जैविक कचरा और गोबर से दो माह में बनेगा केंचुआ जैविक खाद
बरेली (ब्यूरो)। आईवीआरआई ने जय गोपाल वर्मीकल्चर तकनीकी को देश के सात राज्यों को हस्तांतरित किया है। इसके अलावा उनके प्रतिनिधियों को पांच दिन का प्रशिक्षण दिया गया। पशु आनुवंशिकी विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ। रणवीर सिंह ने जैविक कचरा और गोबर से दो माह में केंचुआ जैविक खाद बनाने की स्वदेशी तकनीक विकसित की है।
पहुंचाई गई तकनीक
डॉ। रणवीर सिंह ने बताया कि जय गोपाल केंचुआ की प्रजाति 46 डिग्री सेल्सियस तापक्रम तक जीवित रहती है। इसमें विदेशी केंचुओं की प्रजाति के मुकाबले ताप सहनशील, प्रति सप्ताह अधिक कोकून तथा कोकून से अधिक बच्चे निकालने की क्षमता है। इस प्रजाति का केंचुआ जैविक खाद (वर्मीकास्ट) विदेशी केंचुओं की प्रजातियों से श्रेष्ठ होता है। इन विशेषताओं और वर्तमान में जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के लिये हमारे संस्थान से देश के विभिन्न कृषि विश्वविद्यालयों, कृषि विज्ञान केंद्र, गोशालाओं, राज्य सस्कारों के संस्थानों, किसानों, सेना की छावनियों, सेना की विभिन्न केंद्र/इकाइयों, किसानों और उद्यमियों ने अब तक 70 से अधिक जय गोपाल वर्मीकल्चर तकनीकी खरीदी हैं। इस तकनीकी की कीमत 59 हजार है।
राज्यों तक पहुंचाई गई सुविधाएं
इस बार सात राज्यों में गोविन्द वल्लभ पन्त कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय पन्तनगर, उधमसिंह नगर (उत्तराखण्ड); कृषि विज्ञान केन्द्र पानी सागर, उत्तरी त्रिपुरा; कृषि प्रोद्यौगिकी अनुपयोगी शोध संस्थान(अटारी), पटना, बिहार; गिर गौ जतन संस्थान, गौंडल राजकोट, गुजरात; करिश्मा आरगेनिक, महासमुन्द, छत्तीसगढ़, छावनी, बरेली (उ.प्र.); श्री मोहसिन अब्बास काजमी, गॉव अमेठिया सलेमपुर, काकोरी, लखनऊ और श्री अभिषेक हान्डा, प्रोग्रेस वक्र्स प्राइवेट लिमिटिड रजिस्टर्ड कार्यालय, फतेहपुर सेक्टर-20 पंचकुला हरियाणा ने खरीदी है। प्रशिक्षण के अंतिम दिन जौनपुर जिले के 50 किसानों को भी जय गोपाल वर्मीकल्चर और जैविक खाद बनाने के प्रदशनों को दिखाया गया। सभी प्रशिक्षुओं ने स्वयं से केंचुआ जैविक खाद बनाने वर्मीकल्चर उत्पादन आदि के प्रयोग किए। प्रशिक्षण के पाचवें दिन सभी को जय गोपाल वर्मीकल्चर बैग में पैक कर सौंपा गया।
प्रधान वैज्ञानिक डॉ। महेश चंद्र ने सभी प्रशिक्षुओं को केंचुआ पालन एवं केंचुआ जैविक खाद बनाने के क्षेत्र में कैसे उद्यमिता विकास किया जाए। इस विषय पर विस्तृत से बताया गया। सभी प्रशिक्षुओं को केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान, इच्जतनगर में गिरी तकनीकी पार्क में पिछवाड़ा मुर्गीपालन, केंचुआ पालन सहजन और जैविक कचरे का प्रबंधन के मॉडल का आर्थिक विशेषण बताया गया, जिससे वह मुर्गीयों में आहार को कम करके केंचुआ और सहजन की खिलाई करके कैसे खर्चा को मुर्गीपालन पर कम किया जा सकता है। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में कुल 72 विषय विषेशज्ञों ने भाग लिया।