बरेली : जीवन चलता रहे, जरूरी हैैं मधुमक्खियां, लगातार कम हो रही संख्या से नेचर में डिसबैलेंस का खतरा
बरेली (ब्यूरो)। मधुमक्खियां, जिनसे हम काफी दूर भागते हैैं। उनका हमारी लाइफ से काफी गहरा नाता है। हमारे खानपान से लेकर इम्यूनिटी तक मधुमक्खियां काफी हेल्पफुल होती हैं, लेकिन इनकी संख्या धीरे-धीरे कम होती जा रही है। इससे नेचर में डिसबैलेंस का खतरा पैदा होता जा रहा है, मधुमक्खियां सिर्फ लजीज शहद ही नहीं देती हैैं, बल्कि परागण जैसे कई और अहम काम करती हैैं।
कई हुए शोधदुनिया भर में मधुमक्खियों पर कई शोध और अध्ययन किए जा चुके हैं। जंगल भी अब शहर में बदल रहे हैैं। ऐसे में सभी ने मधुमक्खियों के अस्तित्व को खतरे में डाल रखा है। संयुक्त राष्ट्र ने 2017 में ईको सिस्टम, कंपोस्ट प्रोडेक्शन और समग्र जैव विविधता के लिए मधुमक्खियों को बहुत जरूरी बताया हैै। शहद बनाने के अलावा मधुमक्खियां क्रॉस पॉलिनेशन में भी अहम रोल प्ले करती हैैं।
केमिकल ले रहा जान
साइंटिस्ट बताते हैैं कि दुनिया में मधुमक्खियों की लगभग 20,000 प्रजातियां हैं। ये मधुमक्खियां बहुत ही महत्वपूर्ण परागणकर्ता हैं। दुनिया भर में लगातार मधुमक्खियां काफी तेजी से घटती जा रही हैैं। इनकी घटती तादाद की सबसे बड़ी वजह इंसान ही हैैं। नेचुरल क्लाइमेट धीरे-धीरे खत्म हो रहा है। मोबाइल के रेडियेशन से भी हनी बी को काफी दिक्कत होती है। बड़ी-बड़ी बिल्डिंग की वजह से ये अपना रास्ता भटक जाती हैैं और अपनी मंजिल तक नहीं पहुंच पातीं। इसके अलावा कई बार किसान अपनी खेती को बढ़ाने के लिए कैमिकल का इस्तेमाल करते हैं। ऐसे में मधुमक्खियां परागण के टाइम कैमिकल के टच में आने की वजह से इंफैक्ट हो जाती है और मर जाती है।
मधुमक्खियों के कम होने या खत्म हो जाने का सीधा असर फ सल के उत्पादन पर पड़ेगा। आइंस्टाइन ने भी अपने कोट में कहा था कि जिस दिन मधुमक्खियां खत्म हो जाएंगी। उस दिन चार साल बाद इंसान भी खत्म हो जाएंगे। सरसों, टमाटर, सेब, बादाम और कॉफी जैसी कई ऐसी फ सलें है, जो मेनली मधुमक्खियों के क्रॉस पॉलिनेशन पर ही डिपेंडेंट होती हैै। जीपीएस से भी तेज सेंसेज
हनी बी की सेंसेज जीपीएस से भी तेज है। यह इतना तेज है कि उसकी एक्यूरेसी के आगे गूगल का जीपीएस भी फेल हो सकता है। हनी बी तीन किलोमीटर के दायरे में कहीं भी क्यों न हों, वे अपने छत्ते के पास बिना किसी बाधा के पहुंच जाती हैं। इंसान भी अपना रास्ता इतनी बेहरीन तरह से याद नहीं कर पाते, जितना शहद की मक्खियां कर लेती हैं।
तीन प्रकार की होती हैं मधुमक्खियां
1. वर्कर
2. ड्रोन
3. क्वीन
फ ार्मिंग में फ सलों में 20 से 30 प्रतिशत क्रॉस पॉलीनेशन मेें मदद मिलती है। इससे फ सलों में प्रोडक्शन बढ़ता है। शुद्ध शहद, बैक्स, प्रोपॉलिस, रॉयल जैली आदि कई बहुमूल्य उत्पाद प्राप्त होते हैैं। यह ग्रामीण क्षेत्रों में सेल्फ इंपलाइमेंट को बढ़ाने का बढिय़ा ऑप्शन है। लगभग 100 मौन बक्सों से 4.5 लाख की इनकम होती है। हनी बी का डंक है फ ायदेमंद
हनी बी के काटने से शरीर में कई एंटीबॉडीज का निर्माण होता है। डंक के साथ दो रासायनिक पदार्थ मिलकर गठिया बीमारी को ठीक कर सकता है। रॉयल जैली की मदद से एड्स में भी फ ायदा होता है। आईवीआरआई के कृषि एवं बागवानी एक्सपर्ट डॉ। रंजीत सिंह ने बताया कि मधुमक्खी के डंक से शरीर मेें प्रतिरोधक क्षमता विकसित होती है। अगर कोई मधुमक्खी काट ले तो शरीर फूल जाता है, जो कि सारी एंटीबॉडी को एक्टिव कर देता है।
थैरेपी के लिए होती हैैं यूज
कई देशों में बी स्टिंग थैरेपी काफी पुरानी और असरदायक है। इसमें बी वैनम बी का इस्तेमाल किया जाता है। इस थैरेपी में जीवित मधुमक्खियों के जहर का इस्तेमाल किया जाता है। जो बॉडी से टॉक्सिंग रिलीज कर देती हैैं। ऐसे में बहुत आवश्यक है कि उन्हें बचाने की दिशा में प्रयास किये जायें।
-डॉ। रंजीत सिंह, कृषि एवं बागवानी एक्सपर्ट
कृषि विज्ञान केंद्र हर साल मौन पालको के लिए निशुल्क प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करता है। वहीं लोगों को इसके पालन करने और समस्याओं का निवारण भी कराता है।
-डॉ। हंसराम मीणा, प्रेसीडेंट, कृषि विज्ञान केंद्र