एआई आज के समय का बहुत ही ट्रेंडिंग टॉपिक है. कहा जाता हैै कि नई चीज को एडॉप्ट करने में लोगों को समय लगता है. इसके कई नुकसान हैं तो कई फायदे भी.

बरेली (ब्यूरो)। एआई आज के समय का बहुत ही ट्रेंडिंग टॉपिक है। कहा जाता हैै कि नई चीज को एडॉप्ट करने में लोगों को समय लगता है। इसके कई नुकसान हैं तो कई फायदे भी। क्योंकि इसके कई नुकसान हैं तो कई फायदे भी। एआई भले ही हमारे जीवन को सरल कर देगा पर कई नुकसान भी दे रहा हैै। टेक्नोलॉजी का एक्सेज यूज लोगों को मेंटली और फिजकली इल बना देता है। इसका सबसे बड़ा उदहारण मोबाइल फोन व वीडियो गेम्स आदि हैं। इस टॉपिक पर बात करने के लिए दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने एक ट्यूजडे को परिचर्चा का आयोजन किया। इसमें एआई हमारी मैमोरी पर क्या असर डाल रही है और आगे क्या डालेगी, इस पर चर्चा की गई।

कर रहा डोमिनेट
इस अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित जिला अस्पताल में तैनात साइकोलॉजिस्ट खुशअदा ने कहा कि 21वीं सदी में ह्यूमन की मदद के लिए एआई तेजी से उभर रहा है। जैसे-जैसे चीजें एडवांस होती जा रही हैं, लोग लेजी होते जा रहे हैैं। उनका अटेंशन स्पैन कम होता जा रहा है। एक स्टडी के अनुसार लोगों का लिसनिंग स्पैन पहले 30 सेकेंड था, जो घट कर आठ सेकंड हो गया हैै। लोगों को हर चीज के लिए इंस्टेंट ग्रेटिफिकेशन चाहिए। अटेंशन स्पैन कम होने से लोगों में प्रोडक्टिविटी भी कम होती जा रही है। अभी तो फील्ड में एआई का छोटा सा भाग ही सामने आया हैैं और लोगों में इसका क्रेज तेजी से बढ़ता जा रहा हैै। यह ह्यूमन फीलिंग को कैलकुलेट कर उन्हें डोमिनेट कर रहा है। इसका सबसे बड़ा एग्जाम्पल ऑनलाइन शॉपिंग है। एक साइट पर कुछ सर्च करने से हर साइट पर इसका इफैक्ट दिखता है।

बढ़ रही निर्भरता
उनका कहना था कि हयूमन साइकोलॉजी होती है कि वे चीजों को जल्द अडॉप्ट करते है, चीजों को जल्द लर्न करते हैैं और उसे प्रॉसेस करने की कोशिश करते हैं, लेकिन यह एआई में यह प्रजेंंट नहीं है। एआई डाटा पर वर्क करता है। जितना डाटा उसमें फिल किया जाता हैै, वह उस पर वर्क करता है। लोग पूरी तरह से मशीन पर डिपेंडेंट होते जा रहे है। उन्होंने कहा कि क्रिएटिविटी जैसी चीजें एआई के आने के बाद लोगों के अंदर से कम हो जाएंगी। लोगों के अंदर का अर्टिस्टिक वर्क खत्म होता जा रहा है। लोग हर चीज के लिए चैट जीपीटी कर रहे हैैं। यह भले ही लोगों की ऊपरी नॉलेज के लिए हेल्पफुल रहेगा, लेकिन लोग इस पर पूरी तरह निर्भर होते जा रहे हैैं। उन का कहना था कि एआई के आने से लोगों की क्रिएटिविटी पर गहरा असर पड़ेगा। लोग ज्यादा रिलैक्स हो जाएंगे और अपनी बातों को खुल कर एक्सप्रेस नहीं करेंगे। सब कुछ मशीन बेस्ड हो जाएगा। पहले के समय में लोग ज्यादा से ज्यादा इंटरएक्टिव होने की कोशिश करते थे, लेकिन मोबाइल भी एआई का ही एक रूप है। जिसका इस्तेमाल तेजी से हो रहा है।

क्या पड़ रहा है असर
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रोफेसर यश पाल सिंह ने कहा कि किसी भी नई चीज के आने का लोगों पर असर पड़ता हैै। लोग उसे एक्सप्लोर करने की कोशिश करते हैं, जो कि अच्छी बात है पर किसी चीज की अति बुरी बात है। इससे लोगों के अंदर से कई गुण गायब हो जाते हैैैं। जैसे मोबाइल ने लाइफ को ईजी बनाया, पर इसके आने से लोगों में लर्निंग कैपासिटी कम हो गई है। लोगों को पहले कितने फोन नंबर याद हो जाते थे, पर मोबाइल आने के बाद उन्हें परिवार के नंबर भी याद नहीं रह पाते।

अटैंशन स्पैन हुआ कम
उन्होंने कहा कि लोगों में लर्निंग स्पैन धीरे-धीरे कम होता जा रहा है। यह अब आठ सेकेंड हो गया है। जहां लोग पहले किसी चीज के लिए लंबा समय दे देते थे, पर अब वह समय घटता जा रहा हैै। रील्स और शॉर्ट वीडियोज के प्रति बढ़ रहा आकर्षण इस बात का गवाह है। इसका असर लोगों की प्रोडक्टिविटी पर पड़ता हैै। कम समय में ज्यादा की ख्वाहिश में लोग मल्टीटास्कर तो बन रहे हैं, पर इसका दुष्प्रभाव उनके ब्रेन पर पड़ रहा हैै। लोगों में एंग्जाइटी, डिप्रेशन और इंपेशेंस बढ़ता जा रहा हैै।

ये रहे उपस्थित
इस अवसर पर जावेद खालिद, तहसीन बेग, अली शान, जितेंद्र प्रताप सिंह, कपिल मोहन तिवारी, सतेंद्र पटेल, विकास पांडेेय और डॉ। सतीश चंद्रा आदि उपस्थित रहे।

Posted By: Inextlive