बरेली ब्यूरो । आप लोगों ने कई लोग ऐसे देखे होंगे जो खुद से ही बाते करते हुए चलते हैैं. इन्हें एक समय बाद यह महसूस होना बंद हो जाता है कि सामने वाला क्या कर रहा हैै उनके बारे में क्या सोच रहा है. उन्हें सिर्फ अपनी दुनिया से मतलब है.

बरेली (ब्यूरो)। आप लोगों ने कई लोग ऐसे देखे होंगे, जो खुद से ही बाते करते हुए चलते हैैं। इन्हें एक समय बाद यह महसूस होना बंद हो जाता है कि सामने वाला क्या कर रहा हैै, उनके बारे में क्या सोच रहा है। उन्हें सिर्फ अपनी दुनिया से मतलब है। आसान भाषा में कहें तो सिजोफ्रेनिया से ग्रस्त पर्सन अपनी एक इमेजिनरी दुनिया बना लेता है। जहां वह खुद से बात करता है, खुद को समझाता है और सेल्फ ड्रिवेन पर्सनालिटी से ही सहीं और गलत के डिसीजन भी एक्सपेक्ट करता है। ऐसे लोगों को आम बोल-चाल की भाषा में लोग पागल तक कह देते हैैं।

क्या है सिजोफ्रेनिया
सिजोफ्रेनिया एक गंभीर मानसिक बीमारी है, जिसकी संख्या दिन पर दिन बढ़ती जा रही है। इस बीमारी में इंसानों को डिल्यूजन और हेलूसिनेशन दोनो होने लगते हैैं। इस बीमारी से ग्रस्त पेशेंट अपनी एक काल्पनिक दुनिया बना लेता है और वास्तविक दुनिया को भूल जाता है। पर्सन हेलूसिनेट करने लगता है कि लोग उसके बारे में बात कर रहे हैैं। उस पर्सन को आवाजें सुनाई देने लगती है। इसकी वजह से उस पर्सन की सोचने-समझने की क्षमता पर काफी असर पड़ता है। इस बीमारी से ज्यादातर युवा वर्ग ही परेशान हो रहा है। 16 से 45 साल तक के लोगों में यह समस्या काफी हद तक पाई जा रही है।

प्रॉपर मेडिकेशन ही समाधान
सिजोफ्रेनिया को प्रॉपर मेडिकेशन से दूर भी किया जा सकता है, लेकिन इनीशियल स्टेज में यह प्रॉब्लम समझ नहीं आती है और धीरे-धीरे लोग इसके आदी हो जाते हैैं और यह प्रॉब्लम अपनी चरम सीमा पर पहुंच जाती है।

एटमॉसफेयर भी डालता है प्रभाव
स्पेशलिस्ट्स के अनुसार सिजोफ्रेनिया कई वजहों से लोगों को हो सकती है। आज के टाइम में सभी लोग खुद में ही इतने बिजी हो गए है कि उन्हें दूसरों की बाते सुनने और समझने का समय ही नहीं है। कई बार लोग अपने अंदर की बातें शेयर नहीं कर पाते हैैं और खुद को सभी लोगों के बीच होकर भी अकेला पाते हैैं। ऐसे में अपने आप को इमोशनल सपोर्ट देने के लिए ऐसे पर्सन इमैजिनरी दुनिया बना लेते हैैं।

ये भी हैं कारण
जेनिटिक लक्षण- कई लोगों को यह समस्या जेनिटिक डिसऑर्डर की वजह से होता है।

न्यूरोन का इमबैलेंस- मस्तिष्क में न्यूरोट्रांसमीर यानी की डोपामाइन, सेरोटोनिन नाम के कुछ न्यूरॉन इम्बैलेंस हो जाते हैैं। इस वजह से प्रॉब्लम पैदा होती हैै।

नशीले पदार्थ का सेवन- कई बार लोग नशीले पदार्थ का सेवन करने करने लगते हैैं, जिसकी वजह से धीरे-धीरे लोगों की सोचने-समझने की क्षमता कम होने लगती है।

बिहेवियर और कॉगनेटिव बिहेवियर थैरेपी
एमजेपीआरयू से साइकोलॉजी रिसर्च स्कॉलर शैलेश शर्मा, जो सिजोफ्रेनिया की कई विधाओं पर काफी समय से रिसर्च कर रहे हैैं। उन्होंने बताया कि बिहेवियर और कॉगनेटिव बिहेवियर थैरेपी के जरिए इस बीमारी को ठीक किया जा सकता है, लेकिन इसमें पर्सन को रेगुलर मेडिकेशन करते रहना चाहिए। इसके अलावा शैलेश शर्मा ने बताया कि योग थैरेपी के जरिए भी इस प्रॉब्लम को दूर किया जा सकता है।

क्या हैं लक्षण
-ओवर स्ट्रेस
-भ्रम
-डिप्रेशन
-अकेले रहना ज्यादा पसंद आना
-बिहेवियर चेंज महसूस होना
-दिन भर खुद में बातें करना
-आवाजें सुनाई देना
-इमेजिनरी पर्सन को साथ में महसूस करना
-इमोशनलेस हो जाना
-ऐसी चीजों को इमेजिन करना, जो हैै ही नहीं
-ऊंची-ऊंची बातें करना
-खानपान, रहन-सहन का ध्यान न रखना

सिजोफ्रेनिया पर हैैं कई बुक्स
-थ्राइव विद सिजोफ्रेनिया
-द क्लिफ ऑफ सिजोफ्रेनिया
-वड्र्स ऑन बाथरूम वॉल
-द सेंटर कैन नॉट होल्ड: माई जर्नी थ्रू मेडनेस
-मी, माईसेल्फ एंड दैम

ये हैैं मूवीज
-कार्तिक कॉलिंग कार्तिक
-अ ब्यूटीफुल माइंड
-सेवेज ग्रेस
-बैनी एंड जून


मैैं लोगों की मदद के लिए रिहैबिलिटेशन सेंंटर चला रहा हूं। इसमें अलग-अलग थैरेपी के जरिए लोगों को ट्रीट किया जाता है और उन्हें सोशल लाइफ से रीइंटीग्रेट किया जाता है। सिजोफ्रेनियाग्रस्त लोगों के लिए निशुल्क परामर्श भी दिया जाता है।
शैलेश शर्मा, मनोसमर्पण रिहैबिलिटेशन सेंटर

मेंटल हॉस्पिटल में आए दिन इस तरह के पेशेंट्स आते हैं। इनमें सबसे ज्यादा ऑडिटरी हैलुसिनेशन के पेशेंट्स होते हैैं, जो चीजें इमैजिन करने लगते है। ऐसे में पेशेंट्स को प्रॉपर ट्रीटमेंट और अटैैंशन की जरूरत होती है साथ ही उन्हेंइमोशनल सपोर्ट भी मिलना चाहिए।
डॉ। आलोक शुक्ला, साइकाएट्रिस्ट

Posted By: Inextlive