Bareilly: दीपावली पर मिठास घोलने के लिए बरेली का मार्केट सज चुका है. करीब 5 करोड़ रुपए की मिठाइयां बरेलियंस का मुंह मीठा करने को बेताब हैं. वहीं दूसरी तरफ मिलावट का बाजार भी त्योहार की आड़ में आपका स्वाद कड़वा करने की तैयारी कर चुका है. इस मौके पर 'मिलावटीÓ मिठास की बात हम नहीं बल्कि आंकड़े साबित करते हैं. फेस्टिवल में मांग एकदम से बढ़ गई है. उसी के हिसाब से सप्लाई भी हो रही है लेकिन रॉ मैटीरियल का प्रोडक्शन नहीं बढ़ा है. क्लीयर है कि मिलावटखोर पूरी तरह से एक्टिव हो चुके हैं. दीपावली पर प्रोडक्शन डिमांड और सप्लाई के आंकड़ों पर आई नेक्स्ट रिपोर्टर अभिषेक मिश्रा की रिपोर्ट.


Market में ६० 60 quintal synthetic मावा इस दीपावली लगभग 2 लाख किलो मिठाई बाजार में उपलब्ध है। सोर्सेज के मुताबिक कई दुकानों पर दूध और बेसन से बनने वाली मिठाइयों में तरह-तरह की मिलावट का खेल होता है। दूध के केस में सिंथेटिक मावा बाजार में अपनी पैठ बना चुका है, जबकि बेसन में खसरी और मटर की मिलावट धड़ल्ले से चल रही है। श्यामगंज की दूध मंडी के दूधियों ने बताया कि 60 क्विंटल सिंथेटिक मावा मार्केट में सप्लाई हो रहा है।सेहत और जेब, दोनों से धोखा


मिठाई की दुकान पर कदम रखते ही आपको चमकीले बरक में लिपटी खूबसूरत मिठाइयां आकर्षित करती हैं। दरअसल इस चमक के पीछे खतरा है। अमूमन मार्केट में मिठाइयों पर लगने वाला बरक चांदी का बना हुआ होता है। मगर आजकल स्वीट्स पर एल्यूमिनियम या केमिकल का बना बरक यूज हो रहा है। चांदी के बरक का बाजारी भाव 650 रुपए प्रति 10 ग्राम बंडल होता है। इसमें 150 बरक होते हैं। वहीं उसी तरह का एल्यूमिनियम बरक महज 50 रुपए का बाजार में मौजूद है। ये व्यापारी के लिए मुनाफा हे लेकिन कस्टमर की सेहत का पूरी तरह से लॉस है। साथ ही कंज्यूमर की जेब के साथ बड़ा धोखा है। मांग बढ़ी पर production नहीं

श्यामगंज मंडी के कुछ लोगों ने बताया कि अमूमन शहर के मार्केट में दूध की 90,000 लीटर की खपत होती है। फेस्टिव सीजन के चलते ये 20,000 लीटर तक बढ़ गई थी। जबकि दीपावली पर ये मांग 30,000 लीटर तक पहुंच गई है लेकिन दूध का प्रोडक्शन कहीं से नहंी बढ़ा है। इसका नतीजा है कि रामगंगा, फरीदपुर, मीरगंज, भमौरा, नकटिया, नरियावल एरियाज से सिंथेटिक दूध और मावा की सप्लाई बेहिसाब हो रही है।लागत ज्यादा rate कम

नाम न छापने की कंडीशन पर सिटी के मशहूर मिठाई विक्रेता ने बताया कि 9 लीटर दूध से एक किग्रा पनीर बनता है, जबकि 5 लीटर दूध से एक किलो खोया बनता है। शुद्ध पनीर या छेना बनाने के लिए एक किग्रा पनीर की लागत ही 250 रुपए के ऊपर चली जाती है, जबकि मार्केट में 180 रुपए का पनीर अवेलेबल है। छोटे व्यवसायी दूध बाजार से डायरेक्ट सिंथेटिक पनीर और खोया की खरीद फरोख्त करते हैं। यही कारण है कि कम लागत पर दोहरे मुनाफे का खेल जोरों पर चल रहा है। व्यवसायी बताते हैं कि ईंधन, लेबर और रॉ मैटीरियल के रेट में हुई बेतहाशा वृद्धि के बाद रेट में 20 परसेंट का इजाफा हो चुका है। ऐसे में मुनाफा कायम रखने के लिए कई दुकानदार मिलावट का सहारा लेते हैं।बेसन में मटर की दालदूध के बाद सबसे ज्यादा मिठाइयां बेसन की बनती हैं। सोर्सेज की मानें तो बेसन में खसरी की दाल की मिलावट हो रही है। इसके अलावा मटर की दाल सस्ती होती है, इसलिए बेसन में इसकी मिलावट की जा रही है। हालांकि मटर की दाल बेसन में मिलाना सेहत के लिए नुकसानदेय नहीं है, मगर मटर के सस्ते होने से मिठाई बेचने वालों का मुनाफा बढ़ जाता है। बताशे वाली गली में नकली पिस्ता बात दूध और बेसन पर ही खत्म नहीं होती। मिठाई पर यूज होने वाले पिस्ता में भी व्यवसायी तीन गुना मुनाफा क्रिएट करते हैं। मिठाई पर लगा हुआ पिस्ता असलियत में रंगे हुए खरबूजे का बीज या मूंगफली का दाना होता है। इन्हें लंबा-लंबा काटकर मिठाई पर चिपकाया जाता है। ये आर्टिफिशियल पिस्ता मार्केट में आसानी से अवेलेबल है। आलमगीरीगंज में बताशे वाली गली में ये पिस्ता खुलेआम बेचा जाता है। Mustard oil भी मिलावटी
ऐसा नहीं है कि सिर्फ मिठाइयों में मिलावट आपको अपना शिकार बना रही है। खाद्य आपूर्ति एवं सुरक्षा विभाग के त्योहारी सीजन से पहले पड़े छापों में मस्टर्ड ऑयल में आर्जीमोन मिश्रित और बटर यलो से तैयार तेल मिला। जानकारों की मानें तो ये ऑयल सेहत के लिए बेहद खतरनाक है। त्योहार में मिलावटी ऑयल की आमद सिटी में बढ़ गई है। जेब ढीली कर रही शुगर फ्री मिठाईडायबटीज है तो क्या हुआ मिठाई का शौक आखिर बड़ी चीज है। यहां भी चुनिंदा दुकानों पर खेल चल रहा है। एक शॉपकीपर ने बताया कि शुगर फ्री मिठाई के बैनर तले एक्चुअल में नॉर्मल मिठाई ही बेची जाती है। होता सिर्फ इतना है कि उसमें मिठास कम कर दी जाती है लेकिन दामों का हेर-फेर गजब है। नॉर्मली   वहीं मिठाई 400 रुपए किलो की है, तो शुगर फ्री के नाम पर उसे 900 रुपए किलो में बेचा जा रहा है।क्या होता है synthetic मावा
एक दूध व्यवसायी ने नाम न छापने की कंडीशन पर बताया कि सिंथेटिक मावा बनाने के लिए पानी में साबुन, सोडियम हाइड्रॉक्साइड, वनस्पति तेल, नमक और यूरिया को मिक्स किया जाता है। इस मिक्चर को कुछ एमल्सीफाइस के साथ लोहे के बड़े-बड़े कड़ाहों में मिलाया जाता है। इन्हें तब तक चलाया जाता है जब तक कि इसका गाढ़ा घोल न तैयार हो जाए। ये घोल सफेद रंग का तैयार होता है। तैयार मिक्सचर में यूरिया या सोडियम सल्फेट ग्लूकोज या माल्टोज जैसे कुछ घुलनशील फर्टिलाइजर मिलाए जाते हैं। मावा में चिकनाई के लिए रिफाइंड ऑयल का यूज किया जाता है। नकली और असली में ये है difference  मैटीरियल     ओरिजनल की वैल्यू                         मिलावटी की वैल्यू  पिस्ता           1,800 प्रति किलो                           100 प्रति किलो बरक               650 रुपए बंडल                            50 रुपए बंडल  दूध              40-45 प्रति किलो                       4-5 रुपए प्रति किलो खोया               240-260 रुपए                             170-180 रुपए  गीला पनीर      220 रुपए प्रति किलो                      120 रुपए-150 रुपए  सूखा पनीर    280 रुपए प्रति किलो                                        —कैसे खोलेंगे मिलावट का भेद-ओरिजनल बरक को हाथ से पकड़ते ही वह घुल जाती है, जबकि एल्यूमिनियम या केमिकल से बनी हुई बरक घुलती नहीं है बल्कि हवा तक में उड़ती रहती है या जलाने पर ठोस गोली सी बन जाती है। * शुद्ध पनीर को हाथ में मलते ही चिकनाई महसूस होने लगती है। इसके अलावा खाने पर मीठा लगता है। * देसी घी में अरबी की घिसाई होती है। अगर देसी घी जमा हुआ हो तो मिलावट की संभावना प्रबल हो जाती है। देसी घी की खासियत होती है वह नॉर्मली जमता नहीं है।* रंगा हुआ पिस्ता हाथ से पकड़ते ही रंग छोड़ता है.    Shops in city छोटी शॉप्स         250 बड़ी शॉप्स           20 हमारे शहर में मिलावट के सैंपल टेस्ट कराने के लिए कोई लैबोरेटरी नहीं है। अगर हम रॉ मैटीरियल की चेकिंग करवाना चाहें तो ये पॉसिबल नहीं हो पाता है। मेनली छोटी दुकानों पर ये खेल चलते हैं। इसके लिए बरेलियंस का अवेयर होना जरूरी हो गया है। -राकेश कुमार सारस्वत, मिठाई एसोसिएशन ये खेल छोटे दुकानदार करते हैं। चांदी की बरक, खोया, दूध जैसी चीजों में त्योहारी सीजन में मिलावट आम बात हो गई है। उनकी वजह से रेप्युटेटेड शॉप्स के व्यवसाय पर भी असर पड़ता है। यही वजह है कि हम अपना दूध खुद की डेयरियों से लेते हैं। -राकेश अग्रवाल, ब्रजवासी शहर को एक लैबोरेटरी की दरकारमिलावट और सैंपलिंग को लेकर आई नेक्स्ट रिपोर्टर ने चीफ फूड एंड सेफ्टी ऑफिसर सुनील कुमार से की बात-आपके विभाग पर आरोप लग रहे हैं कि आप सिर्फ बड़े शॉपकीपर्स को टारगेट कर रहे हैं, छोटे शॉपकीपर्स को नहीं?ऐसा बिल्कुल नहीं है। बड़े शॉपकीपर खुद अपना स्टैंडर्ड मेंटेन करते हैं। अभी कुछ दिन पहले हमने डिस्ट्रिक्ट के देहात क्षेत्रों में भी मिलावट के खिलाफ छापेमारी की थी। सैंपल लखनऊ गए हुए हैं। शहर को एक लैबोरेटरी की सख्त दरकार है। क्या इस दिशा में कोई पहल हुई है? फूड सेफ्टी अथॉरिटी ऑफ इंडिया, दिल्ली के चेयर पर्सन के चंद्र मोइली ने 3 महीने पहले ही आईवीआरआई का निरीक्षण किया था। अगर एप्रूवल आता है तो लखनऊ में सैंपल न जाकर सिटी में ही चेकिंग हो सकेगी। इसका एक प्रपोजल एफडीए कमिश्नर अर्चना अग्रवाल ने भी शासन को भेजा था, जिसमें प्रत्येक मंडल के स्तर पर लैब की सिफारिश की गई थी। त्योहारी सीजन पर छापेमारी की कंडीशन क्या है? शासन के आदेशानुसार और टारगेट के आधार पर हम मावा, तेल, खाने के आइटम की जांच करते हैं। इसके अलावा शिकायतों पर भी छापेमारती करते हैं।  लोग सोचते हैं कि सैंपलिंग महज औपचारिकता होती है। कभी किसी को सजा नहीं मिलती? ये गलत है। अब तक लगभग 60 से 65 मुकदमे मिलावटखोरों पर दर्ज हो चुके हैं। एडीएम कोर्ट में पहुंचे मुकदमों पर जुर्माना और एसीएम कोर्ट में पहुंचे मामलों पर सजा और जुर्माना दोनों के प्रावधान हैं।

Posted By: Inextlive