- नगर निगम से कुछ ही मीटर की दूरी पर स्थित हूं

- जिम्मेदारों को भी मेरे हालात पर तरस नहीं आता

- टूटा गेट, गंदगी और कूड़ा ही है मेरी पहचान

BAREILLY: मेरी पैदाइश की सही तारीख तो मेरे बनाने वालों को भी अब याद नहीं। क्यों बनाया गया यह सवाल तो अब मुझे भी कचोटता है। मुझे बनाने वाला नगर निगम बस चंद कदम की दूरी पर बसा है। जहां दूर दूर से आए लोगों का तांता लगा रहता है। अपनी तकलीफें बताने को। उनमें से कई पर सुनवाई भी होती है, लेकिन मेरी आपबीती सुनने को उनके पास समय नहीं। न ही मेरे जख्मों को देखने की उनकी कभी कोई ख्वाहिश रही। तकलीफ इतनी ही होती तो सह लेता पर जिस शख्स के नाम पर मुझे बनाया उसके कद और कद्र की भी परवाह न की। दुनिया भर में भारत के लिए शोहरत कमाने वाले उस योगी को बरेली में ही बेइज्जत किया जा रहा। मेरी पहचान स्वामी विवेकानंद पार्क। अपनी किस्मत पर रोता हूं। अयूब खां चौराहे से सटा, गंदा, बर्बाद और अपनों से उपेक्षित भी और अपमानित भी।

गेट से शुरू मेरी बदहाली

मेरी बदकिस्मती की शुरुआत गेट से ही हो जाती है, जो असल में बीते कई साल से है ही नहीं। गंदी बजबजाती नाली और कूड़ा ही बिना गेट वाली एंट्री पर गर्मजोशी से स्वागत करते मिल जाएंगे। थोड़ा और अंदर आते ही मेरी सजावट पर किया गया एक एक काम खुद अपनी कहानी बयां कर देता है। दीवार से गिर रहा प्लास्टर, टूटी रेलिंग और गंदगी मेरी खूबसूरत तस्वीर का अहम हिस्सा है, जिसे बरकरार रखने में निगम ने जी जान से कोशिश की। उनका कभी कभार आकर देख भर जाना मेरी इस हालत को साल दर साल बनाए रखता है।

इन्हें शर्म नहीं, खुद पर हूं शर्मिन्दा

जिस देश में स्वामी विवेकानंद की जन्मतिथि को युवा दिवस के तौर पर मनाकर उन्हें पूजा जाता हो उसी योगी को इस तीन दीवारी में सिवा अपमान के कुछ न मिलता। मेरे अंदर कदम रखते ही नथुनों में इंसानी गंदगी की गंध भर जाती है। दूर दिन के उजाले में ही उस महान योगी की मूर्ति के सामने लोग खुद को हल्का करने में शर्म नहीं करते। रात को यह शर्म संकोच अपना पूरा चोला उतार फेंकती है। स्याह अंधेरे में कई बार यहां शराब के जाम छलकते हैं। मेरे अपनों ने मेरे हाल पर पहले ही छोड़ दिया, लेकिन इंसानों की ऐसी हरकतों पर मैं खुद अपने नाम पर शि1र्मन्दा हूं।

निगम से नजदीक, दया से दूर

यूं तो बरेली में लगभग हर भाई दुर्दशा का ऐसा ही दंश झेल रहे हैं। लेकिन मैं इकलौता ऐसा पार्क हूं, जो निगम से इतनी नजदीकी के बावजूद उसकी दया से रहम से कोसों दूर रहा। शहर में अतिक्रमण के खिलाफ मुहिम चलाने वाले मेरे अपने मुझे एनक्रोचमेंट की बाड़ से बचा न सकें। शहर की सड़कों को उजाला देने वाले मेरे परिजन मेरी दोनों खराब लाइट सही कराने से दूर रहे। उठो, जागो और बढ़ो उस महान योगी की मूर्ति पर लिखे उसके यह वचन धुधंला कर मिटने लगे हैं। जैसे निगम की मेरे लिए अनदेखी देख शर्म के मारे खुद को छुपा लेना चाह रहे हो।

ख्0 साल से पार्क की ऐसी ही बदहाली देख रहा हूं। पार्क की हालत बेहद खराब है। जो दो चार पेड़ दिख रहे हैं वह हम लोगों ने मिलकर लगाए। साथ ही पानी का भी इंतजाम किया।

- सरबजीत सिंह, टैक्सी ड्राइवर

अब तो पार्क में जाने लायक हालत है पहले तो हालात बदतर थे। हमने थोड़ी गंदगी हटाई, लेकिन गंदगी अब भी है। निगम कुछ नहीं करता। निगम कभी कभी आकर रंगाई पुताई भर कर देता है।

- प्रेम महेश्वरी, लोकल

मैंने पिछले क्भ् साल में इस पार्क की हालत कभी अच्छी नहीं देखी। साल में एकाध बार विवेकानंद जी की जयंती पर कुछ साफ सफाई हो जाती है। गंदगी की वजह से बदबूदार हो गया है पार्क।

- लोकेश कुमार, लोकल

Posted By: Inextlive