BAREILLY: कॉलेज लाइफ में ब्वॉयज का ज्यादा से ज्यादा गर्लफ्रेंड्स बनाना किसी हुनर से कम नहीं. स्पेशली फ्रेंड सर्किल के बीच. यही नहीं आजकल तो पेरेंट्स भी इसे नॉर्मली लेने लगे हैं पर ये सिचुएशन अलार्मिंग भी हो सकती है. ध्यान दीजिए कहीं आपके लाडले का सारा टाइम गल्र्स के साथ ही तो नहीं बीत रहा. कहीं वो उनके साथ सेक्सुअल रिलेशनशिप डेवलप करने के लिए हाइपर तो नहीं हो रहा. अगर ऐसा है तो वो सैटेराइसिस नाम की डिजीज का शिकार है. दरअसल इसमें ब्वॉयज का सेक्सुअल बिहेवियर आउट ऑफ कंट्रोल हो जाता है.


CASE-1राहुल (नेम चेंज्ड) एक साथ छह गर्लफ्रेंड्स को डील कर रहा था। उसके दोस्त और पेरेंट्स ने इसे लाइटली लिया। मगर समय के साथ राहुल में लड़कियों के प्रति क्रेज बढ़ता ही गया। उसकी सेक्सुअल डिजायर उसके कंट्रोल से बाहर हो गई। राहुल फैमिली से कटा-कटा रहने लगा। उसके पेरेंट्स भी ठीक से उसकी प्रॉब्लम को नहीं समझ पा रहे थे। राहुल ने अपने जीजाजी से इस बारे में बातचीत की। उन्होंने उसे न्यूरो फिजीशियन से कंसल्ट करने की सलाह दी। डॉक्टर से चेकअप के बाद खुलासा हुआ कि राहुल सैटेराइसिस से पीडि़त था। अब वह अपना इलाज करवा रहा है। CASE-2


संजय (नेम चेंज्ड) एकेडमिक लाइफ से ही लड़कियों के  साथ रहना ज्यादा पसंद करता था। समय के साथ-साथ उसका ये चाव बढ़ता ही गया। संजय कई लड़कियों के संपर्क में एक साथ रहने लगा। उसका लड़कियों के साथ घूमना और मिलना-जुलना इस कदर बढ़ गया कि आस-पड़ोस के लोगों में भी उसके बिहेवियर को लेकर तरह-तरह की बातें शुरू हो गईं। इसके बाद उसके पेरेंट्स ने गंभीरता के साथ इस बारे में सोचना शुरू किया। फिर ये मामला एक परिचित साइकियाट्रिस्ट से डिस्कस किया। साइकियाट्रिस्ट ने बताया कि ये सैटेराइसिस की प्रॉब्लम है.   जब नहीं मिलती proper direction

एकेडमिक लाइफ में गल्र्स के साथ घूमने-फिरने या रिलेशन रखने की इच्छा आजकल कोई खास इश्यू नहीं है। कुछ इसे हेल्दी फीलिंग और मौज-मस्ती के साथ पार कर जाते हैं तो कुछ इसके शिकार भी हो जाते हैं। बस यहीं पर गड़बड़ी हो जाती है। डॉक्टर्स बताते हैं कि ग्रोइंग ऐज में ब्वॉयज को भी सही डायरेक्शन की जरूरत होती है। चूंकि वे अपने आप को बड़ा समझने लगते हैं इसलिए पेरेंट्स से कुछ भी शेयर नहीं करते। वहीं फ्रीडम के नाम पर पेरेंट्स भी बच्चों पर ज्यादा ध्यान नहीं देते। ऐसे में ब्वॉयज में अपोजिट सेक्स के प्रति फीलिंग्स का ओवरडोज हो जाता है। लड़कियों से ज्यादा से ज्यादा दोस्ती करना, उनके साथ घूमना, दिन-रात मोबाइल पर चिपके रहना, सेक्सुअल रिलेशनशिप मेंटेन करना और घर से कटे-कटे रहना उनका रूटीन हो जाता है। इसे ही सैटेराइसिस कहते हैं। सही गाइडेंस न मिलने से या प्रॉब्लम आइडेंटिफाइ न हो पाने से ये बीमारी खतरनाक रूप ले लेती है।होते हैं कई reasons

डॉक्टर्स के मुताबिक, लड़कों का ऐसा बिहेवियर सैटेराइसिस डिजीज की वजह से हो सकता है। ब्वॉयज में ह्यूमन सेक्सुअल बिहेवियर का हाइपर सेक्सुअल बिहेवियर में बदलना डिजीज की पहली सीढ़ी है। इसके पीछे कई साइकोलॉजिकल और पैथोलॉजिकल रीजन होते हैं। साइकोलॉजिकल रीजंस में एडिक्शन सेक्सुअल, कंपल्सिव सेक्स और इंपल्सिव सेक्सुअल बिहेवियर शामिल होते हैं। वहीं पैथोलॉजिकल में बाई पोलर डिसऑर्डर के मेल पेशेंट्स शामिल होते हैं। Behavior control करता है brainबिहेवियर की सभी गतिविधियों को ब्रेन के कुछ हिस्से कंट्रोल करते हैं। इन्हें टेंपोरल लो कहा जाता है। देखा गया है कि बचपन में सिर के इस हिस्से में चोट लगने पर पेशेंट का बिहेवियर चेंज हो जाता है। लड़कों के केस में पेशेंट सैटेराइसिस का शिकार हो जाता है। डॉक्टर्स बताते हैं कि कई बार ज्यादा एल्कोहल यूज करने से भी दिमाग के इस हिस्से से कंट्रोल खत्म हो जाता है। Symptoms * इस केस में लड़का हाइपर सेक्सुअल हो जाता है। इसलिए ज्यादातर मामलों में काउंसलिंग से फायदे के चांसेज होते हैं। * इस डिजीज का पेशेंट डिप्रेशन का शिकार हो जाता है। इसलिए डिप्रेशन का ट्रीटमेंट जरूरी होता है। * इसमें पेशेंट की सेक्सुअल डिजायर को कंट्रोल में रखने के लिए एसएसआरआई ग्रुप की मेडिसिन का यूज किया जाता है। * पेशेंट को साइको थैरेपी दी जाती है।
मेरे पास ऐसे लड़के आते हैं, जिन्हें सैटेराइसिस की प्रॉब्लम होती है। ऐसे पेशेंट को पहले हम काउंसलिंग करके ठीक करने की कोशिश करते हैं। अगर उसमें सुधार नहीं आता तो ट्रीटमेंट के लिए मेडिसिन का सहारा लेते हैं।-डॉ। राम सिंह कुशवाहा, न्यूरोफिजीशियन

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