बरेली में भी हैं धधकती हैं मौत की भट्ठियां
रूरल एरिया के साथ सिटी के थाना क्षेत्रों में भी बनती है कच्ची शराब
सिर्फ अभियान चलाकर हो जाती है खानापूर्तिBAREILLY: लखनऊ के मलिहाबाद में जहरीली शराब से फ्क् लोगों की मौत जैसी घटना बरेली में भी कभी हो जाए तो इस बात से इनकार नहीं किय जा सकता है, क्योंकि बरेली में कच्ची शराब की भट्ठियां दिन-रात धधकती हैं। जहां कच्ची शराब बनाने का कारोबार खुलेआम होता है। दस साल पहले बरेली में भी एक साथ ख्म् लोगों की जहरीली शराब पीने से जान गई थी। उस वक्त आबकारी और पुलिस के कई अधिकारियों को भी सस्पेंड किया गया था लेकिन अवैध शराब की भट्ठियां बंद नहीं हुई। टयूजडे को एक बार फिर डीआईजी के आदेश पर रेंज के सभी डिस्ट्रिक्ट में सीओ और इंस्पेक्टर के नेतृत्व में शराब के खिलाफ अभियान चलाया गया। अब देखना होगा कि सिर्फ अभियान तक पुलिस की कार्रवाई सीमित रहेगी या फिर हमेशा के लिए जहरीली शराब की बिक्री पर रोक लग जाएगी।
कटरी के सभी गांव में कच्ची शराब का धंधाकच्ची शराब सबसे ज्यादा कटरी से सटे गांवों में बनायी जाती है। कटरी से सटा शायद ही कोई ऐसा गांव होगा जहां कच्ची शराब न बनती हो। पुलिस और आबकारी विभाग को भी इसकी खबर रहती है। मीरगंज, फतेहगंज पश्चिमी, सुभाषनगर, कैंट, फरीदपुर और फतेहगंज पूर्वी थाना का एरिया में रामगंगा के किनारे सभी गांवों में कच्ची शराब बनायी जाती है। इसके अलावा नवाबगंज, बहेड़ी और आंवला तहसीलों के गांवों में भी कच्ची शराब की धड़ल्ले से बिक्री हाेती है।
शहर से सटे गांवों में भी बनती है शराब शहर के थाना क्षेत्रों के गांवों में भी कच्ची शराब की जमकर सप्लाई होती है। सबसे ज्यादा शराब कैंट थाना क्षेत्र के गांवों में बनती है। बभिया, चौबारी, चनेहटा, चनेहटी, मिर्जापुर व अन्य गांव इसके लिए काफी मशहूर हैं। सबसे ज्यादा बभिया बदनाम हैं। यहां तो हर घर में कच्ची शराब बनाकर बेची जाती है। बभिया में कच्ची शराब की वजह से एक महिला की आबरू लूट ली गई थी। पुलिस ने गांव में दबिश भी दी तो एक लाइन से सैकड़ों भट्ठियां नाले के किनारे बनी मिली थीं। कुछ दिन तक शराब नहीं बनी लेकिन फिर से यहां शराब की जमकर सप्लाई हो रही है। इसके अलावा सुभाषनगर के बेहटी और बिरिया नरायनपुर में भी कच्ची शराब बनाकर बेची जाती है। ऐसे तैयार करते हैं कच्ची शराबबरेली डिस्ट्रिक्ट में कच्ची शराब सुगर केन के प्रोडेक्ट से ही बनायी जाती है। सुगरकेन के रस, शीरा और गुड़ को गलाकर एक बर्तन या फिर प्लॉस्टिक में बंद कर गड्ढे में गाड़ दिया जाता है। हवा न पहुंचने से चार से पांच दिन में फ्रेगमेंटेशन स्टार्ट हो जाता है। इसे लहन कहा जाता है। लहन को भट्ठी के जरिए उबाला जाता है और उससे निकलने वाली भाप को बोतलों में भरा जाता है। यही भाप शराब बन जाती है और इसमें पानी मिलाकर सरकारी शराब से कम दामों में बेचा जाता है।
मिथाइल एल्कोहल से हो जाती है जहरीली शराब को एथाइल एल्कोहल से बनाया जाता है लेकिन कई बार कच्ची शराब बनाने वाले इसमें मिथाइल एल्कोहल मिला देते हैं। यही मिथाइल एल्कोहल जहर बन जाता है जिससे लोगों की जान चली जाती है। दरअसल एल्कोहल का केमिकल ट्रकों में एक शहर से दूसरे शहरों में भेजा जाता है। इस एल्कोहल में एथाइल और मिथाइल दोनों तरह के एल्कोहल होते हैं। कई ड्राइवर रास्ते में एथाइल एल्कोहल को चोरी से बेच देते हैं लेकिन एक ही जैसा रंग और गंध होने के चलते गलती से मिथाइल एल्कोहल भी बिक जाता है और फिर इससे बनी शराब जहर बन जाती है।