रोजाना पहुंच रहे 3000 से ज्यादा मरीज, डॉक्टर्स देख रहे 180 से 300 मरीज

43 में 10 डॉक्टर्स के पद खाली, मौजूदा व्यवस्था में डॉक्टर्स-मरीज दोनों हलकान

>BAREILLY:

एक रुपए में सरकारी इलाज व दवा मिलने की उम्मीद में डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल जाने वाले मरीजों को सही से अपनी बीमारी बताने का मौका भी नहीं मिल पा रहा। ओपीडी में लगने वाली लंबी कतारों ने मरीजों के लिए 'नेक्स्ट टू गॉड' से अपनी परेशानी कह पाने की मियाद चंद सेकेंड्स तक ही समेट दी है। बरेली मंडल के इस इकलौते डिविजनल हॉस्पिटल में मरीजों को इलाज व दवाओं का प्रिस्क्रिप्शन पाने में महज फ्भ्-ब्0 सेकेंड्स ही मिल रहे हैं। जबकि इंटरनेशनल हेल्थ स्टैंड‌र्ड्स के मुताबिक डॉक्टर्स को अपने हर मरीज को कम से कम क्भ् मिनट देने चाहिए। जिससे कि मरीज की बीमारी का निदान न सिर्फ सही से हो, बल्कि उसे बेहतर इलाज भी दिया जा सके, लेकिन डॉक्टर्स की जबरदस्त कमी और मरीजों की बढ़ती तादाद डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल की इलाज व्यवस्था को डिरेल किए हुए है।

रोजाना फ्000 से ज्यादा मरीज

डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में रोजाना क्ब्00 से क्म्00 तक नए मरीज इलाज के लिए जुटते हैं। वायरल व बीमारी के सीजन में यह आंकड़ा ख्ख्00 तक पहुंच जाता है। वहीं पुराने पर्चे पर ओपीडी में पहुंचने वाले मरीजों की तादाद भी क्ख्00 से क्ब्00 तक रहती है। इस तरह हॉस्पिटल की ओपीडी में रोजाना इलाज की आस में पहुंचने वालों का आंकड़ा फ्000 से ज्यादा हो जाता है। इनमें सिर्फ बरेली शहर ही नहीं बल्कि बहेड़ी, पीलीभीत, शाहजहांपुर, आंवला, रामपुर और उत्तराखंड से भी मरीज आते हैं। डिविजनल हॉस्पिटल होने के चलते ही मरीजों की तादाद इतनी ज्यादा रहती है।

ख्00 से फ्00 तक मरीज

हॉस्पिटल की ओपीडी में सबसे लंबी कतार फिजिशियन और चेस्ट स्पेशलिस्ट के लिए लगती है। ओपीडी में ख् फिजिशियन व ख् चेस्ट स्पेशलिस्ट ही हैं। जिन पर आम दिनों में रोजाना क्ब्0 से क्70 मरीजों को देखने का दबाव रहता है। कई बार मरीजों की तादाद बढ़ने पर यह आंकड़ा ख्00 से फ्00 तक पहुंच जाता है। ठंड के दौरान ही चेस्ट स्पेशलिस्ट के पास अस्थमा व सांस के मरीजों की तादाद रोजाना क्80 से ज्यादा हो रही थी। वहीं फिजिशियन को फ्0भ् व फ्क्0 मरीजों को एक दिन में देखना पड़ रहा। सभी मरीजों को देखने के लिए डॉक्टर्स हर मरीज को एक मिनट से भी कम समय में निपटा रहे।

भ्0 मरीज देखने का नियम

एक्स्प‌र्ट्स ने बताया कि सरकारी नियमों के मुताबिक डॉक्टर्स को एक दिन में ओपीडी के दौरान मैक्सिमम भ्0 मरीज देखने होते हैं। ओपीडी सुबह 8 बजे से दोपहर ख् बजे तक खुली रहती है। यानि हर डॉक्टर्स को आइडियल सिचुएशन में कुल फ्म्0 मिनट के दौरान भ्0 मरीजों को इलाज देना होता है। इस लिहाज से इंटरनेशनल स्टैंड‌र्ड्स कोफॉलो न भी करें तो भी सरकारी नियमों के तहत ओपीडी में एक डॉक्टर को अपने हर मरीज को कम से कम 7 मिनट देने चाहिए। लेकिन हकीकत सरकारी नियमों से बिल्कुल उलट है।

पद ब्फ्, महज फ्ख् डॉक्टर्स

डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में डॉक्टर्स के कुल पद ब्फ् हैं। यह पद भी शासन की ओर से करीब ख्0 साल पहले से मंजूर किए गए हैं, जब हॉस्पिटल पर मरीजों का दबाव आज के मुकाबले आधे से भी कम था। जानकारों के मुताबिक पिछले ख्0 साल में हॉस्पिटल की इमारत से लेकर इलाज व्यवस्था में फ्भ् फीसदी से ज्यादा का इजाफा हुआ। लेकिन डॉक्टर्स के पद इसी अनुपात में बढ़ने के बजाए उल्टा घटते चले गए। मौजूदा समय में हॉस्पिटल में ब्फ् पदों के मुकाबले सिर्फ फ्फ् पर ही डॉक्टर्स हैं। इनमें भी सीएमएस को अलग कर दिया जाए तो ओपीडी, इमरजेंसी, वार्ड व सर्जरी की जिम्मेदारी निभाने के लिए सिर्फ फ्ख् ही डॉक्टर्स हैं। इनमें भी दो डॉक्टर्स अगस्त व नवंबर ख्0क्भ् में रिटायर्ड हो रहे हैं। जिससे आने वाले दिनों में सिचुएशन और खराब होगी

हॉस्पिटल में डॉक्टर्स की कमी बड़ी परेशानी है। मरीजों की बढ़ती संख्या से डॉक्टर्स पर भी कम समय में सभी को इलाज देने का काफी बोझ रहता है। शासन से सौ की मांग करे तो जाकर नौ मिलते हैं। इसी के चलते कई बार मरीजों की कंप्लेन मिलती है, लेकिन सभी को देखकर व्यवस्था की जाती है। - डॉ। डीपी शर्मा, सीएमएस

Posted By: Inextlive