'जहर' के खिलाफ इनकी कोशिश को सलाम
पॉलीथिन के खिलाफ सुमन ने अकेले शुरू की अवेयरनेस मुहिम
हर दिन 4 घंटे शहर में नई जगह जाकर करती हैं लोगों को जागरूक BAREILLY: एक ओर पॉलीथिन के यूज पर रोक लगाने में जब तब शासन-प्रशासन की कोशिशें दम तोड़ती दिखती हैं, तो वहीं शहर की ही एक महिला ने धरती के इस जहर के खिलाफ अकेले लड़ने का हौंसला दिखाया है। पॉलीथिन के खिलाफ छेड़ी गई ज्यादातर मुहिम के औंधे मुंह गिर जाने की कड़वी सच्चाई भी इनकी हिम्मत को तोड़ न सकी। किसी के साथ आने का इंतजार करने की बजाय अकेले ही इस मुश्किल लड़ाई को लड़ने की बीड़ा उठाया सुमन उपाध्याय ने। सोशल एक्टिविस्ट सुमन शहर में पॉलीथिन से होने वाले नुकसानों पर अकेले जनता में अलख जगाने का काम कर रही हैं। पॉलीथिन के खिलाफ आई नेक्स्ट की मुहिम में सुमन उपाध्याय की कोशिशों पर एक रिपोर्ट। गाय के दर्द से दिखी राहकरीब म् महीने पहले अक्टूबर में बीसलपुर से गुजरने के दौरान सुमन की नजरें वहां कूड़े के ढेर पर पड़ी। कूड़े के ढेर पर ही कचरे के साथ पॉलीथिन को खाते हुए एक गाय दिखी। सुमन को यह देखकर धक्का लगा। इसके कुछ दिन बाद ही उन्हें व्हाट्स एप पर एक वीडियो मिला। जिसमें पॉलीथिन खाने से बुरी तरह मुंह के इंफेक्शन से जूझते हुए दम तोड़ती गाय की हालत देखी। इस वीडियो ने सुमन को अंदर तक परेशान कर दिया। गो-माता को रोटी-चोकर देने के बजाए पॉलीथिन का जहर देने की इंसानी आदत पर उन्हे तकलीफ हुई। यहीं से उन्होंने पॉलीथिन के खिलाफ मुहिम शुरू करने का फैसला किया।
घर से रखी मुहिम की नींव दिल में पॉलीथिन के खिलाफ जंग छेड़ने का मन पक्का कर चुकी सुमन ने सबसे पहले घर से ही इस जहर के खिलाफ मोर्चा खोला। पॉलीथिन की जगह पेपर व जूट बैग्स के इस्तेमाल के साथ ही उन्होंने घर में रखी पॉलीथिन को स्टोर किया, जिससे इन्हें दुबारा इस्तेमाल में न लाया जा सके। इसके बाद अपने निवास ग्रीन पार्क कॉलोनी से उन्होंने मुहिम को रंग देने की कोशिशें शुरू कर दी। सोशल एक्टिविस्ट सुमन ने इसके लिए अपनी एनजीओ वंसुधरा जनकल्याण समिति का सहारा लिया। फ् नवंबर ख्0क्ब् से शुरू हुई इस मुहिम में सुमन ने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। उस दिन से सुमन रोजाना ब् घंटे पॉलीथिन के खिलाफ लोगों को अवेयर करने और इसका इस्तेमाल न करने की सीख लोगों को देती आ रही है। कदम बढ़ाया, कारवां बनता गयाघर से इस मुहिम को शुरू करना सुमन के लिए भी आसान न रहा। परिवार वालों ने पॉलीथिन के खिलाफ सरकारी मुहिम के भी टिक न पाने और लोगों की मानसिकता में बदलाव न आ पाने की कड़वी हकीकत दिखाई, लेकिन सुमन ने हार नहीं मानी। पहले घरवालों को राजी किया और फिर धीरे-धीरे शहर के बड़े हॉस्पिटल्स-नर्सिग होम्स को फ्री पॉलीथिन जोन बनाना शुरू किया। इसके बाद सुमन ने इस मुहिम में बेसिक व माध्यमिक स्कूल्स को जोड़ा। स्कूल्स के प्रिंसिपल्स से मिलकर छोटे बच्चों को पॉलीथिन फ्री शहर की मुहिम से जोड़ा। इसके बाद आर्ट ऑफ लिविंग के मेंबर्स को भी इस मुहिम में साथ लाई। धीरे-धीरे करीब भ् हजार से ज्यादा लोग उनके इस अभियान से जुड़ते चले गए।
प्रशासन-निगम से िमली सराहनामॉल व सुपर मार्केट में सामान के साथ पेपर बैग्स के लिए अलग से दाम चुकाने की परंपरा शुरू हुई। जिससे कि पॉलीथिन के यूज को रोका जा सके। इस बात ने सुमन को आइडिया दिया कि क्यों न मॉल के इस हाई कल्चर को ग्राउंड लेवल तक लाया जाएं। यहीं से सुमन ने बरेली में पेपर व जूट बैग्स बनाने वालों से संपर्क किया और एनजीओ के फंड से फेरी वालों, दुकानदारों और लोगों को पेपर बैग बांटकर पॉलीथिन यूज न करने की सीख दी। इसके बाद सुमन ने पूर्व डीएम संजय कुमार से मिलकर इस मुहिम को बड़े स्तर पर शुरू करने की अपील की। जिसे पूर्व डीएम ने खूब सराहा। इसके बाद सुमन ने निगम के साथ मिलकर पॉलीथीन यूज को रोकने के लिए जगह-जगह लोगों में मुफ्त पेपर बैग्स बांटे। उनकी इस मुहिम को नगर निगम ने भी बेहद सराहा।