सिटी के बाहर तक फैली है बावरिया गिरोह की जड़ें
- दो दिन पहले करते हैं रेकी, फिर देते हैं घटना को अंजाम
-बावरिया गिरोह में महिलाएं और बच्चे भी हैं शामिल BAREILLY: बावरियों की सक्रियता ने एक बार फिर पुलिस प्रशासन की नींद उड़ा दी है। सुरेश शर्मा नगर में निर्मम तरीके से हुए ट्रिपल मर्डर केस में पुलिस का शक बावरिया गिरोह की ओर ही जा रहा है। गिरोह में शामिल लोगों द्वारा शातिराना अंदाज में किसी घटना को अंजाम देना और फिर अचानक गायब हो जाना, पुलिस के लिए टेढ़ी खीर साबित हो रही है। पिछले कुछ सालों में इनकी सक्रियता काफी बढ़ी है। कई नामों से जाने वाले बावरिया गिरोह की जड़ें सिटी में ही नहीं आस-पास के क्षेत्रों तक फैली हुई है, जिसकी वजह से गिरोह का पर्दाफाश करने में पुलिस प्राय: नाकाम ही साबित होती है। कई नाम से जाने जाते हैंबावरिया गिरोह को गई नाम से जाना जाता है। बावरिया के अलावा भातु, घूमंतु जाति, क्रिमिनल टै्रप, मेवाइती, सासी और कंजड़ा। अलग-अलग क्षेत्रों में विभिन्न नामों से जाने जाने के कारण पुलिस को इनकों पकड़ने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है। पुलिस रिकॉर्ड में भी इनके सभी नामों का जिक्र है, जिससे कार्रवाई करने में परेशानी न हो। ऑफिसर्स का मानना है कि नाम होने से मर्डर की जांच में सहायता मिलती है।
दो दिन पहले होती है रेकी जिस भी घर को टारगेट करना होता है, उसकी रेकी गिरोह द्वारा एक-दो दिन पहले की जाती है। घर का लोकेशन, कौन कब घर से निकल रहा है या आ रहा है, घर में कितने मेंबर्स हैं, इन सभी का प्लॉन तैयार कर लिया जाता है। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक रेकी करने वाले फेरी वाले का ही रूप धारण करते हैं, ताकि लोगों को उन पर शक ना हो। मैक्सिमम मामलों में रेकी का काम बच्चे या फिर महिलाएं ही करती हैं। घर को टारगेट करने के बाद उस घर पर ऊं, हाथ का पंजा, हिन्दी या अंगे्रजी का कोई कोड वर्ड्स अंकित कर देते हैं, जिससे घटना को अंजाम देने वालों को घर को आईडेंटीफाई करने में आसानी हो जाए। रेकी के दौरान यह अपना डेरा नदी के किनारे डालते हैं, क्योंकि नदी के किराने लोगों का आवागमन कम होता है। लास्ट घर होता है निशाने पररेकी के दौरान गिरोह ऐसे घर को अपना निशाना बनाते हैं जो गांव या मोहल्ले के किनारे बना होता है, जिससे घटना को अंजाम देने के बाद उन्हें भागने में आसानी हो जाती है। अब तक हुए मैक्सिमम केसेज में इसी तरह के मामले देखने को मिले हैं।
सिर पर करते हैं अटैक इनका ग्रुप फ् से लेकर क्ख् सदस्यों का होता है, ताकि घटना के वक्त किसी व्यक्ति पर अटैक करने में आसानी हो। शरीर के अन्य हिस्सों पर अटैक करने के बजाय ये गिरोह व्यक्ति के सिर पर ही वार करते हैं, ताकि अगला पलट कर उन पर वार ना करें और वे आसानी से अपने काम को अंजाम दे सके। हथियार या मोबाइल नहीं गिरोह में शामिल कोई भी सदस्य पिस्टल या मोबाइल जैसी चीजों का इस्तेमाल नहीं करता है। उन्हें डर रहता है कि मोबाइल यूज करने पर पुलिस उन्हें टै्रस कर सकती है। वे लाठी, फरसा, रॉड जैसे हथियारों से घटना को अंजाम देना मुनासिब समझते हैं। इन हथियारों को अपने साथ ले जाने के बजाय वे इसे घटना स्थल पर ही छोड़ देते हैं। सिटी से बाहर तक हैं इनकी जड़ें य गिरोह सिटी तक ही सिमित नहीं हैं, बल्कि सिटी के आस-पास के क्षेत्रों तक इनकी जड़ें फैली हुई हैं। बहेड़ी के पचपेड़ा, भोजपुर के बगियावाला, बदायूं के धनुपुरा, अलापपुर और लखीमपुर में बटुआटांडा तक इन गिरोह के लोग फैले हुए हैं।मां काली की पूजा और लैट्रीन को मानते शुभ
किसी भी घटना को अंजाम देने से पहले गिरोह के सभी सदस्य मां काली की पूजा करते हैं। जबकि घटना के बाद घटना स्थल पर ही लैट्रीन करते हैं। उनका ऐसा मानना होता है कि यह उनके लिए शुभ है। घर में जितनी भी खाने-पीने वाली चीजें होती है उसको खाते-पीते हैं। बड़े सामानों की जगह अपना टारगेट नकदी और ज्वैलरी पर करते हैं। बावरिया गिरोह के मेंबर बहुत ही शातिर होते हैं। जिस भी घर को अपना निशाना बनाते है वहां ग्रुप में जाते है, ताकि घटना को आसानी से अंजाम दिया जा सके। सबसे अधिक घटनाएं ठंड के दिनों में होती हैं। यह गिरोह वर्षो से सक्रिय है। अन्य घटनाओं की अपेक्षा इनके मामले में हमारी जांच की प्लॉनिंग अलग तरीके से होती है। राजबीर सिंह यादव, इंचार्ज, हीनियस क्राइम यूनिट