बरेलीे: आदिवासी संगठित और प्रकृति के उपासक
बरेली (ब्यूरो)। आदिवासी उत्थान कल्याण समिति की ओर से संडे को भादों एकादशी पूजा का आयोजन हुआ। समिति के सचिव धनेश्वर ने कहा कि आदिवासी हमेशा से संगठित और प्रकृति का उपासक रहा है। कर्मा पूजा के अवसर पर समाज के लोग सुबह उपवास के साथ कर्मा वृक्ष की पूजा करते हैं, शाम को वृक्ष के विसर्जन के साथ भोजन ग्रहण करते हैं। कर्मा पूजा का उद्देश्य अच्छी फसल की पैदावार से है। समिति की ओर से राम गंगाघाट पर वृक्ष विसर्जन के दौरान बेलस खल्खो, सुबोध कुमार, डॉ। पवन कुमार, अमोन लकड़ा, लालन उमराव, अर्जुन भगत, बिलचन एक्का, विवेक आनंद और सोमे ङ्क्षसह आदि मौजूद रहे।
एकादशी को मनाते हैं
करमा प्रकृति देवता का प्रतीक राज्य कर्ता पूजा भादों एकादशी के दिन मनाया जाता है। एकादशी से पूर्व तीन लड़कियां जावा हेतु बालू उपवास रखकर नदी या तालाब से लाकर रखती हैं, जावा हेतु धान, गेहूं, चना, मटर, मई एवं सरसों को मिश्रित करते हैं, एवं कर्मा के दिन तीन लडक़े डाल लाते हैं। जावा, च्च्छी फसल की कामना हेतु स्च्च्छ भावना से उठाया जाता है, कर्मा शब्द का अभिप्राय है मानव जाति का सबसे बड़ा धर्म कर्म ही है, जो सर्वथा सत्य का प्रतीक है।
ये है मान्यता
मुगलकालीन शासनकाल में आदिवासियों का स्वतंत्र राज शासन था, संथालों के शासन की राजधानी चाय-चंपागढ़, मुण्डाओं का शासन सुतियाम्बे, रांची तथा उरांवों का शासन रोहताशगढ़ था । रोहताशगढ़ सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण था। सम्राट औरंगजेब रोहताशगढ़ को जीतना चाहता था। उन्होने दुर्ग पर एक-एक कर तीन बार चढ़ाई की, किन्तु तीनो बार उन्हे परास्त होना पड़ा और शर्मिंदगी महसूस हुई, चौथी बार वस्तुस्थिति की पूरी जानकारी तथा लुंदरी द्वारा शत्रु पक्ष से मिलने के बाद चढ़ाई की और रोहताशगढ़ पर मुगलों का कब्जा हो गया। किन्तु कोई भी स्त्री मुगलों के हाथ नहीं लगी। सारी प्रजा राजा उरगन ठाकुर के नेतृत्व में सोन नदी की एक गुफा में जा छिपे। यह गुफा कर्मा वृक्षों से अच्च्छादित होने के कारण गुफा के अन्दर का हिस्सा नजर नहीं आया और मुगल सैनिक उन्हे ढूंढ नहीं पाये तभी से इस कर्मा वृक्ष को ईश्वरिया रक्षक समझने लगे व वनदेवी ने कर्मा वृक्ष का स्वरूप धारण कर उरांव समुदाय की रक्षा की है।