संकट में 'सिंह साहब'
BAREILLY: बरेली कॉलेज के पूर्व पि्रंसिपल पर संकट के बादल गहराने लगे हैं। हाल ही में रिटायर हुए डॉ। आर पी सिंह के कार्यकाल को लेकर घोटालों का जिन्न बाहर निकल आया है। वित्तीय लेनदेन में गोलमाल पर अब तक कुंडली मारकर बैठा कॉलेज का बोर्ड ऑफ कंट्रोल भी हरकत में आ गया। करीब क् करोड़ रुपये की गड़बडि़यों पर ऑडिट रिपोर्ट को ट्यूजडे को बोर्ड मीटिंग में रखा गया। गंभीर आरोपों से घिरे पूर्व प्रिंसिपल पर कमिश्नर ने पांच मेंबर्स की जांच समिति बना दी है। यह कमेटी जांच के साथ ही उनपर किस तरह की कार्रवाई की जाए, इसपर भी विधिक राय देगी। फिलहाल उनकी पेंशन, फंड, नो ड्यूज, सर्विस रिकॉर्ड समेत सभी डॉक्यूमेंट्स को पास करने पर रोक लगा दी गई है।
सात साल बाद खुला खेलकॉलेज के तीन अलग-अलग बैंक खातों से वर्ष ख्00भ्, 0म् और 07 में सभी गड़बडि़यां हुई हैं। जिसकी तीन मेंबर्स की जांच कमेटी ने सीए एसके गुप्ता से ऑडिट कराया। जिसमें करीब क् करोड़ रुपयों में बेहिसाब गड़बडि़यां पाई गई। इनमें लाखों रुपए स्टाफ, टीचर्स और फर्म्स को रेवडि़यों की तरह बांटे गए। यही नहीं कई और मदों में लाखों रुपए खर्च कर दिए गए। जिनका कोई भी वॉउचर उपलब्ध नहीं कराया गया। तमाम खर्चे ऐसे थे जो बाजार भाव से ज्यादा के रेट पर खर्च हुए। ऑडिट रिपोर्ट में ऐसे तमाम खर्चो पर उंगली उठाई गई थी और जवाब भी मांगा गया था। इस रिपोर्ट को ख्8 जुलाई ख्007 को बोर्ड की मीटिंग में भी टेबल किया गया था। लेकिन तब से आज तक इन गड़बडि़यों पर ना तो जवाब मांगा गया और ना कोई कार्रवाई की गई। सात साल बाद ट्यूजडे को सपा जिलाध्यक्ष और बोर्ड के एग्जीक्यूटिव मेंबर वीरपाल सिंह यादव ने इन घोटालों को उजागर किया तो आरोप-प्रत्यारोपों का दौर शुरू हो गया। अधिकांश मेंबर का आरोप था कि बोर्ड इतने वर्षो तक इस घोटाले को दबाए रखा।
प्रॉस्पेक्टस के रेट में बड़ी हेर-फेरऑडिट रिपोर्ट में प्रॉस्पेक्टस की छपाई में तय रेट में बड़े पैमाने पर हेरफेर दिखाया है। वर्ष ख्00भ् में ज्ञान प्रेस से क्7.07 पैसे प्रति प्रॉस्पेक्टस की दर प्रिंट कराया गया। जबकि ख्00म् में हिंद प्रेस से 8.ख्7 पैसे और ख्007 में हिंद प्रेस से क्म्.80 पैसे प्रति तय किया गया। रेट में बड़े अंतर की वजह से कॉलेज को क्,फ्7,7म्0 लाख रुपयों का नुक्सान हुआ। वहीं, वर्ष ख्00म्-07 में पीजी के 8,000 प्रॉस्पेक्टस क्8.फ् पैसे प्रति की रेट से प्रिंट कराए गए। कुल क्,ब्ब्,0फ्क् रुपए खर्च हुए, जबकि भ् हजार फॉर्म बिके ही नहीं। जिस वजह से कॉलेज को 90,क्भ्0 रुपए का नुक्सान उठाना पड़ा। रिपोर्ट में इस बात कोई हवाला नहीं दिया गया कि प्रॉस्पेक्टस छपवाने के लिए कोटेशन मंगाए गए थे कि नहीं। जबकि कम से कम तीन फर्म्स से कोटेशन मंगाने चाहिए थे।
गोपनीय खर्च के बिल भी गोपनीय तीन वर्षो में कॉलेज ने गोपनीय कार्यो के नाम पर लाखों रुपए खर्च कर डाले। जिन फर्म्स को बिल का पेमेंट किया उनका ना तो वॉउचर उपलब्ध कराया और ना ही बताया कि यह खर्च क्या हैं। रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष ख्00भ् में 8,क्0,फ्म्फ् रुपए, ख्00म् में क्0,ख्0,0भ्ब् रुपए और ख्007 में क्भ्,7ब्,भ्भ्म् रुपए गोपनीय कार्यो में खर्च कर दिए गए। इसके अतिरिक्त वर्ष ख्00भ् में ब्ब्,फ्क्ब् रुपए भ् बिजली के बिलों पर खर्च किए गए। जबकि ऑडिट में कोई भी बिल प्रस्तुत नहीं किया गया। फर्म्स की विश्वसनीयता पर भी सवालकई ऐसे फर्म्स को बिल का पेमेंट किया गया, जिनकी विश्वसनीयता पर ही सवाल हैं। जैमनी कंसलटेंसी को पांच बिलों में करीब म्,8भ्,क्फ्9 रुपए पे किए गए। इसका ना तो पता दिया गया है और ना ही कोई टेलीफोन नम्बर। नई दिल्ली दिलशान नगर स्थित भ्9फ् नम्बर के फ्लैट के एक फर्म को दो बार 70,ब्00 और क्,8ब्,800 रुपए पे किए गए। फर्म का भी कोई फैक्स व टेलीफोन नम्बर तक नहीं दिया गया है। नई दिल्ली के एक और फर्म को फ् लाख रुपए का बिल पे किया गया। इसी तरह केएल बंसल, आगरा और मैसर्स महेशजैन, नई दिल्ली समेत अन्य फर्म्स से भी कई कार्य कराए गए। जिनके कोई भी कॉन्टेक्ट नम्बर नहीं दिए गए हैं। बरेली-आगरा-बरेली और बरेली-दिल्ली-बरेली के रूट के लिए फ्फ्,89ख् रुपए का टैक्सी किराया पे किया गया, जिसका बिल शो नहीं किया गया है।
जमकर बांटी हैं रेवडि़यां कॉलेज के फंड से एडवांस के रूप में स्टाफ और फर्म्स को जमकर रेवडि़यां बांटी गई। डॉ। एमसी रस्तोगी को फ्0,000 रुपए, अंजुम आदिल को क्0,000 रुपए, डॉ। वीके गुप्ता को भ्,000, स्टाफ के लिए क्,0क्,फ्भ्0 रुपए, पीए सक्सेना को क्0,000, कॉलेज स्टाफ को ख्,ब्भ्,म्70 रुपए का एडवांस पेमेंट किया गया। जिसमें से महज ब्भ् हजार रुपए की ही रिकवरी शो की गई। बाकी का कोई हिसाब नहीं है। इसके अलावा भ्भ्,फ्भ्0, क्फ्,000 समेत कई और हजारों रुपए एडवांस में बांट दिए गए। जिनका कोई लेखा-जोखा नहीं है। जनरल फंड में कोई रकम जमा नहींप्राइवेट स्टूडेंट्स से लिए जाने वाले चार्ज में से करीब ख्भ् परसेंट रकम कॉलेज के जनरल फंड में जमा होती है। लेकिन कॉलेज ने कर्मचारियों और अधिकारियों पर ही 7भ् परसेंट रकम खर्च कर डाली। यूजी स्टूडेंट से ब्0 और पीजी स्टूडेंट से म्0 रुपए अलग से फी चार्ज की जाती है। जो क्7,भ्क्,980 रुपए बनती है। इसके साथ ही हर स्टूडेंट से क्0 रुपए बतौर फॉरवर्डिग फी चार्ज की जाती है। जो ख्,98,ख्ब्0 रुपए बनती है। कुल ख्0,फ्0,ख्ख्0 रुपए जमा हुए। जिसमें से क्,क्क्,क्फ्ख् रुपए प्रिंसिपल और स्टाफ को दिया गया। इस मद में 7,ब्क्,7ब्क् रुपए भी खर्च किए गए। क्फ्,000 रुपए का और एडवांस स्टाफ को दिया गया। कई मदों में खर्च किया गया। लेकिन जनरल फंड में कोई भी रकम जमा नहीं कराई गई। जीयो के अनुसार, ख्भ् परसेंट ही अधिकारियों व कर्मचारियों पर खर्च होनी होती है। छात्रसंघ के भवन के निर्माण में भी गड़बड़ी पाई गई। भवन के निर्माण में 9,ख्8,म्ब्0 रुपए खर्च हुए। इंजीनियर का चार्ज अलग से दिया गया। इसके लिए कोई भी कोटेशन नहीं मंगाया गया और कई साइन हुए चेक बिना भुगतान के पड़े हुए मिले।
क्भ् दिनों में रिपोर्ट देना का निर्देश सपा जिलाध्यक्ष और बोर्ड के एग्जीक्यूटिव मेंबर वीरपाल सिंह यादव द्वारा रिपोर्ट पेश करने के बाद कमिश्नर ने इसे गंभीरता से लिया। उन्होंने बोर्ड की नई सेक्रेट्री डॉ। रजनी अग्रवाल, डॉ। एके चौहान, देवमूर्ति, डॉ। एसजी कृष्णनन और सीएमओ डॉ। विजय यादव की भ् मेंबर की कमेटी को पूरे मसले पर जांच के आदेश दिए हैं। इसके साथ ही क्षेत्रीय उच्च शिक्षाधिकारी एके गोयल को भी निर्देश दिया है कि सिविल और विभागीय कार्रवाई के लिए शासन से पत्राचार करें। आपराधिक कार्रवाई के लिए विधिक राय लेने के भी निर्देश दिए हैं। उन्होंने कमेटी को क्भ् दिनों के अंदर रिपोर्ट पेश करने को कहा है। इसके अलावा पूर्व प्रिंसिपल के टर्मिनेशन का भी मुद्दा खूब उछला। कमिश्नर ने हर ब् महीने में बोर्ड की मीटिंग कराने के निर्देश दिए हैं। प्रिंसिपल के गोल्ड मेडल पर भी रोक मीटिंग में पहले तो प्रिंसिपल द्वारा प्रस्तावित गोल्ड मेडल को ओके कर दिया गया, लेकिन तभी मेंबर्स द्वारा विरोध करने पर उनके प्रस्ताव को रिजेक्ट कर दिया गया। डॉ। आरपी सिंह ने जियोग्राफी में ज्यादा मार्क्स लाने वाले स्टूडेंट को गोल्ड मेडल देना का प्रस्ताव दिया था। जिसके लिए उन्होंने ख्0,000 रुपए का चेक भी जमा कराया था। मेरे खिलाफ राजनीतिक साजिश की जा रही है। इस रिपोर्ट पर दो बार जांच हो चुकी है। तब भी मैने सारे स्पष्टीकरण दे दिया था। तत्कालीन कमिश्नर ने जवाब से संतुष्ट भी हो गए थे। फिर तीसरी बार जांच क्यों कराई जा रही है। वो भी इतने वर्षो के बाद। मैं सक्रिय पॉलीटिक्स में कदम रख रहा हूं इसलिए। - डॉ। आरपी सिंह, पूर्व प्रिंसिपल, बीसबी