BAREILY NEWS : सर्वार्थसिद्ध योग में मनाएं करवाचौथ, मिलेगा अखंड सौभाग्य
बरेली (ब्यूरो)। सुहागिनों का त्योहार करवाचौथ एक नवंबर को मनाया जाएगा। पति की दीर्घायु व अखंड सौभाग्य के लिए करवा चौथ का पावन व्रत रखती हैं। कार्तिक कृष्ण पक्ष चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी तिथि को मनाया जाने वाला पर्व इस बार चतुर्थी तिथि का मान 31 अक्टूबर मंगलवार को रात्रि 9:29 से ही शुरू हो जाएगा, जो एक नवंबर बुधवार को रात्रि 9:18 मिनट तक रहेगा। चंद्रोदय तिथि में ही महिलाएं अध्र्य देकर व्रत का पारण करेंगी। बालाजी ज्योतिष संस्थान के पं। राजीव शर्मा का कहना है कि एक नवंबर को चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी तिथि एवं दोपहर 2:06 बजे तक परिधि योग रहेगा। इसके बाद शुभ &शिव योग&य रहेगा, जो स्त्रियों के लिए विशेष रूप से शुभ रहेगा। करवाचौथ व्रत स्त्रियों का सर्वाधिक प्रिय व्रत है। यूं तो प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को गणेश जी और चंद्रमा का व्रत किया जाता है, परन्तु इसमें सर्वाधिक महत्व है करवाचौथ का।
सौभाग्य की होगी प्राप्ति
तीनों संयोग पूजा पाठ व्रत उपवास के लिए अत्यंत मंगलकारी रहेंगे। इन योगों के चलते व्रती महिलाओं पर देवाधिदेव महादेव की कृपा रहेगी व जीवन में यश वैभव संपन्नता सौभाग्य और ऐश्वर्य प्राप्त होगा। इस दिन व्रत उपवास करने से सुहागिन महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति सरलता और सहजता से होगी।
चंद्रोदय रात्रि 8:14 बजे के बाद
कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी को यह व्रत किया जाता है, यदि दो दिन चंद्रोदय व्यापिनी या दोनों ही दिन न हो तो पहले दिन वाली चंद्रोदय ही लेनी चाहिए। सौभाग्यवती स्त्रियां अटल सुहाग, पति की दीर्घायु, स्वास्थ्य एवं मंगल कामनाओं के लिए व्रत करती है। यह व्रत सौभाग्य और शुभ संतान देने वाला होता है। भारतीय परम्परानुसार करवाचौथ का त्यौहार उस पवित्र बंधन का सूचक है जो पति-पत्नी के बीच होता है। हिन्दू संस्कृति में पति को परमेश्वर की उपमा दी गई हैं।
व्रत की शुरुआत
विभिन्न पौराणिक कथाओं के अनुसार करवाचौथ के व्रत का उद्गम उस समय हुआ था जब देवों और दानवों के बीच भयंकर युद्ध चल रहा था और युद्ध में देवता परास्त होते नजर आ रहे थे। तब देवताओं ने ब्रह्मा जी से इसका कोई उपाय करने की प्रार्थना की। ब्रह्मा जी ने देवताओं की करुण पुकार सुनकर उन्हें सलाह दी कि अगर आप सभी देवों की पत्नियां सच्चे और पवित्र हृदय से अपने पतियों के लिए प्रार्थना एवं उपवास करें तो देवता दैत्यों को परास्त करने में सफल होंगे। ब्रह्मा जी की सलाह मानकर सभी देव पत्नियों ने कार्तिक मास की चतुर्थी को व्रत किया और रात्रि के समय चंद्रोदय से पहले ही देवता युद्ध जीत गये। तब चंद्रोदय के पश्चात दिन भर से भूखी-प्यासी देव पत्नियों ने अपना व्रत खोला। ऐसी मान्यता है कि तभी से करवाचौथ व्रत किये जाने की परंपरा शुरू हुई।
चंद्रमा निकलने से पूर्व पूजा स्थल रंगोली से सजाया जाता है, तथा एक करवा सात सींक डालकर रखा जाता है। करवा मिट्टी का होता है, यदि पहली बार करवाचौथ चांदी या सोने के करवे से पूजा जाये तो हर बार उसी की पूजा होती है। फिर रात्रि में चंद्रमा निकलने पर चंद्र दर्शन कर अध्र्य दिया जाता है। चंद्रमा के चित्र पर निरन्तर धार छोड़ी जाती है तथा सुहाग और समृद्धि की कामनी की जाती है तथा पति व बुजुर्गों के चरण स्पर्श कर बने हुये पकवान प्रसाद में चढ़ाये जाते हैं। व्रत पूर्ण होने पर उनका प्रसाद पाते हैं।