बरेली: जंगल में आग की सेटेलाइट से निगरानी
बरेली (ब्यूरो)। उत्तराखंड के जंगल में लगी आग ने सभी को अल्र्ट मोड में डाल कर रख दिया है। ऐसे में शहर का वन विभाग भी अलर्ट मोड पर हो गया है। बरेली मंडल में सेटेलाइट की मदद से निगरानी की जारी है। कहीं भी आग लगने पर सेटेलाइट की मदद से कुछ ही मिनटों के अंदर ही डीएफओ, रेंजर, एसडीओ, फायर नोडल आदि को आग के लगने का पता चल जाएगा। वहीं आग कहां लगी है। इसके पूरे कॉर्डिनेट फायर नोडल को भेज दिए जाएंगे। हर एरिया पर सेटेलाइट के जरिए निगरानी की जाएगी। वन विभाग के कर्मचारियों को आग बुझाने वाले उपकरणों प्रदान किए गए हैं।
फॉरेस्ट एरिया में ज्यादा सजग
मंडल में पीलीभीत, शाहजहांपुर में फॉरेस्ट एरिया है। वहीं गर्मी में फायर लगने का काफी ज्यादा चांस हो जाते हैैं। तेज हवा के बीच अक्सर आग लगने की घटनाएं हो जाती है। इसकी वजह से अलर्ट रहने की काफी जरूरत होती है। जंगलों में आग लगने से वन एरिया तो प्रभावित होता है। वहीं वन संपदा को भारी नुकसान होता है। वहीं जंगल या फिर कहीं भी आग लगे तो सारे कॉर्डिनेट अधिकारी को भेजे जाते हैैं।
होती है पूरी जिम्मेदार
आग लगने का जैसे ही पता चलता है उस सिचुएशन में फायर ऑफिसर को जल्द से जल्द वहां पहुंचना होता है। कर्मी को फायर लगने के पूरी कॉर्डिनेट्स दिए जाते हैैं कि आखिर कहां पर आग लगी हैै। इसके अलावा कर्मी को आग पर काबू पाकर उसे बुझाना होता है। वहीं जैसे ही आग बुझ जाए तो उसकी फोटो शेयर करनी होती हैैं। सेटेलाइट विजन के जरिए हम बड़ी अनहोनी पर काबू पा सकते हैैं। इसकी रियल टाइम मॉनिटरिंग की जा रही है। इसके लिए एमओडीआईएस और एसएनपीपी-वायरस का इस्तमाल किया जा रहा है। फायर सेंसिटिव स्टेट में उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और महराष्ट्र है। वहीं मई, जून, जुलाई आग लगने के लिए काफी सेंसिटिव माने गए हैैं।
सेटेलाइट के जरिए निगरानी करने के जहां कई फायदे होते हैं। वहीं कई नुकसान भी हैैं। आईएफएस दीक्षा भंडारी ने कहा कि जहां सेटेलाइट निगरानी के कई फायदे हैैं तो कई सारे नुकसान भी अगर कहीं पर कोई किसी कचरे में आग लगा देता है तो उसके भी कॉर्डिनेट्स आ जाते हैैं। इसकी वजह से लोगों को काफी परेशानी भी होती है। वैसे यह हमारा काम है तो हम तो इसे करते ही हैैं।
हम लोग पूरी तरह से एक्टिव है। कही हमारी पूरी कोशिश रहती है कि कहीं भी कोई नुकसान न हो। अगर कहीं आग लगते हैैं तो उसकी डीटेल हमारे पास तुरंत आ जाती है।
दीक्षा भंडारी, आईएफएस