अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देकर मनाई गई छठ
-महिलाएं पानी में खड़े होकर सूर्य भगवान की पूजा की
BAREILLY: दुल्हन सी सजी व्रति महिलाएं सूप लिए घरों से पैदल चलीं तो लगा कि पूरा बिहार और पूर्वाचल अपनी प्रथाओं का सौंदर्य शहर में बिखेर रहा है। वेडनेसडे को सूर्य उपासना के महापर्व छठ के मौके पर अदभुत छटा देखते ही बनी। फलों और पूजा साम्रगी से सजी टोकरी सिर पर रख व्रतिओं ने घाट की परिक्रमा की। उसके बाद अपनी-अपनी बेदी को आकर्षक ढंग से सजाकर पूजा की तैयारी में जुट गई। फल, ईख, पूजा सामग्री और आटेहल्दी के घोर से बेदी सजाया कर दीप जलाये गये। इसके बाद महिलाओं ने गेहूं के आटे से बने प्रसाद ठेकुआ को छठ मैया पर चढ़ाया। महिलाएं पानी में खड़े होकर सूर्य भगवान की पूजा की और डूबते हुए सूर्य को अध्र्य दिया। मनौती पूरी होने पर बढ़ गया विश्वासकई व्रति महिलाओं ने छठ पूजा और छठ मैया के व्रत पर अपने अनुभव सांझा किये। मूल रूप से गोरखपुर की रीमा ने बताया कि शादी के पांच साल तक मेरे कोई बच्चा नही हुआ। इसपर सास के कहने पर मनौती मानी और व्रत रखना शुरू किया। अब मेरे दो बेटे शेखर और प्रखर हैं। व्रत को लेकर बनारस डिस्ट्रक्ट की रंजू देवी ने बताया कि उनके घर में परिवार की सबसे बड़ी महिला ही ये व्रत रखती है। पहले उनकी सास व्रत किया करती थी और अब उनके बाद ये परंपरा वह आगे बढ़ा रही हैं।
मांगत हई वरदान ओ गंगा मैया सूर्य देवता के अस्त होने पर महिलाओं ने अपनी बेदियां सजा कर छठ के लोक गीत गाना शुरू कर दिया। छठ मैया का व्रत रखी व्रतिन सवित्री देवी, कृष्णा, सजल, रीता, गुडडी, आशा देवी, नीरा आदि ने छठ के लोकगीत गाकर समां बाध दिया। सूर्य भगवान को अर्घ्य देने के बाद कुछ ऐसे परिवार भी थे, जिन्होंने घाट पर पूरी रात बिताकर कोसी भरी। मूल रूप से बिहार के रमेश गुप्ता ने अपने परिवार के साथ चौबीस कोसी भरी। असल में कोसी भरना एक मान्यता है जिसमें मनोकामना पूरी होने पर सूर्य भगवान और छठ मैया के लिए दिए जलाये जाते हैं। शहर के मुख्य छठ स्थल धोपेश्वर नाथ मंदिर, रुहेलखंड यूनिवर्सिटी, रामगंगा घाट व अन्य जगह पर छठ पूजा को विधि विधान से मनाया गया।