प्लास्टिक सर्जन के बिना बर्न एंड प्लास्टिक सर्जरी यूनिट में इलाज शुरू

हॉस्पिटल के 4 जनरल सर्जन पर ही बर्निग केसेज के इलाज की जिम्मेदारी

प्लास्टिक सर्जरी के लिए निजी हॉस्पिटल से महंगा इलाज कराने की मजबूरी

BAREILLY:

देर सबेर ही सही आखिरकार सफेद हाथी साबित हो रही डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल की बर्न एंड प्लास्टिक सर्जरी यूनिट में मरीजों को इलाज देने की शुरुआत हो ही गई। मार्च के दूसरे पखवाड़े के आगाज के साथ ही इस खाली इमारत में बर्न केसेज वाले मरीजों के घाव पर सरकारी मरहम लगना शुरू हो गया है। लेकिन जले घावों पर मरहम लगने की खुशी के साथ ही दिल में टीस भी उठने लगी है। इस इमारत की जरूरत का आधार सिर्फ बर्निग केसेज का इलाज नहीं बल्कि दुर्घटना में बिगड़े चेहरे व शरीर को प्लास्टिक सर्जरी से संवारना भी था। लेकिन ऐसा न हो सका, बर्न यूनिट तो शुरू हुई पर प्लास्टिक सर्जरी की सुविधा के लिए मरीजों को अभी और इंतजार करना होगा।

नहीं मिले प्लास्टिक सर्जन

बर्न यूनिट के लिए अलग से मेडिकल स्टाफ व जनरल सर्जन के साथ ही एक प्लास्टिक सर्जन की भी नियुक्ति की जानी थी, जिससे कि जलने या झुलसने के बाद खराब या भद्दे हो चुके चेहरे व शरीर के पा‌र्ट्स को प्लास्टिक सर्जरी से संवारा जा सके। इसके अलावा जन्म से ही नाक, तालु या होंठ में खराबी होने को भी ठीक किया जा सके। लेकिन इसके लिए प्लास्टिक सर्जन की नियुक्ति नहीं हो पाई है। ऐसे में हॉस्पिटल के ब् जनरल सर्जन पर ही इन मरीजों के इलाज की जिम्मेदारी डाली गई है, जो सामान्य व गंभीर बर्निग केसेज का इलाज तो कर रहे लेकिन चेहरे या शरीर की खामियों को ढंक नहीं पाएंगे।

सवा करोड़ की लागत से बनी इमारत

फरवरी ख्0क्भ् तक डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल के 7 बेड वाले बर्न वार्ड में ही बर्निग केसेज वाले मरीजों को इलाज मिलता था। लेकिन मरीजों की तादाद बढ़ने के साथ ही बर्न यूनिट शुरू किए जाने की जरूरत महसूस हुई। शासन को प्रस्ताव भेजा गया, जिसके बाद हॉस्पिटल के दूसरे कैंपस में ऑपरेशन थिएटर से सटी जमीन पर क्.फ्फ् करोड़ रुपए की लागत से इस यूनिट का निर्माण शुरू हुआ। कार्यदायी एजेंसी के वर्क क्वालिटी में खामी मिलने पर शासन ने इस पर जांच बैठा दी। जिससे निर्माण कार्य म् महीने से ज्यादा लटका रहा। इसके बाद जून ख्0क्ब् तक इसे पूरा कराने की मियाद दी गई। हॉस्पिटल को हैंडओवर करने के इंतजार में कुछ महीने यूं ही बीते और आखिरकार मार्च ख्0क्भ् में यह शुरू हुई।

लंबा इंतजार, अधूरा इलाज

पिछले सवा साल से इस बर्न यूनिट का निर्माण पूरे होने और इलाज मिलने का इंतजार खत्म हुआ तो मरीजों के संग सेहत महकमा ने भी संतोष जताया। ख्ब् बेड वाले इस बर्न यूनिट में नॉर्मल और क्रिटिकल मरीजों के इलाज की व्यवस्था दोमंजिला इमारत तक की जानी थी। लेकिन मौजूदा समय में सिर्फ फ‌र्स्ट फ्लोर तक इली इलाज की शुरुआत हो सकी है। सेकेंड फ्लोर पर फिनिंशिंग का काम अब भी पूरा किया जाना है। इलाज की व्यवस्था भी मेल व फीमेल वार्ड तक ही है। जबकि ब् क्यूबिकल वार्ड में मरीज को एडमिट करने और इलाज देने का इंतजाम नहीं हो पाया है।

मरीज गर्मी में, एसी स्टोर में

बर्न केसेज के मरीजों के लिए वार्ड में एसी की व्यवस्था होनी चाहिए। जिससे कि बर्निग केसेज वाले मरीजों के घावों को ठंडक मिले और गर्मी से उन्हें इरिटेशन न हो। जले-झुलसे घावों पर स्किन की उपरी परत न होने से मरीजों को तकलीफ ज्यादा होती है। बर्न यूनिट में भी इन मरीजों के लिए एसी मंगवाए तो गए, लेकिन उन्हें वार्ड में फिट कर यूज करने के बजाए नर्स केबिन में स्टोर किया गया है। मार्च के दूसरे पखवाड़े में ही गर्मी बढ़ने से मरीजों को तकलीफ हो रही। लेकिन हॉस्पिटल एडमिनिस्ट्रेशन की ओर से उन्हें फिलहाल पंखे की ही राहत दी गई है।

महंगे इलाज को मजबूर मरीज

डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में बर्न यूनिट शुरू होते ही बरेली मंडल के मरीजों को राहत मिलेगी। लेकिन इसमें वे मरीज शामिल नहंी होंगे, जिन्हें प्लास्टिक सर्जरी की जरूरत है। मंडलीय हॉस्पिटल की बर्न यूनिट में प्लास्टिक सर्जरी न शुरू होने से बरेली समेत बदायूं, शाहजहांपुर, पीलीभीत व उत्तराखंड के मरीज अब भी निजी हॉस्पिटल्स से इलाज कराने को मजबूर रहेंगे। बरेली में कुल ब्-भ् प्लास्टिक सर्जरी देने वाले ही निजी हॉस्पिटल्स है, जहां गरीब व लो इनकम वाले मरीजों के लिए प्लास्टिक सर्जरी का महंगा इलाज कराना मजबूरी बनी रहती है। इनमें लड़कियों की चेहरे व शरीर से जुड़ी खामियों को सही कराना ही सबसे बड़ी वजह है, जिससे उनकी शादी में दिक्कत होती है।

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बर्न यूनिट में फिलहाल फ‌र्स्ट फ्लोर पर ही इलाज किया जा रहा है। प्लास्टिक सर्जन की नियुक्ति नहीं हो पाई है। हमने शासन को प्लास्टिक सर्जन के अलावा नेफ्रोलॉजिस्ट व न्यूरोसर्जन की डिमांड भेज दी है। मेल व फीमेल वार्ड में जल्द ही एसी की फिटिंग कराई जाएगी।

- डॉ। डीपी शर्मा, सीएमएस

Posted By: Inextlive