Bareilly: बरेली के यूथ के लिए डॉ. अवनीश गौतम किसी आइकन से कम नहीं. वह बरेली कॉलेज के एमएससी गोल्ड मेडलिस्ट हैं. चार इंटरनेशनल और एक नेशनल पेटेंट अपने ग्रुप के नाम कर चुके हैं. उनकी लेटेस्ट रिसर्च 'फाइटो इस्ट्रोजनÓ है जिसे उन्होंने पलाश के पेड़ से खोजा है. यह हार्मोन बोंस की बीमारी ऑस्टियोपेरोसिस पर काबू पाने में काफी हद तक हेल्पफुल साबित हो सकता है.


ऑस्टियोपेरोसिस से लड़ेगा फाइटो इस्ट्रोजनऑस्टियोपेरोसिस ऐसी बीमारी है जिसके तहत कैल्शियम की कमी से हड्डियां कमजोर होने लगती हैं। बोंस फॉर्मेशन धीरे-धीरे कम होने लगते हैं। ऐसी सिचुएशन में जरा सी चोट से भी हड्डियां टूट जाती हैं और कभी कभार चोट इतनी गंभीर हो जाती है कि जीवन भर उन हड्डियों को जोड़ा नहीं जा सकता। महिलाओं में यह बीमारी सबसे ज्यादा पाई जाती है। स्टेट फ्लॉवर पलाश में ऐसे केमिकल मौजूद हैं जो बोंस फॉर्मेशन में सहायक सिद्ध होते हैं। ये बेहद इंपॉर्टेंट फैक्ट डॉ। अवनीश गौतम की रिसर्च में सामने आया है। यह रिसर्च अभी लैब तक ही सीमित है पर फ्यूचर में क्लिनिकल टेस्ट के बाद ऐसी मेडिसिन बनाए जाने की पॉसिबिलिटी है जब ऑस्टियोपेरोसिस जैसी गंभीर बीमारी पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है। इस रिसर्च को डॉ। अवनीश ने पेटेंट करा लिया है।पलाश के पेड़ में इस्ट्रोजन
बोंस फॉर्मेशन में मदद करने वाला केमिकल इस्ट्रोजन पलाश के पेड़ में भी पाया जाता है। इसकी खोज डॉ। अवनीश गौतम ने अपने रिसर्च में की। इसको इन्होंने अपने ग्रुप के नाम से पेटेंट करा लिया है। उनके ग्रुप में करीब 17 साइंटिस्ट शामिल हैं। डॉ। गौतम वेडनसडे को बीसीबी के जूलॉजी डिपार्टमेंट में गेस्ट लेक्चर डिलीवर करने के लिए आए थे। उन्होंने स्टूडेंट्स को अपनी इसी रिसर्च पर लेक्चर दिया।इस्ट्रोजन से बोन फॉर्मेशनह्यूमन बॉडी में मौजूद इस्ट्रोजन हार्मोन ही बोंस फॉर्मेशन में मदद करता है। यह हॉर्मोन प्रमुख रूप से फीमेल्स में पाए जाते हैं। वहीं मेल्स में टेस्टोस्टेरोन हार्मोन पाए जाते हैं। मेल्स में इस्ट्रोजन हार्मोन काफी कम मात्रा में मिलता है। फीमेल की एक एवरेज एज के बाद पोस्ट मोनोपॉज की कंडीशन जेनरेट हो जाती है, जिस वजह से उनमें इस्ट्रोजन हार्मोन बनना बंद हो जाता है। इसलिए महिलाओं में ऑस्टिपेरोसिस की बीमारी भी ज्यादा पाई जाती है।10 साल में बदलता है स्केलेटनआम तौर पर लोगों को मालूम नहीं होता कि ह्यूमन बॉडी में हर 10 साल में पूरा स्केलेटन चेंज हो जाता है। यह इस्ट्रोजन हार्मोन की मदद से ही होता है। डॉ। गौतम ने बताया कि उन्होंने पलाश के पेड़ में जिस इस्ट्रोजन हार्मोन की खोज की है उसे 'फाइटो इस्ट्रोजन' नाम दिया गया है। इसमें ह्यूमन इस्ट्रोजन जैसी खूबियां हैं।न्यूट्रीशन की कमी है मेन वजह


डॉ। गौतम ने बताया कि लोगों की लाइफस्टाइल चेंज होने की वजह से उनमें ऑस्टियोपेरोसिस की बीमारी बढ़ती जा रही है। खान-पान में न्यूट्रिशन की कमी के चलते उनमें बोंस फॉर्मेशन स्लोली हो जाता है। ऐसी स्थिति में हड्डियां गलने लगती हैं और खोखली होकर टूटने लगती हैं। साथ ही इस्ट्रोजन हार्मोन की कमी के चलते नई हड्डियां नहीं बन पातीं।फाइटो इस्ट्रोजन से बंधी आसफाइटो इस्ट्रोजन हार्मोन से काफी उम्मीदें बंधी हुई हैं। फिलहाल यह रिसर्च लैब में है। इंडिया में क्लिनिकल रिसर्च आसान नहीं है। डॉ। गौतम ने बताया कि ह्यूमन बॉडी के लिए क्लिनिकल रिसर्च में 30 से 40 वर्ष तक समय लग जाता है। फ्यूचर में ऐसा हुआ तो इस नए इस्ट्रोजन के जरिए ऑस्टिपेरोसिस बीमारी पर काबू पाया जा सकता है। ऐसी मेडिसीन बनाई जा सकती है, जिसके माध्यम से ह्यूमन बॉडी में बोंस फॉर्मेशन स्पीडली हो सकेगा और एक एवरेज एज के बाद होने वाली इस बीमारी पर काफी हद तक लगाम लगाई जा सकेगी।बीसीबी के ही रत्न हैं डॉ। गौतम

डॉ। अवनीश गौतम ने कॉलेज की पढ़ाई बीसीबी से ही की है। आरके पुरम में रहने वाले डॉ। गौतम ने स्कूलिंग एमबी इंटर कॉलेज से की। बीसीबी से बीएससी और एमएससी की पढ़ाई की। 2005 में उन्होंने एमएससी में टॉप कर गोल्ड मेडल हासिल किया। साथ ही फस्र्ट अटेम्प्ट में ही नेट भी क्वालिफाई कर लिया। जेएनयू से पीएचडी कंप्लीट की और सीडीआरआई में बतौर साइंटिस्ट अपने प्रोजेक्ट पर रिसर्च की। पोस्ट डॉक्टोरल रिसर्च के लिए वे एक साल न्यूयॉर्क में भी रहे। इनके ग्रुप के नाम 4 इंटरनेशनल और 1 नेशनल पेटेंट हैं। फिलहाल वह कन्नौज के डॉ। भीमराव अम्बेडकर राजकीय महाविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं।

Posted By: Inextlive