BAREILLY NEWS : बाबुल गीत पर नहीं अब डांस करती विदा होती हैं दुल्हनें
बरेली (ब्यूरो)। बाबुल तेरी बगिया की मैं तो हूं इक चिडिय़ा रे, छोड़ तेरी बगिया मुझे घर पिया का सजाना है जब कभी विवाह समारोहों में दाता फिल्म का यह गीत बजता है तो आज भी कई लोगों की आंखें नम हो उठती हैं। बरसों तक जिस बिटिया को अपनी जान से भी ज्यादा सहेज कर रखा, जिस दिन उसकी विदाई की घड़ी आती है, उस दिन बाबुल यानि पिता की क्या दशा होती है, यह बताने की आवश्यकता नहीं। एक दौर था, जब विदा के समय बेटियों के भी आंसू नहीं थमा करते थे। विदाई के समय बाबूल गीत गाए जाने की भी प्रथा थी, जिन्हें सुन कर उस माहौल में बड़े से बड़ा पत्थर दिल इंसान भी रो उठता था। बदलते दौर में न बाबुल गीत रहे, न बेटियों की आंखों में आंसू। मैरिज हॉल्स में आजकल जो दृश्य देखने को मिल रहे हैं, उनमें गल्र्स मोस्टली फिल्मी गीतों पर डांस करती हुई दिखाई देती हैं।
मेरे सइयां सुपर स्टार
आधुनिकता की होड़ में आज सोसाइटी कुछ इस कदर मॉडर्न होती जा रही है कि पुराने रीति-रिवाजों को ताक पर रख दिया गया है। पहले जब घर में विवाह समारोह होता था तो हर रस्म के हिसाब से गीत गाए जाते थे, लेकिन अब मॉडर्न बेटियों को वो सब ओल्ड फैशन्ड लगने लगा है। एक समय था, जब वरमाला के समय पलकें झुकाए हाथों में वरमाला लिए दुल्हन जब विवाह स्थल में प्रवेश करती थी तो उसकी वे झुकी पलकें उसकी सुंदरता में चार चांद लगा दिया करती थीं। यहां तक कि वर के गले में वरमाला पहनाते समय भी वधु की पलकें ऊंची नहीं हुआ करती थी पर आज जैसे सब कुछ बदल गया है। आज विवाह स्थल पर गल्र्स मेरे सइयां सुपर स्टार जैसे गीतों पर थिरकती हुई एंट्री करती हैं। वह लाज, जो कभी बेटियों के लिए गहना कही जाती थी, आज गायब सी हो गई लगती है।
खो गए पुराने रीति-रिवाज
साहित्यकार डॉ। कृष्णराज कहते हैं कि शादी के रीति-रिवाजों में पहले विदाई के समय बाबुल गीत गाया जाता था, लेकिन आज के दौर में दुल्हनें रोती ही नहीं हैं। वे डांस करते-करते विदा हो जाती हैं। इसके साथ ही विदाई के समय बेटी अपने ऊपर से धान को फेंकती है। उन्होंने बताया कि इसके पीछे का लॉजिक यह है कि धान की तरह जैसे इस घर को पिरोया है, वैसे ही अब उस घर को एक साथ बनाए रखना। विवाह का मतलब होता है कि परिवार बनाने से लेकर संपत्ति बढ़ाने तक सकारात्मक भूमिका निभाई जाए। धान उर्वरता और समृद्धि दोनों का प्रतीक है। इसलिए बेटी धान की तरह परिवार को जोड़े रहे।
साहित्यकार सिया सचदेव ने बताया कि बेटी की विदाई के पल बहुत ही भावुक होते हैं। अपनी बेटी के लिए हर माता-पिता योग्य वर और ऐसा ससुराल खोजने की कोशिश करते हैं, जहां उसे कोई तकलीफ न हो। बेटी के सुखमय जीवन के लिए विदा करते समय अगर माता-पिता उसे शिक्षा देते हैं कि अब तक इस घर की लाज बचा कर रखी है, अब उस घर में लाज को बनाए रखना। बाबुल गीत में यह ही बात पिता द्वारा विदाई के समय गीत गाकर कही जाती थी। क्रेज हुआ कम
पहले लडक़ी की शादी से पहले मंडप में महिलाएं गीत गाती थीं, बाबूल मोरे नैहर मोरो छूटो जाए ये गीत गाते समय उनकी आंखों से भी आंसू बह उठते थे, लेकिन आज के दौर में इसका क्रेज ही कम हो गया है। बहुत ही कम लोग हैं जो विदाई गीत गाते हैं। आज के टाइम में लोग परंपराओं को निभाने में नहीं, बल्कि बाहरी साज-सज्जा को निखारने में ही अपना धन और समय अधिक व्यस्त करने लगे हैं।
भारतीय समाज में विवाह के अवसर पर बेटी को विदा करते समय बहुत ही भावनात्मक पल होते हैं। उस समय एक पिता के मन में कई विचार और भावनाएं जन्म ले रहे होते हैं। विदा के ये पल सबसे दुखद होते हंै, लेकिन आज पहले जैसा कुछ नजर नहीं आता।
-डॉ। मीता गुप्ता, हिंदी प्रवक्ता
-डॉ। हितु मिश्रा, शास्त्रीय एंव लोकगायिका