शहर में रेबीज की रोकथाम को लेकर हर साल लाखों रुपये खर्च किए जाते हैं. आंकड़ो के अनुसार पिछले वर्ष कुत्तों पर करीब 50 लाख और बंदरों पर करीब 10 लाख रुपये खर्च किया गया था. शहर में लगातार बढ़ रही कुत्तों की जनसंख्या बढ़ रही इसको लेकर कुत्तों को पकडक़र उनका वैक्सीनेशन और बदियाकरण किया जाता है. इसके अलावा बंदरों को पकडक़र उन्हें शहर दूर जंगलों में छोड़ दिया जाता है.


शहर में रेबीज की रोकथाम को लेकर हर साल लाखों रुपये खर्च किए जाते हैं। आंकड़ो के अनुसार पिछले वर्ष कुत्तों पर करीब 50 लाख और बंदरों पर करीब 10 लाख रुपये खर्च किया गया था। शहर में लगातार बढ़ रही कुत्तों की जनसंख्या बढ़ रही इसको लेकर कुत्तों को पकडक़र उनका वैक्सीनेशन और बदियाकरण किया जाता है। इसके अलावा बंदरों को पकडक़र उन्हें शहर दूर जंगलों में छोड़ दिया जाता है।

नगर निगम के डेटा के अनुसार इस साल अब तक कुत्तों की फैमिली पर करीब 16 लाख रुपये खर्च किए जा चुके हैं। इसमें इन कुत्तों का रेबीज फैलाने से रोकने के लिए वैक्सीनेशन करने से लेकर इनका इनके बर्थ कंट्रोल पर आया खर्च शामिल है। डेटा के अनुसार बर्ष 2024-25 में प्रति कुत्ते का खर्च 917 रुपये है। वहीं अब तक करीब 1700 से ज्यादा आवारा कुत्तों को पकड़ा जा चुका है।

बंदरों पर भी हुआ एक्शन
रेबीज बीमारी का वायरस फैलाने में कुत्तों के साथ-साथ बंदर भी जिम्मेदार है। इसलिए नगर निगम की ओर से समय-समय पर इनके ऊपर भी कार्रवाई की जाती है। निगम के दिए डेटा के अनुसार पिछले साल करीब 1200 सौ बंदरों को पकड़ा गया है जिन पर करीब 10 लाख रुपये का खर्च आया था। वहीं वर्ष 2024-25 में अब तक 300 के करीब बंदर पकड़े जा चुके है। इसमें प्रति बंदर पकडऩे का चार्ज 779 रुपये दिया जा रहा है। ये काम एक निजी संस्था को दिया जाता है।

इस संस्था का मिली है जिम्मेदारी
आवारा कुत्तों और बंदरों को पकडऩे के जिम्मेदारी टैंडर के जरिए निजी संस्थाओं को दी जाती है। ये संस्थाएं इनको पकड़े और ट्रीटमेंट करने का काम करती हैं। इस साल कुत्तों को पकडऩे की जिम्मेदारी निजी संस्था सोसाईटी फॉर ह्यूमन एंड एनीमल वैलफेयर को दी गई है। ये संस्था कुत्तों को पकडऩे, उनका वैक्सीनेशन करने और बर्थ कंट्रोल रोकने का काम करती है। ये शहर में जगह-जगह जाकर आवारा कुत्तों को पकड़ते हैं, सैल्टर होम लाकर उन कुत्तों का वैक्सीनेशन किया जाता है। इसके साथ-साथ बदियाकरण (बर्थ कंट्रोल) करके छोड़ दिया जाता है। वहीं साल 2024-25 में बंदरों को पकडऩे का काम इमरान कॉन्ट्रैक्टर को दिया गया है। ये संस्था शहर से बंदरों को पकडक़र उन्हें जंगल में छोडऩे काम करती है।

शहर में कुत्तों का आतंक बढ़ता जा रहा है। आजकल गलियों में आवारा कुत्ते बहुत हो गए हैं। घर निकलने में डर लगता है कहीं काट न लें। इन आवारा कुत्तों से बचकर रहना चाहिए।
शिवम राजपूत, सैनिक कालोनी

हमारे इधर आवारा कुत्ते बहुत हो गए हैं। हर साल इनकी संख्या बढ़ती जा रही है। जल्द ही इनके ऊपर कोई कार्रवाई नहीं की गई तो ये इंसानों का जीना मुश्किल कर देंगे।
बंटी सिंह, करमचारी नगर

रेबीज को रोकने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए जा रहे हैं। इस साल 1700 से ज्यादा कुत्तों को पकड़ कर बर्थ कंट्रोल किया गया है। पिछले साल करीब 1200 बंदरों को पकड़ा गया था। आवारा कुत्तों से सचेत रहें।
डॉ। आदित्य तिवारी
पशु चिकित्सा एवं कल्याण अधिकारी

Posted By: Inextlive