श्रद्धा एवं आस्था प्रकट करने का दिन गुरु पूणिर्मा
- गुरु पूíणमा एवं श्री व्यास पूजा सूर्योदय के बाद त्रिमुहूर्त व्यापिनी आषाढ़ पूíणमा को मनाई जाएगी
बरेली: आषाढ़ शुक्ल पूíणमा को व्यास पूजा गुरु पूíणमा के रूप में मनाई जाती है। गुरु परम्परा की सिद्धि के लिए परब्रह्म, ब्रह्मा, शक्ति, व्यास, शुकदेव, गौढ़पद, गोविंद स्वामी, शंकराचार्य का नाम मंत्र से अवाहनादि पूजन करके अंत में अपने दीक्षा गुरु का देव तुल्य पूजन करना चाहिए। बालाजी ज्योतिष संस्थान के पं.राजीव शर्मा का कहना है कि 24 जुलाई को आषाढ़ पूíणमा त्रि मुहूर्त न्यून होने से गुरु पूíणमा-व्यास पूजा आदि पर्व 23 जुलाई को चतुर्दशी तिथि सुबह 10:44 बजे के बाद मनाई जाएंगी। 23 जुलाई को सुबह 10:43 के बाद पूíणमा लगेगी, जोकि अगले दिन 24 जुलाई को सुबह 8:06 बजे तक रहेगी। पूजन विधि विधानइस दिन प्रात: काल स्नानादि दैनिक कर्मो से निवृत्त होकर प्रभु पूजा गुरु की सेवा में उपस्थित होकर उन्हें उच्च आसन पर बैठाकर पुष्प माला अíपत करें। फिर संकल्प करके षोडशोपचार से गुरु का पूजन करें क्योंकि इस दिन गुरु की पूजा देवता के समान करने का विधान है।
व्रत कथाहस्तिनापुर में गंगभट नाम का एक मल्लाह रहता था। एक दिन उसे बड़ी भारी मछली नदी से मिली। उसे घर ले जाकर देखा तो उसमें से कन्या निकली उस कन्या का नाम उसने सत्यवती रखा। मछली के पेट से जन्म लेने के कारण उसके शरीर से मछली की दुर्गंध निकलती रहती थी। सत्यवती जब युवती हो गई तो एक दिन गंगभट उसे नाव के पास बिठाकर किसी आवश्यक कार्य से घर चला गया। इस बीच वहां पाराशर नाम के ऋषि वहां आये और सत्यवती से बोले तुम अपनी नाव में बिठाकर उस पार उतार दो। सत्यवती के सौंदर्य पर ऋषि पाराशर मोहित हो गए और विवाह की कामना की। सत्यवती ने स्वयं को नीच जाति और शरीर से दुर्गंध आने वाली बात को बताया। इस दोष को ऋषि पराशर ने तुरंत दूर कर दिया। इस प्रकार ऋषि पराशर और देवी सत्यवती की संतान महíष वेद व्यास का जन्म हुआ। जन्म के समय उस बालक के सिर पर जटायें थीं। वह यज्ञोपवीत पहने हुए था। उत्पन्न होते ही उसने अपने पिता को नमस्कार किया और हिमालय पर्वत पर चला गया, जहां हिमालय की गुफाओं और बदरीवन में उसने कठोर तप किया। बाद में बदरीवन में रहते हुए अध्ययन-अध्यापन किया। जिससे उसका नाम बादरायण के नाम से संसार में विख्यात हुआ। उन्होंने महाभारत के अलावा वेद, शास्त्र एवं पुराणों की रचना की। अपनी रचनाओं के माध्यम से वे पूरे विश्व के गुरु माने जाते हैं। गुरुपूíणमा को जन्मे महíष वेदव्यास जी के नाम पर ही इस तिथि को व्यास पूíणमा भी कहते हैं।
अति विशेष इस बार कोविड-19 कोरोना महामारी के चलते घर में केवल गुरु का चित्र सामने रखकर, संकल्प लेकर ही पूजा करना उचित होगा। आशीर्वाद लेने के लिए केवल साष्टांग प्रणाम ही करें, चरण स्पर्श न करें।