आर्मी की 'हॉर्स पावर' पर अटैक
शोर ने चुरा लिया चैन
विक्रम मेहरा एक मल्टी नेशनल कंपनी में इंप्लॉई हैं। ट्यूजडे रात सोसायटी में मैरिज पार्टी थी, फै मिली को एंज्वॉय करते देखा तो देर रात तक वहीं रहना ठीक समझा। रात में तक रीबन 3 बजे नींद आई, उसमें भी पार्टी डीजे का शोर आता रहा। सुबह 8 बजे बेटी को स्कूल भेजना था तो 7:30 बजे ही उठना पड़ा। केवल 4 घंटे सोने के बाद वह रोज की तरह 10 बजे ऑफिस पहुंच गए। सुबह बॉस ने काम बताया तो उसे भी टाल दिया। और कलीग्स से तो उस दिन कई बार हॉट-टॉक होते-होते बच गई। जब एक दिन नींद पूरी न होने पर मनुष्य की स्थिति ऐसी हो सकती है तो फिर उन बेजुबानों के बारे में सोचिए, जो कई महीनों से अपना रेस्ट ही पूरा नहीं कर पाए हैं। असल में हम बात कर रहे हैं 883 एटी बटालियन एएससी में रहने वाले घोड़े और खच्चरों की। इनका चैन और सुकून शोर में दब गया है। सुबह 5 बजे से रात 10 बजे तक ट्रैफिक का रश रहने की वजह से ये रेस्ट नहीं कर पाते। कभी हॉर्न की तेज आवाज उन्हें डिस्टर्ब करती है तो कभी तेज रोशनी उनका चैन चुराती है।कम हो गई क्षमता
वेटेरिनरी ऑफीसर कर्नल डीएस ग्रेवाल ने बताया कि रोड साइड में होने की वजह से बटालियन में रखे जाने वाले घोड़े रेस्ट नहीं कर पा रहे हैं। घोड़े आम तौर पर दिन में ही आराम करते हैं। पर दिन में उन्हें पीस ही नहीं मिल पा रही है। ऐसे में उनका डाइजेशन भी खराब हो रहा है। डाइट प्रॉपरली नहीं ले पा रहे हैं। नतीजतन उनकी हेल्थ अफेक्टेड हो रही है और वह अपनी ड्यूटी को बखूबी अंजाम नहीं दे पा रहे हैं। Exercise में problem
सुबह 5 बजे से घोड़ों को एक्सरसाइज कराई जाती है, पर इस समय रोड खुल जाने की वजह से ट्रैफिक काफी रहता है। कई बार तो इतना ट्रैफिक हो जाता है कि उनकी एक्सरसाइज ढंग से नहीं हो पाती। रोड के एक साइड से दूसरी साइड ले जाने के लिए काफी देर तक इंतजार करना होता है। घोड़ों को रेस्ट के लिए भी तय से कम समय मिल पाता है। इसके साथ ही शाम के समय होने वाली उनकी ट्रेनिंग भी काफी डिस्टर्ब होती है। दरअसल, अचानक से हॉर्न या किसी और शोर से घोड़ा भड़क जाता है। ऐसे में वह राइडिंग करने वाले व्यक्ति के साथ खुद को भी नुकसान पहुंचाते हैं। यहां कई घोड़ों में यह प्रॉब्लम देखी जा रही है। कम हो रही घोड़ों की उम्रवेटेरिनरी ऑफीसर डॉ। रामलखन के मुताबिक, घोड़े का स्वभाव पीसफुल प्लेस में रहने का होता है। घोड़े और खच्चर को अपना काम करने के बाद रेस्ट देना जरूरी होता है। हालांकि, इनकी नींद तो मैक्सिमम 5 घंटे में ही पूरी हो जाती है, पर रेस्ट के लिए कम से कम 8 घंटे चाहिए होते हैं। प्रॉपर रेस्ट न मिलने पर वह स्ट्रेस में आ जाते हैं। ऐसे में जानवर सबसे पहले खाना छोड़ देते हैं, इससे उनकी हेल्थ गिरने लगती है। इसके बाद उनकी इम्यूनिटी घट जाती है और उनकी कार्य करने की क्षमता प्रभावित होती है। ऐसे में उनकी उम्र भी कम हो जाती है। जंग के टाइम बेहद कारगर
883 एटी बटालियन एएससी में रहने वाले घोड़े और खच्चर जंग छिडऩे पर सेना के लिए बेहद मददगार साबित होते हैं। असल में आम दिनों पर सरहद के पास पहाड़ी चोटियों पर तैनात जवानों तक रशद घोड़े और खच्चर से ही पहुंचाई जाती है। हालांकि सामान्य दिनों में आर्मी आसपास के इलाकों से घोड़ों और खच्चरों को हायर कर उनकी सेवा लेती है। लेकिन इमरजेंसी की हालात में आर्मी को प्रशिक्षित जानवरों की जरूरत पड़ती है। ऐसे में ये बेजूबान देश की रक्षा में हमारी मदद करते हैं।यह साइलेंस जोन हैवास्तव में यह मिलिट्री रोड है पर लोकल एडमिनिस्ट्रेशन के दबाव की वजह से इसे सिविलियंस के लिए ओपन किया गया है। हमारी अपील है कि जो भी लोग इस रोड से गुजरते हैं, वह अपनी स्पीड कंट्रोल करें। यह साइलेंस जोन है यहां हॉर्न का प्रयोग बिल्कुल न करें। इससे घोड़ों को बहुत प्रॉब्लम हो रही है।-कर्नल संजीव कुमार, कमांडिंग ऑफीसर, 883 एटी बटालियनबेजुबानों के लिए दिखाएं दया883 बटालियन सेना का सामरिक ठिकाना है, यहां सेना के प्रशिक्षित घोड़े और खच्चर रहते हैं। ये आम रास्ता नहीं होना चाहिए पर यदि सेना आम लोगों को निकलने दे रही है तो यह हमारी जिम्मेदारी है कि बेजुबानों के प्रति दया दिखाएं। इनके स्वास्थ्य पर विपरीत असर न पड़े, इसको लेकर मैं रक्षा मंत्रालय से बात करूंगी।-मेनका गांधी, फाउंडर, पीपुल फॉर एनिमल्सरोड बंद कराने की साजिश
घोड़ों को कोई समस्या नहीं हो रही है, कुछ लोग रोड क ो बंद कराने के लिए ऐसा क ह रहे हैं। रोड के बंद होने पर बरेली के लोगों की प्रॉब्लम बढ़ जाएगी। लोगों को काफी घूम कर जाना पड़ेगा। इस रोड की वजह से सैटेलाइट चौराहे की ओर से आने वाला ट्रैफिक बंट जाता है और जाम की प्रॉब्लम काफी हद तक कम हो जाती है। -प्रवीण सिंह ऐरन, एमपी