स्वतंत्रा संग्राम में बरेली के क्रांतिकारियों ने शुरू से ही अपना इकबाल बुलंद किया हुआ था. इतिहास के जानकारों के अनुसार बरेली के क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी हुकूमत से हर मौके पर जमकर लोहा लिया.

बरेली (ब्यूरो)। स्वतंत्रा संग्राम में बरेली के क्रांतिकारियों ने शुरू से ही अपना इकबाल बुलंद किया हुआ था। इतिहास के जानकारों के अनुसार बरेली के क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी हुकूमत से हर मौके पर जमकर लोहा लिया। यह ही वजह रही कि आजादी के महानायक बने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी स्वतंत्रता संग्राम में बरेली के क्रांतिकारियों के साहस के कायल रहे और उनका हौसला बढ़ाने के लिए यहां आते भी रहे। महात्मा गांधी बरेली कितनी बार आए, इसको लेकर अलग-अलग बातें कहीं जाती हैं। इसके बाद भी यह स्पष्ट है कि आजादी से पहले वह तीन बार यहां आए और उन्होंने क्रांतिकारियों के साथ ही जनता से भी सीधा संवाद किया। बताते हैं कि उन्होंने बरेली दौरे में कुतुबखाना स्थित मोती पार्क और सिविल लाइन के जुबली पार्क में जनसभाएं भी कीं। उनसे जुड़ी हुई कई यादें अब भी यह शहर संजोए हुए है। बिहारीपुर कसगरान में उनकी समाधि स्थल भी इनमें से एक है।

गांधी जी के करीबी
महात्मा गांधी जी के बरेली दौरे के बारे में वरिष्ठ पत्रकार, साहित्यकार एवं बरेली के इतिहास की जानकारी रखने वाले डॉ। राजेश शर्मा बताते हैं कि यहां उस दौर के कांग्रेसी नेता पं। द्वारिका प्रसाद महात्मा गांधी जी के करीबी रहे। वह जब भी बरेली आए तो उन्हीं के यहां ठहरे। वर्ष 1920 में जब वह मुहम्मद अली और शौकत अली के साथ बरेली आए थे। तब उन्होंने यहां मोती पार्क में सभा की तो उन्हें देखने और सुनने को बड़ी संख्या में लोग एकत्रित हुए। बरेली में महात्मा गांधी ने उस दौर के दिग्गज स्वतंत्रता सेनानियों के साथ मुलाकात की ओर आंदोलन के बारे में चर्चा भी की। इसमें सेठ दामोदर स्वरूप, पंडित दीना नाथ मिश्रा, दरबारी लाल शर्मा, राम मूर्ति, मुहम्मद हसन, नवल किशोर आदि शामिल रहे।

एकता को किया मजबूत
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के बरेली आने की जानकारी इतिहासकार सुधीर विद्यार्थी भी अपनी पुस्तक बरेली एक एक कोलाज में देते हैं। इसके मुताबिक अक्टूबर 1920 और 1921 में महात्मा गांधी बरेली आए थे। तब उन्होंने यहां हिन्दू-मुस्लिम एकता को मजबूती प्रदान करने का काम किया था। इसके बाद यहां सभी लोगों ने एकजुट होकर अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंक दिया था।

आंदोलन में कूदे लोग
बताया जाता है कि महात्मा गांधी जब वर्ष अक्टूबर 1920 में बरेली आए थे तो उन्होंने यहां लोगों से असहयोग आंदोलन को सफल बनाने की अपील की थी। मोती पार्क में हुई सभा में उन्होंने लोगों से कहा कि आप लोग ब्रिटिश हुकूमत से डरते नहीं हैं, आप निडर हैं। मैं आपसे यही अपेक्षा करता हूं कि आप अपना हौसला ऐसा ही बनाए रखें। इसके बाद यहां लोगों ने इस आंदोलन में बढ़ चढक़र हिस्सा लिया। बताया जाता है कि तब स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पं। द्वारिका प्रसाद की पत्नी द्रोपदी देवी की अगुवाई में कुतुबखाना पर विदेशी चीजों की होली जलाई गई।

खोला था कॉलेज
डॉ। राजेश शर्मा के मुताबिक बरेली के दौरे के दौरान ही महात्मा गांधी ने कहा कि अगर आप में शक्ति हो तो आप अपने स्कूलों को स्वतंत्र बनाएं। अगर आप लोग ब्रिटिश हुकूमत से मिलने वाली इमदाद का बहिष्कार कर देंगे तो स्कूल खुद ही स्वतंत्र हो जाएंगे। उनकी इस अपील पर ही पं। द्वारिका प्रसाद ने तिलक विद्यालय खोला। इसमें वह खुद भी पढ़ाते थे। बाद में उनके इस विद्यालय में कई लोग पढ़े जो बाद में बड़े नेता भी बने। यह विद्यालय लंबे समय तक चला और बाद में पं। द्वारिका प्रसाद की पत्नी द्रोपदी देवी ने अपने छोटे बेटे गिरीश प्रसाद की याद में इस विद्यालय का नाम गिरीश प्रसाद मैमोरियल कॉलेज रख दिया।

द्रोपदी देवी भी रहीं सक्रिय
स्वतंत्रता संग्राम में पंं। द्वारिका प्रसाद की पत्नी द्रोपदी देवी ने भी सक्रिय भूमिका निभाई। बताया जाता है कि वह पं.जवाहरलाल नेहरू जी की बहन विजया लक्ष्मी पंडित की मित्र रहीं। इसके चलते ही उनका भी कांग्रेस में बड़ा कद हुआ करता था। महात्मा गांधी से भी उनका गहरा लगाव था। महात्मा गांधी जब वर्ष 1921 में एक बार फिर बरेली आए तो उन्होंने आजादी में महिलाओं की भूमिका को महत्वपूर्ण बताया। तब उन्होंने पंं। द्वारिका प्रसाद की पत्नी द्रौपदी देवी से असहयोग आंदोलन की रणनीति को लेकर चर्चा भी की। तब उन्होंने यहां जुबली पार्क में जनता को संबोधित किया।

महिलाओं ने भेंट की नकद राशि
इतिहास के जानकारों के मुताबिक वर्ष 1928 में महात्मा गांधी जी को फिर से बरेली आमंत्रित किया गया। तब साइमन कमीशन के विरोध में सेठ दामोदर स्वरूप की अध्यक्षता में कुतुबखाना स्थित मोती पार्क में जनसभा आयोजित हुई। इसमें 18 मई 1928 को महात्मा गांधी का जोरदार स्वागत हुआ। तब गांधी जी साहूकारा निवासी स्वतंत्रता सेनानी कालीचरन के यहां ठहरे। यहां उन्होंने आंदोलन की आगे की रणनीति के बारे में दूसरे आंदोलनकारियों से चर्चा की। यह भी जानकारी है कि मोती पार्क में महात्मा गांधी जी के विचारों से प्रभावित होकर महिला सभा की ओर से 1650 रुपये की सहायता राशि भेंट की गई।

पत्नी संग विराजे गांधी
बरेली में महात्मा गांधी के करीबी साहू गोपीनाथ, दीनदयाल मिश्र भी रहे। यह भी दिगर है कि आजादी मिलने के बाद ही साहू गोपीनाथ ने जोगी नवादा में स्वतंत्रता सेनानी कॉलोनी स्थापित की। यहां उन्होंने एक पार्क भी बनाया और इसमें महात्मा गांधी के साथ ही उनकी पत्नी कस्तूरबा गांधी की प्रतिमा स्थापित की। उनकी प्रतिमाओं के साथ ही पं। जवाहरलाल नेहरू की प्रतिमा भी स्थापित की गई। इस पार्क का लोकार्पण ही पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी की पत्नी ललिता शास्त्री के हाथों हुआ। यह पार्क देखरेख के अभाव में लंबे समय तक बदहाली का शिकार रहा। इस पार्क में पूरी कॉलोनी का पानी भरता था। इससे पार्क गंदे पानी का तालाब बना हुआ था। तीन साल पहले गांधी जयंती के अवसर पर ही दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने इस पार्क की बदहाली को अपनी खबर के जरिए उजागर किया था। इसके बाद नगर निगम ने इस पार्क की थोड़ी सुध ली और पार्क की स्थिति में थोड़ा सुधार हुआ। वर्तमान में इस पार्क में जलभराव तो नहीं है, पर स्थिति अभी भी बहुत संतोषजनक नहीं है।

शहर मे भी है महात्मा गांधी की समाधि
महात्मा गांधी की समाधि राजघाट दिल्ली में है। यही हम सब जानते हैं, पर बरेली वालों को यह भी जान लेना चाहिए कि उनकी चिता भस्म से यहां भी उनकी एक समाधि बनाई गई है। यह समाधि है बिहारीपुर कसगरान में। वर्तमान में इस समाधि स्थल की घोर अनदेखी हो रही है। इस समाधि स्थल के निर्माण की पूरी दास्तान इसके दीवार में ही अंकित है। लिखा गया है कि पूज्य बापू का बलिदान 30 जनवरी 1948 को हुआ। गांधी सम्मति के संस्थापक भूप नारायण आर्य द्वारा राष्ट्रपिता के बलिदानी शरीर की भस्मी राजघाट से लाकर इस यज्ञ स्थान पर सुरक्षित की। जिला व नगर गांधी जन्म शताब्दि सम्मति ने वर्ष 1970-71 के प्रथम जन्म शताब्दी समारोह के अवसर पर इसका नव निर्माण कराया। इस समाधि स्थल की देखरेख पहले शांति स्वरूप करते रहे। इसके बाद उनके पुत्र ज्ञान स्वरूप और फिर उनके पुत्र जितेन्द्र स्वरूप इस स्थल की देखरेख करते रहे। वर्तमान में इस सम्मति के अध्यक्ष जगदीश प्रसाद और मंत्री सुनील चौधरी हैं।

कोरोना काल के बाद हवन बंद
इस समाधि स्थल के संस्थापक भूप नारायण आर्यसमाजी थे। वह महात्मा गांधी जी के विचारों से इस कदर प्रभावित थे कि उनकी जनसभाओं में शामिल होना नहीं छोड़ते थे। उन्होंने ही इस समाधि स्थल पर हवन करने की परंपरा शुरू की थी। तब से यहां हर संडे का हवन होता था। सम्मति के मंत्री सुनील चौधरी ने बताया कि इस समाधि स्थल पर कोरोना काल में हवन की परंपरा को रोक दिया गया था। तब से यह परंपरा दोबारा शुरू नहीं हो सकी। अब यह समाधि स्थल जर्जर हाल में है। स्थानीय लोगों को भी इस समाधि स्थल की सही से देखरेख नहीं होने और नगर निगम की ओर से इसकी अनदेखी किए जाने का गहरा दुख है। बताया गया कि नगर निगम सिर्फ दो अक्टूबर और 30 जनवरी को ही यहां एक फूल भिजवा देता है।

Posted By: Inextlive