हम हैं वहीं कल थे जहां
आगरा: कोसने को भी पानी नहीं
पानी पी-पीकर कोसने की कहावत तो आपने सुनी होगी। लेकिन, आगराइट्स को पीने की बात तो दूर कोसने के लिए भी पानी नसीब नहीं है। उनके हलक सूखे हैं। गर्मी ही नहीं सर्दियों में भी उन्हें पानी की प्रॉब्लम को लेकर सड़कों पर उतरने को मजबूर होना पड़ता है। सालों से पानी को लेकर योजनाएं बन रही हैं, पर हुआ कुछ नहीं। कभी बैराज बनाकर लोगों को आश्वासन की घंटी पिलाई जा रही है, तो कभी गंगाजल से उनका उद्धार करने का छलावा किया जाता रहा है। आलम यह है कि लोग सालों से पानी की समस्या से जूझ रहे हैं। जहां उपलब्ध भी है, तो खारे पानी की वजह से खरीदकर पानी पीना ही उनकी नियति बन चुकी है। आलम यह है कि हर साल आगराइट्स चार हजार करोड़ रुपए पीने का पानी ही खरीदने पर ही खर्च कर देते हैं। यह आंकड़ा दो बॉटल प्रति व्यक्ति के औसत है। यानी पांच साल में करीब 20 हजार करोड़ रुपए का पानी खरीद कर आगराइट्स पीते हैं। इस रकम से लोगों को साफ पानी पिलाने की बड़ी से बड़ी योजना को अमल में लाया जा सकता है। इस दौरान लोगों के वोट हासिल कर लोग पार्लियामेंट और एसेंबली पहुंच गए, पर ताज सिटी के कई इलाकों में वाटर सप्लाई की लाइन नहीं पहुंच सकी। साठ फीसदी आबादी आज भी सप्लाई का पानी अपने घर पहुंचने की बाट जोह रही है। जहां पहुंची भी तो वहां गंदा-मटमैला और खारा पानी लोगों में टीस भरता है। आज भी पानी को लेकर मारामारी होती है, खून बहता है लोग हंगामा करते है। पर, उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं। पानी के लिए मौसम-बेमौसम पसीना-पसीना होते आगराइट्स की आवाज लखनऊ और दिल्ली तक भी पहुंची।
पॉपुलेशन : 16,00,299
वाटर डिमांड : 360 एमएलडी
वाटर सप्लाई : 230 एमएलडी
वाटर सप्लाई : 40' इलाके में
वाटर रिसोर्स : ग्राउंड एंड यमुना रीवर वाटर
वाटर ट्रीटमेंट प्लांट: 2
हैंडपंप : 11,244
पंपिंग स्टेशन : 11
ओवर हेड टैंक : 3
कानपुर : Still powerless
सिटी में पॉवर क्राइसिस जमाने से हर कैंडीडेट के लिए मुद्दा है। लेकिन,सालों बीत गए मगर प्रॉब्लम साल्व नहीं हो सकी। दिन में ही नहीं रात में भी घंटों पॉवर रोस्टरिंग के कारण सिटी अंधेरे में डूबी रहती है। रही-सही कसर खस्ताहाल पॉवर सप्लाई सिस्टम से पूरी हो जाती है। गर्मी में तो 12 घंटे भी लाइट मिलना मुश्किल हो जाती है। कानपुराइट्स को लाइट के लिए रोड पर उतरना पड़ता है। इलेक्शन नजदीक आने पर नेताओं को पॉवर क्राइसिस की याद आ जाती है। वे पब्लिक के जख्मों को कुरेदकर वोटों की राजनीति करते हैैं। मगर इलेक्शन के बाद मुद्दा भूल जाते हैं और कटौती बदस्तूर जारी रहती है।
इंडस्ट्रीज भी हो जाती बंद
सिटी में हर महीने एवरेज 300 मिलियन यूनिट इनर्जी की जरूरत होती है। मगर केस्को को 250 मिलियन यूनिट इनर्जी भी नहीं मिल पाती है। इसका खामियाजा अधाधुंध बिजली कटौती के रूप में कानपुराइट्स को भुगतना पड़ता है। फिलहाल कानपुर में पॉवर रोस्टरिंग का शेड्यूल केवल 2 घंटे का है। मगर पॉवर की अधिक डिमांड न होने के बावजूद भी फिलहाल 3.30 घंटे-घंटे तक बिजली कटौती हो रही है। पॉवर क्राइसिस से रोस्टरिंग फ्री इंडस्ट्रियल एरिया भी नहीं बच पाते है। इंंडस्ट्रियल एरिया में भी 8-8 घंटे तक लगातार बिजली कटौती की जाती है। इसकी वजह से इंडस्ट्रियलिस्ट अन्य सिटी और स्टेट की ओर रूख करने को मजबूर है।
नहीं हो सका प्राइवेटाइजेशन
पॉवर क्राइसिस की समस्या से खत्म करने के लिए कानपुराइट्स को खूब सब्जबाग दिखाए गए। तीन वर्ष पहले तो पॉवर सप्लाई सिस्टम प्राइवेट कंपनी को देने के दावे किए गए। मगर आज तक तक ऐसा नहीं हो सका है। अभी भी कानपुर के कई मोहल्लों की पॉवर सप्लाई व्यवस्था अग्र्रेंजों के जमाने की अंडरग्र्राउंड केबल्स पर टिकी। 20-20 वर्ष पुराने लगे ब्रेकर्स लगे हुए है। जो आए दिन खराब हो जाते है।
Financial year Average power supply
2008-09 19.14 घंटे
2007-08 18.44 घंटे
2006-07 19.08 घंटे
2005-06 17.54 घंटे
2004-05 18.03 घंटे
(यह तो केस्को के दावे हैं, हकीकत में इससे कहीं कम बिजली मिलती है। )
मेरठ: कभी न मिटने वाला नासूर
मेरठ में रूलिंग और अपोशिजन पार्टी के लिए कमेले से बड़ा मुद्दा कोई नहीं होता। जब से इसे हटाने की बात हुई है, तब से अब दो बार प्रदेश के निजाम बदल चुके हैं। इसके बावजूद इसका कोई हल नहीं हुआ है। चुनाव के दौरान तो कमेला और भी हॉट टॉपिक हो जाता है। चुनावों के दौरान भी कटान जारी है। भले ही प्रशासन हो या सरकार सब कुछ देखने के अलावा कुछ कर भी नहीं सकती। इस महत्वपूर्ण कारण है कमेला बंद होने से मेरठ में राजनीति का मुद्दा खत्म हो जाएगा। जब तक कमेले में अवैध कटान जारी है, तब तक मेरठ में राजनीति अपने चरम पर हैं। जिसके लिए यहां जानवर तो क्या इंसानों का भी खून बहाया जा चुका है और आगे भी खून बहाया जाता रहेगा।
सबसे बड़ा नासूर
वैसे तो शहर में कई मुद्दे हम आपके सामने ला सकते थे। सालों से चल रहे इस मुद्दे को उठाने का औचित्य ये है कि शहर की पॉलीटिक्स ही यहीं से शुरू होती है। निगम पॉलिटिक्स से लेकर मेंबर ऑफ पार्लियामेंट बनने की दौड़ में शहर का ये नासूर सबसे पहले मुद्दे पर सभी नेताओं की जुबान पर आता है।
10 हजार बेजुबानों की बलि रोज
वैसे मेरठ में रोज दस हजार भैसों को काटा जा रहा है, जिनमें से हापुड़ रोड पर बने कमेले में 8 हजार भैसों का कटान होता है। 2 हजार का कटान घर में ही चल रहे छोटे-छोटे कमेलों में हो रहा है।
अवैध फैक्ट्रियां और माफिया
मेरठ में इस व्यापार को फलने-फूलने में मदद करने के लिए 10 मीट फैक्ट्रियां अवैध रूप से चल रही हैं। जो कमेले में कटने में वाले मीट को साफ करके पैकेजिंग करती है।
बरेली: 'हवाई' एयरपोर्ट
चुनाव आते हैं, नेता लोग वादे करते हैं। पोलिंग के बाद चुनाव खत्म भी हो जाते हैं। इलाके में जनता के साथ बचे रह जाते हैं वादे, जो अगले चुनाव में मुद्दा बनते हैं। हारे हुए नेता लोग बाद के चुनावों में इन्हें वादे के रूप में एक बार फिर बेचते हैं। चुनाव दर चुनाव आते-जाते रहते हैं लेकिन ये मुद्दे वहीं के वहीं रहते हैं। बरेलियंस को हवाई सफर का सब्जबाग कइयों ने दिखाया। सूबे की एक मुख्यमंत्री ने बरेली में एयरपोर्ट का शिलान्यास भी कर डाला। कई विधायक और सांसद इस मुद्दे पर जीत गए लेकिन बरेली की जनता से किया यह वादा एक शिलान्यास से आगे नहीं बढ़ सका।
हवाई पट्टी नहीं शिलान्यास पट्टी
कॉमर्स ऑफ चेंबर एंड इंडस्ट्री के पे्रसीडेंट किशोर कटरू ने कहा कि कैंडीडेट इलेक्शन बरेली से लड़ते हैं लेकिन लोकल प्रॉब्लम्स की बजाए प्रांतीय मुद्दों की बात करते हैं। यहां का सबसे बड़ा मुद्दा एयरपोर्ट का है। इसका शिलान्यास प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने 23 अगस्त, 1997 को किया था। इसके तहत मयूर वन चेतना में गौतम बुद्ध उड्डयन टर्मिनल का निर्माण होना था, जो आज तक नहीं बन पाया। काम के नाम पर आज भी वहां शिलान्यास की पट्टी लगी है जो कैंडीडेट की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
जनप्रतिनिधियों ने इनिशिएटिव नहीं लिया
ज्यादातर लोगों का मानना है कि कोई एक ऐसी संस्था होनी चाहिए जो इन कैंडिडेटों को इनके द्वारा पिछले चुनाव में किए हुए वादों को याद दिलाए।
वीक में 150 से 200 लोग पकड़ते हैं फ्लाइट
बरेली के मंगलम टूर एंड ट्रैवेल के ऑनर राकेश कुमार सारस्वत ने बताया कि सिटी से एक वीक में करीब 200 लोग फ्लाइट पकड़ते हैं।
चुनाव घोषणा पत्र में लोकल इश्यू नहीं
बरेली से अगर किसी को मुरादाबाद जाना हो तो लोगों को मात्र 90 किमी का फासला तय करने में 4 से 5 घंटे का समय लगता है। लेकिन शायद ही नेताओं को जनता को हो रही ये परेशानी दिखाई देती हो। शहर में कई ऐसी समस्याएं हैं, जिनको लेकर नेताओं ने सड़क से विधान सभा और संसद तक की दूरी तय की, लेकिन शायद ही कोई ऐसा हो जिसके मैनीफेस्टो में लोगों की परेशानियों की झलक दिखाई देती हो। जिनको बाहर विदेशों में भेजा जाता है। इससे अलग इससे 60 से अधिक मीट माफिया मौजूद हैं। जो खाल, खुर्र और हड्डियों आदि कई चीजों से जुड़े हुए हैं।
दो बार दंगा झेला
इसी कमेले के कारण शहर की जनता ने 2009 और पिछले साल नौचंदी मेले के दौरान दो बार दंगा झेला। जब भी सरकार या प्रशासन ने कमेले को हटाने की कोशिश की, तभी शहर में ऐसा माहौल बनाने की कोशिश की गई, जिससे प्रशासन और सरकार का ध्यान कमेले से हटकर लॉ एंड ऑर्डर में को ठीक करने में लगे रहे।
अधिकारी भी बेजुबान
जिन बेजुबानों की हत्या को रोकने के लिए शहर में अधिकारी मौजूद हैं। इस मुद्दे पर वो भी बेजुबान हो जाते हैं और कमेले को बंद करने को लेकर मंडल कमिश्नर, जिलाधिकारी, नगर निगम आयुक्त, डीआईजी और प्रमुख सचिव नगर विकास एक दूसरे को पत्र लिखने के अलावा कुछ भी नहीं करते हैं। यहां तक संसद की याचिका समिति के ऑर्डर भी कमेले के आगे फेल हो चुके हैं।
आधुनिक कमेले का पेंच
वर्ष 2005 से इसे बंद करने के आदेश उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने दिए थे, लेकिन बंद हुआ। अधिकारी एक दूसरे को लिखते रहे। वर्ष 2011 में काजीपुर में आधुनिक स्लॉटर के लिए 100 करोड़ में ठेका हुआ। जिसे काफी समय पहले बनकर शिफ्ट हो जाना चाहिए था। जिसके बाद इस पर होने वाली राजनीति ने अपना दिखाया और पुराने कमेले में अवैध रूप से कटान बदस्तूर जारी है।
लखनऊ: कुत्ते तक बेकाबू
क हने को यह राजधानी है। लेकिन यहां अपराधियों से कम आवारा जानवरों का खौफ ज्यादा है। बुधवार को एक पागल कुत्ते ने राजाजीपुरम इलाके में 15 लोगों को काटा। नगर निगम में कम्प्लेन की गई लेकिन कोई अधिकारी नहीं पहुंचा। मजबूरी में इस पागल कुत्ते को किसी ने गोली मार दी। केवल कुत्ते ही नहीं रोड पर सांड़ यमदूत बन चुके हैं। यह चलती-फिरती मौत हैं। पिछले महीने ही जानकीपुरम में एक सांड ने सात साल के मासूम बच्चे आकाश को पटक कर मार डाला। यहां बंदरों का भी इस कदर आतंक है कि कुछ इलाकों में लोगों ने छतों पर जाना ही बंद कर दिया है। इसके बावजूद समस्या गंभीर होती जा रही है। पालतू कुत्तों के लिए लाइसेन्स लेकिन आवारा कुत्तों के लिए कुछ नहीं। रात ढलते ही सड़क पर आवारा कुत्तों का राज हो जाता है। ये झुण्ड बनाकर सड़क से गुजरने वालों पर कब हमला कर दें, कोई नहीं जानता। लगातार बढ़ती संख्या के साथ इनका आतंक भी बढ़ता जा रहा है।
नहीं किया जा सकता है दूर
एनिमल वेलफेयर सोसाइटी के कानून के मुताबिक इन कुत्तों को उनके इलाके से दूर नहीं किया जा सकता है। इसकी वजह यह है कि वह अपने क्षेत्र की भौगोलिक परिस्थितियों से पूरी तरह वाकिफ होते हैं। उन्हें खाना ढूंढऩे में दिक्कत नहीं होती है लेकिन यदि इन्हें अपने इलाके से दूर भेजा जाएगा तो वह ज्यादा खतरनाक साबित हो सकते हैं। जहां तक ब्रीडिंग रोकने का सवाल है तो कुत्तों की नसबंदी कराकर एंटी रैबीज का इंजेक्शन लगाकर छोड़ा जा सकता है। इस बारे में नगर निगम के पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ। सुधीर कुमार ने बताया कि कैम्प कार्यालय के पास एबीसी प्रोग्राम चल रहा है। इसके तहत फीमेल डॉग को पकड़ा जा रहा है और ऑपरेट किया जा रहा है। लेकिन ये काम काफी धीमी गति से चल रहा है और आवारा कुत्तों की संख्या बढ़ती जा रही है। अमौसी के पास 120 एकड़ भूमि पर कान्हा उपवन में आवारा कुत्तों के लिए 257 वर्ग मीटर में भैरव चरण ानालय बनाया गया है। लेकिन यह भी काफी नहीं है। इसके अलावा कैटल कैचिंग में बजट का अभाव है। केवल एक ही कैचर है जो कि कुत्तों को पकडऩे के काम आता है। कैटल कैचिंग की गाडिय़ां भी अक्सर खराब ही रहती हैं।
ये राहुल की कुंठा है। पहले वो गुस्सा करते हुए बांह चढ़ाते हैं और अब पन्ना फाड़ रहे हैं। आगे तो लगता है वो मंच से ही कूद पड़ेंगे।
-अखिलेश यादव
यूपी के लोग खोखले वादों से उब गए हैं। सभी जानते हैं कि कौन लोग झूठे वादे कर रहे हैं। लोग काम चाहते हैं और सभी यह जानते हैं कि यहां केवल वादे किए जाते हैं।
-प्रियंका गांधी
चुनाव आयोग चाहे तो मुझे नोटिस दे दे लेकिन मुसलमानों का आरक्षण बढ़ाया जाएगा। खुर्शीद मुसलमानों की हक की लड़ाई बहुत ईमानदारी से लड़ रहे हैं।
-बेनी प्रसाद वर्मा
अगर चुनाव बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने का कोई प्रयास हुआ तो वो इसके खिलाफ अदालत का सहारा लेंगे।
-मुलायम सिंह यादव
इस मर्तबा भी आए हैं नंबर तेरे तो कम
रुसवाइयों का मेरी दफ्तार बनेगा तू
बेटे के सर पर देके चपत बाप ने कहा
फिर फेल हो गया है मिनिस्टर बनेगा तू