सुभाषनगर में बना तपेश्वर नाथ मंदिर शहर की दक्षिण दिशा में स्थित है. श्रावण माह में यहां जलाभिषेक करने वाले का तांता लगा रहता है. शहर के सात नाथ मंदिरों में इस मंदिर इसका विशेष महत्व है. सुभाषनगर रेलवे पुलिया होते हुए यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है.

बरेली (ब्यूरो)। सुभाषनगर में बना तपेश्वर नाथ मंदिर शहर की दक्षिण दिशा में स्थित है। श्रावण माह में यहां जलाभिषेक करने वाले का तांता लगा रहता है। शहर के सात नाथ मंदिरों में इस मंदिर इसका विशेष महत्व है। सुभाषनगर रेलवे पुलिया होते हुए यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है।

मंदिर का इतिहास
तपेश्वर नाथ मंदिर साधु संतो की तपस्थली माना जाता है। मंदिर का पौराणिक इतिहास करीब 5000 वर्ष पुराना बताया जात है। बताते है कि पूर्व में यहां एक वन हुआ करता था। इसमें एक बाबा ने 400 वर्ष तक कठोर तप किया। उनके शरीर पर भालू के सामान बाल होने के कारण उन्हें भालूदास बाबा पुकारा जाने लगा। हिमालय से लौटते समय ध्रुम महर्षि के एक शिष्य ने भी यहां सैंकड़ो वर्ष तक तप किया और संतो की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव यहां विराजमान हुए और इस मंदिर का नाम तपेश्वर नाथ मंदिर पड़ा। श्रावण मास में यहां भक्तों का तांता लगा रहता है। तपोस्थली होने के कारण यहां आने वाले भक्त यहां बाबा का रुद्राभिषेक व जलाभिषेक करते है।

मंदिर की विशेषता
बाबा तपेश्वर नाथ मंदिर में श्रावण में बड़ी संख्या में भक्तों का तांता लगा रहता है। कछला, हरिद्वार आदि से जल लाकर कांवडिय़े यहां जलाभिषेक करते है। मान्यता है कि च्हां सच्चे मन से मनोकामना मांगने पर पूरी होती है। श्रावण मास के प्रत्येक सोमवार को शाम में यहां बाब का रुद्राभिषेक व महाआरती की जाती है। बड़ी संख्या में भक्त यहां जुटते है।

धोपेश्वर नाथ मंदिर

बरेली: कैंट में स्थित धोपेश्वर नाथ मंदिर आस्था का प्रमुख केंद्र है। पूर्व दक्षिण अग्निकोण में स्थापित इस मंदिर को महाराजा द्रुपद के गुरु एवं अत्री ऋषि के शिष्य ध्रुम ऋषि ने कठोर तप से सिद्ध किया। उन्हीं के नाम पर देवालय का नाम धूमेश्वर नाथ पडा जोकि बाद में धोपेश्ववर नाथ के नाम से जाना जाने लगा। यहां निजी वाहन व आटो से वीआइ बाजार कैंट होते हुए आसानी से पहुंचा जा सकता है।

मंदिर का इतिहास
मंदिर से जुडे लोग बताते है कि शिष्य धूम्र ऋषि महाराज द्रुपद के गुरु थे। एक समय उनके मन में जनकल्याण की कामना के लिए शिवङ्क्षलग स्थापित करने का सुविचार उत्पन्न हुआ। इस प्रयोजन के लिए उन्होंने अपने पांच शिष्यों को कैलाश से शिवङ्क्षलग के स्थापना योग्य पवित्र पाषाण लाने का आदेश दिया। उस काल में कैलाश पर्वत तक पहुंचने का मार्ग अत्यंत दुर्गम था। वहां तक पहुंचना बेहद मुश्किल था। मार्ग में कई प्रकार के जोखिम थे। ऋषि ने पांच शिष्यों को यह विचार कर भेजा कि इन पांचों में से कोई एक तो कार्य पूर्ण कर लौट ही आएगा। गुरु को संभावना थी की शिष्य अगले वर्ष तक लौट आएगे। लेकिन वर्ष बीतने के बाद भी जब शिष्य नहीं लौंटा। ऋषि अंत में निराश हो गए और हारकर उन्होंने गोधन के उपलों (कंडो ) का धोपा लगाकर साधना आरंभ कर दी, उसी धोपे में से जागृत अवस्था में शिवङ्क्षलग प्रकट हुआ उसी पवित्र स्थान को हम धोपेश्वर नाथ मंदिर के नाम से जानते हैं।

मंदिर की विशेषता
धोपेश्वर नाथ मंदिर का विशेष महत्व है। यचं सच्चे मन से मनोकामना मांगने पर पूरी होती है। श्रावण मास में यहां भक्तों की भीड़ लगी रहती है। यहां आने वाले भक्त बाबा का रुद्राभिषेक व जलाभिषेक करते है। भक्त बाबा के दर्शन करने के बाद यहां की वैष्णो देवी गुफा में दर्शन करते है। मान्यता है कि यहां बने तालाब में नहाने से चर्म रोग दूर होते है। श्रावण मास के अलावा भी यहां भक्तों की भीड़ लगी रहती है।

Posted By: Inextlive