय कपूर का फैमिली बैकग्र्राउंड पॉलीटिकल नही हैं। मगर लगातार पिछले दो असेंबली इलेक्शन में उन्होंने गोविंद नगर सीट से चुनाव जीता है। तीसरी बार वह फिर मैदान में हैं। हालांकि परिसीमन बदलने के कारण इस बार वो गोविंद नगर विधानसभा के ही हिस्से में बनी किदवई नगर असेंबली सीट से भाग्य आजमा रहे हैैं। अजय कपूर ने अपने पॉलिटिकल कैरियर की शुरुआत 1984 में कांग्रेस की एनएसयूआई विंग के वर्कर के रूप में की। उनके इंडस्ट्रिलिस्ट पिता कृष्ण गोपाल कपूर का पॉलीटिक्स से दूर-दूर तक वास्ता नहीं था। अजय कपूर ने 1989 में नगर निगम के इलेक्शन में भाग्य आजमाते हुए जीत हासिल की। इस जीत का तोहफा पार्टी ने 1991 के असेंबली इलेक्शन में टिकट देकर दिया। मगर 91 व 93 में किस्मत ने साथ नहीं दिया और वह हार गए 2002 के असेंबली इलेक्शन में गोविंद नगर से जीत हासिल की। 2007 के इलेक्शन में भी जीते। इस बार भी वह मैदान में हैं।
कानपुर
माता-पिता से सीखी पॉलिटिक्स
विधानसभा चुनाव में कांग्र्रेस के टिकट पर अपनी किस्मत आजमा रहे संजीव दरियाबादी की फैमिली बैकग्र्राउंग पॉलिटिकल है। उनके पिता कारपोरेटर थे जबकि मां एमएलए रह चुकी हैं। संजीव दरियावादी दो बार एमएलए चुने जा चुके हैं, और तीसरी बार फिर मैदान में हैं। संजीव दरियाबादी के पिता लेट लालता प्रसाद दरियाबादी 60-70 के दशक में दो बार कारपोरेटर चुने गए। संजीव की मां कमला दरियाबादी भी पॉलीटिक्स में सक्रिय थीं। वर्ष 1980 में सीसामऊ असेंबली सीट से इलेक्शन जीती। 1984 में हुए इलेक्शन में वह लगातार दूसरी बार एमएलए चुनी गई.  संजीव दरियाबादी वर्ष 2002 व 2007 में सीसामऊ असेंबली सीट से इलेक्शन जीते। वर्ष 2012 के इलेक्शन में भी अपनी पैत्रक सीट सीसामऊ से किस्मत आजमा रहे है।
संजीव दरियाबादी
(2002 व 2007 में लगातार एमएलए)
पिता: लालता प्रसाद दरियाबादी
(60-70 के दशक में दो बार कारपोरेटर)
माता: कमला दरियाबादी
(1980 और 1984 में लगातार दो बार जीती)
मुसलमानों का कोटा बढ़ाने वाला बयान जानबूझकर नहीं दिया था, बल्कि जुबान फिसल गई थी।
-बेनी प्रसाद वर्मा
चुनाव आयोग ने बेनी को नोटिस देकर सही कदम उठाया है। कांग्र्रेस के नेता लगातार संवैधानिक संस्थाओं की धज्जियां उड़ा रहे हैं। उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।
-विजय बहादुर पाठक
सूबे में बाइस सालों से विकास की गाड़ी फंसी पड़ी है, और उसे आगे बढ़ाने का वक्त आ गया है। मैं यूपी के विकास का सपना दिन-रात देखता हूं।
-राहुल गांधी

 

Posted By: Inextlive