स्वाति नक्षत्र के रवि योग में करें श्री गणेश स्थापना
बरेली (ब्यूरो)। भाद्र पद शुक्ल पक्ष की गणेश चतुर्थी इस बार स्वाति नक्षत्र में मंगलवार आना शुभ है। यह योग शुभ फल देने वाला, सूर्य स्वामित्व वाला, लक्ष्मी प्रदायक, उद्योग-व्यापार के लिए श्रेष्ठ है। इस योग में श्री गणेश जी की पूजा, वंदना, साधना एवं व्रत से विद्या, बुद्धि, संपदा, रिद्धि-सिद्धि की प्राप्ति एवं सभी विघ्न-बाधाओं का नाश होता है।
शुभ मुहूर्त में करें प्रवेश
भगवान गणेश विघ्नहर्ता, साथ ही सर्वमांगल्यकर्ता भी हैं। मान्यताओं के अनुसार सूर्य से आरोग्य, अग्नि से शिव से ज्ञान, भगवान विष्णु से मोक्ष, दुर्गा आदि देवियों से रक्षा, लक्ष्मी से ऐश्वर्य वृद्धि, सरस्वती से विद्या तत्व, भैरव से कठिनाइयों पर विजय, कार्तिकेय से सन्तान प्राप्ति तथा भगवान गणेश से यह सभी वस्तुओं की याचना करनी चाहिए। भगवान गणेश सभी प्रकार की मान्यतओं को पूर्ण करने वाले हैं। ब्रह्मा, शिव और विष्णु ने गणेशजी को कर्मों में विघ्न डालने का अधिकार तथा पूजन के उपरांत उसे शान्त कर देने का सामथ्र्य प्रदान किया है तथा सभी गणों का स्वामी बनाया है। भगवान गणेश का वर्तमान स्वरूप गजानन रूप में पार्वती-शिव पुत्र के रूप में पूजा जाता है, यह उनका द्वापर युग का अवतार है। सतयुग में भगवान गणेश महोत्कट विनायक के नाम से प्रसिद्ध हुए थे, जिनका वाहन सिंह था। बालाजी ज्योतिष संस्थान के पं। राजीव शर्मा का कहना है कि त्रेता युग में मयूरेश्वर के नाम से जाने गए। उनका वाहन मयूर था। द्वापर युग का प्रसिद्ध रूप गजानन है, जिसका वाहन मूषक है और कलयुग के अंत में भगवान गणेश का धर्मरक्षक धूम्रकेतु प्रकट होगा। भगवान गणेश धनप्रदायक भी हैं। इसलिए गणपति का प्रवेश एवं स्थापना शुभ मुहुर्त में करना श्रेष्ठ रहता है।
मध्याह्न काल में हुआ जन्म
सिद्धि विनायक व्रत भाद्र शुक्ल चतुर्थी को किया जाता है। इस दिन मध्याह्न काल में गणेश जी का जन्म हुआ था। इसलिए मध्याह्न व्यापनी चतुर्थी को यह व्रत किया जाता है। इस दिन रात्रि में चन्द्र दर्शन करने से मिथ्या कलंक लगता है परन्तु इस बार कलंक चतुर्थी 18 सितम्बर सोमवार को है। गणेश जी की उत्पत्ति के संबन्ध में बह्मवैवर्तपुराण के अनुसार गणेश जी के जन्म के समय ही शनि की वक्र दृष्टि पडऩे से उनका सिर कट गया। इस पर विष्णु जी ने एक हाथी का सिर काट कर उनके धड़ पर जोड़ दिया और तभी उनका नाम &गजानन&य पड़ा। गणेश पुराण के अनुसार माता पार्वती स्नान करने जा रही थीं। उन्होंने अपने कक्ष तक किसी को भी न आने देने के लिए एक मिट्टी के बालक की रचना की और उसे जीवन देकर पहरेदार बना दिया। इस बीच भगवान शिव आये और अन्त:पुर की ओर जाने लगे। इस पर पहरेदार बालक ने उन्हें अंदर जाने से रोक दिया। शिव को क्रोध आया और उन्होंने उसका मस्तक काट डाला। मां पार्वती को जब यह ज्ञात हुआ कि उनके पुत्र का शिवजी द्वारा वध हुआ है तो उन्होंने दुखी होकर भगवान शंकर से प्रार्थना की कि वह उसे पुन: जीवनदान दें। तब शिव जी ने प्रायश्चित करते हुये एक गज मुख को बालक के शरीर पर जोड़ दिया। गणेश जी का पूजन निम्न प्रकार षोडषोपचार विधि से करना चाहिए।
कुमकुम, केसर, अवीर, गुलाल, सिंदूर, पुष्प, चावल, चौसरे, ग्यारह सुपारियां, पंचामृत, पंचमेवा, गंगाजल, बिल्व पत्र, धूप बत्ती, दीप, नैवेद्य लड्डू पांच गुड़ प्रसाद, लौंग, इलायची, नारियल, कलश, लाल कपड़ा एक हाथ, सफेद कपड़ा एक हाथ, बरक, इत्र, पुष्पहार, डंठल सहित पान, सरसो, जनेऊ, मिश्री, बताशा और आंवला।
ऐसे करें पूजन
इस दिन व्रती को स्नानादि करके निम्न मंत्र द्वारा संकल्प लेना चाहिए। एक चौकी पर लाल रेशमी वस्त्र बिछा कर उसमें मिट्टी, धातू, सोने अथवा चांदी की मूर्ति, ध्यान आवाहन के बाद रखनी चाहिए। पूजन सामग्री गणेशजी पर चढ़ायें। एक पान के पत्ते पर सिन्दूर में हल्का सा घी मिलाकर स्वास्तिक चिन्ह बनायें, उसके मध्य में कलावा से पूरी तरह लिपटी हुई सुपारी रख दें। इन्हीं को गणपति मानकर एवं मिट्टी की प्रतिमा भी साथ में रखकर पूजन करें। गणेश जी के लिए मोतीचूर का लड्डू 5 अथवा 21 अवश्य चढ़ायें। लड्डू के साथ गेहूं का परवल अवश्य चढ़ायें, धान का लावा, सत्तू, गन्ने के टुकड़, नारियल, तिल एवं पके हुये केले का भी भोग लगायें। अन्त में देशी घी में मिलकार हवन सामग्री के साथ हवन करें एवं अन्त में गणेशजी की प्रतिमा के विसर्जन का विधान करना उत्तम माना गया है।
अति विशेष
गणेशजी की पूजा सायं काल की जानी चाहिए, पूजनोपरान्त नीची नजर से चन्द्रमा को अध्र्य देकर ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए।
घर में तीन गणेशजी की पूजा नहीं करनी चाहिए।
यदि चंद्र दर्शन हो जायें तो मुक्ति के लिए &हरिवंश भागवतोक्त स्यमन्तक मणि के आख्यान&य का पाठ भी करना चाहिए।