Bareilly: इलेक्शन की सरगर्मी काफी बढ़ गई है. क्या नेता. क्या अधिकारी. सब इलेक्शन संपन्न कराने में जुटे हैं लेकिन इसके साइड इफेक्ट भी नजर आने लगे हैं. इलेक्शन कमीशन का ऐसा डंडा चला कि इसका सीधा असर कुछ खास व्यवसाय से जुड़े लोगों पर पड़ा है. बैनर और पोस्टर बनाने वालों के साथ ही कैटर्स को इस दिन का बेसब्री से इंतजार होता है लेकिन इस बार आयोग ने उनके इंतजार पर पानी फेर दिया है.


चला आयोग का डांडा


रोजाना 5 से 10 हजार रुपए का कारोबार करने वाले बैनर और पोस्टर बनाने वाले सड़क पर आ गए हैं। कंछल गु्रप के महानगर अध्यक्ष सतीश अग्रवाल ने बताया कि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। आदर्श आचार संहिता की आड़ में एडमिनिस्ट्रेशन ने जो कड़ाई की है उससे जहां एक ओर मजदूर तबके के लोगों के पेटों पर लात पड़ी है, तो दूसरी तरफ प्रत्याशियों पर भी नकेल कसी गई है, जिसके चलते प्रत्याशी अपने काले धन का यूज चुनाव प्रचार में नहीं कर पा रहे हैं। उन्होंने कहा कि इसके लिए आयोग को बीच का रास्ता निकालना चाहिए। उन्होंने बताया कि इसके लिए आयोग कश्चह्म्शद्दह्म्ड्डद्वलिमिट का निर्धारण करना चाहिए, जिसके तहत प्रत्याशी  निर्धारित खर्च में बैनर और पोस्टर बनवाएं, ताकि न तो लोग बेरोजगार हो और न ही प्रत्याशी बेलगाम। उन्होंने कहा कि आयोग ने 16 लाख रुपए की जो लिमिट निर्धारित की है वो समय और महंगाई को देखते हुए काफी कम है। बिना प्रचार के कैसा चुनाव

दर्शन लाल भाटिया ने बताया कि शहर में होर्डिंग, बैनर और पोस्टरों को बनाने का काम चुनाव की तारीखों की घोषणा से पहले ही शुरू हो जाता है लेकिन आयोग ने इस बार जो कड़ाई की है उससे होर्डिंग और पोस्टरों बनाने वालों को काफी प्रॉब्लम फेस करनी पड़ रही है। उन्होंने बताया कि आयोग के फरमान से लोग घबड़ा रहे हैं। उन्होंने कहा कि लोगों में ये डर है कि अगर इसी तरह से कड़ाई जारी रही तो उन्हें बड़ी संख्या में पहले से बने हुए पोस्टरों को आगे आने वाले लोकसभा के चुनाव में खपाना होगा। अगर इससे ज्यादा सख्ती लोकसभा चुनाव में हुई तो उनका क्या होगा? उन्होंने बताया कि आयोग को एक लिमिट का निर्धारण करना चाहिए, जिसके अंदर प्रत्याशी होर्डिंग, बैनर और पोस्टर को बनवाएं। इससे बेरोजगारों को भी पर्याप्त मात्रा में रोजगार मिल सके। उन्होंने कहा कि बिना प्रचार के कैसा चुनाव? जब लोगों को जानकारी ही नहीं होगी, तो वे वोट किसे देंगे.  चुनावी रंग में भंग

अजय कुमार कैटरिंग का काम करते हैं। उन्होंने बताया कि चुनावी मौसम होने के बावजूद उनका धंधा मंदा है। उनके मुताबिक पिछले साल तक जहां चुनाव के दौरान कैटरिंग का काम करने वालों को एक दिन में करीब 20 से 30 हजार रुपए की आमदनी हो जाती थी। वहीं इस बार आयोग की सख्ती चुनावी रंग में भंग का काम कर रही है। उन्होंने कहा कि चुनाव के दौरान आयोग को उन लोगों का भी ध्यान रखना चाहिए जिनका धंधा चुनाव पर ही टिका हुआ है।हमारा भी ध्यान रखे आयोगजीतेंद्र कुमार की जीत आट्र्स के नाम से चौपुला चौराहे के पास शॉप है। उन्होंने बताया कि वे पिछले 15 सालों से बैनर और पोस्टर बनाते हैं। उनका कहना है कि जितनी इस बार आयोग ने सख्ती की है उतनी कभी नहीं की। आयोग की इस सख्ती की वजह से उनका धंधा बिल्कुल चौपट हो चुका है। उन्होंने बताया कि पिछली साल जहां उनकी दुकान में दस कारीगर काम करते थे, वहीं इस बार केवल दो से तीन कारीगरों में ही काम हो रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि पिछले साल जहां हमारी शॉप 10 से 15 दिनों तक लगातार खुली रहती थी, वहीं इस बार आयोग की सख्ती के चलते हमारी दुकान पर सन्नाटा पसरा है और शॉप शाम होते ही बंद हो जाती है। उन्होंने कहा कि आयोग को हमारा भी ध्यान रखना चाहिए ताकि हम भी गुजारा कर सकें।कारोबार पर एक नजर-पिछले साल होर्डिंग, पोस्टर बनाने का रोजाना कारोबार 5 से 10 हजार रुपए।-पिछले कैटरिंग का काम 20 से 30 हजार रुपए-शहर में कुशल बेरोजगारों की संख्या- 11493-शहर में अकुशल बेरोजगारों की संख्या- 39280
-आयोग द्वारा प्रत्याशियों के खर्चे की लिमिट 16 लाख रुपए।

 

Posted By: Inextlive