पॉलीथिन की कम कीमत की वजह से है ज्यादा डिमांड
बरेली (ब्यूरो)। सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध की तारीख नजदीक है। इसके लिए व्यापारियों ने विकल्प की तलाश शुरू कर दिया है, साथ ही दुकानों से पॉलीथिन के स्टॉक को भी समाप्त किया जा रहा है। पॉलिथिन की जगह बेहतरीन विकल्प क्या हो सकता है यह जानने के लिए दैनिक जागरण आई-नेक्स्ट की टाइम ने श्यामगंज बाजार में पेपर बैग का व्यापार करने वाले तमाम व्यापारियों से बातचीत की। उन्होंने बताया कि एक पेपर बैग की कीमत पांच से दस रुपए तक आती है। इसे आराम से चार से पांच बार यूज किया जा सकता है। कॉटन बैग की कीमत बीस रुपए तक है। वहीं पॉलिथिन बैग एक रुपए में मिलता है। लेकिन मजबूती के हिसाब से सिर्फ दो से तीन बार इस्तेमाल करने लायक होता है। जानकारों की माने तो शहर में कुल पांच प्रतिशत ही पेपर बैग व कॉटन बैग का यूज होता है। पेपर बैग के तुलना पॉलिथिन दस और कॉटन बैग के तुलना बीस गुना सस्ती है। इसलिए इसका यूज ज्यादा है और इसे रोकने की जरूरत है।
क्या होता है सिंगल यूज प्लास्टिक?
पॉलिथिन (सिंगल यूज प्लास्टिक) की बनी ऐसी चीजें, जिनका हम सिर्फ एक ही बार यूज कर सकते हैं या फिर यूज कर फेंक देते हैं जिससे पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है, वह सिंगल यूज प्लास्टिक कहलाता है। इसका यूज चिप्स, पैकेट की पैकेजिंग, बोतल, स्ट्रा, थर्मोकॉल प्लेट और गिलास व अन्य आइटम बनाने में किया जाता है। निगम के अधिकारियों के माने तो पॉलीथिन को लेकर उनका विभाग हमेशा ही गंंभीर रहा है। इस लिए उनकी ओर से समय समय पर कार्रवाई की जाती रही है। पॉलीथिन को लेकर पब्लिक को अवेयर करने का कार्य भी किया जाता रहा है। निगम की ओर से एक साल मे करीब दो लाख से अधिक का चालान किया गया है।
अच्छा विकल्प हो सकता है कॉटन बैग
पॉलिथिन व पेपर बैग व्यापारी का कहना है कि कॉटन बैग विकल्प हो सकता है, लेकिन वह बहुत महंगा होगा। एक किलो प्लास्टिक बैग 60 से 70 रुपए में मिल जाता है। इसमें करीब 60 प्लास्टिक कैरी बैग आते हैं। इस हिसाब से एक कैरी बैग अधिकतम एक रुपए का पड़ता है। लेकिन उसी साइज या उसी कैपिसिटी का कॉटन बैग लेने है, तो उसकी कीमत बीस रुपए होती है। इसलिए ये आर्थिक दृष्टि से उतना बेहतर नहीं होगा। अगर प्लास्टिक बैग की जगह पेपर बैग का विकल्प लेते है, तो इससे पर्यावरण को ज्यादा नुकसान होगा। क्योंकि पेड़ काटकर कागज बनाया जाता है। अगर प्लास्टिक कैरी बैग की जगह पेपर बैग की खपत बढ़ती है, तो इससे डिफॉरेस्टेशन (पेड कटना) बढऩे का खतरा है।