कविता, कहानी से कठिन है आलोचना लिखना
प्रयागराज ब्यूरो ।मेजर ध्यानचंद छात्र गतिविधि केंद्र, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज में राजकमल प्रकाशन समूह द्वारा आयोजित ज्ञान पर्व के तीसरे दिन की शुरुआत सिनेमा/रंगमंच की समीक्षा विषय पर आयोजित कार्यशाला से हुई। इस सत्र में बतौर विशेषज्ञ अमितेश कुमार ने बच्चों को सिनेमा और रंगमंच के समय और समाज से संबंध को समझने के गुर सिखाये। द्वितीय सत्र में शुद्ध पाठ की बुनियादी चुनौतियॉं विषय पर परिचर्चा हेतु प्रो। शिव प्रसाद शुक्ल, डॉ। अमृता और संचालक की भूमिका में संक्षेप रहे। डॉ। अमृता ने उसने कहा था कहानी के माध्यम से पाठ की अशुद्धियों के पहलुओं पर चर्चा की और प्रोफेसर शिव प्रसाद शुक्ल ने कहा कि संपादक, प्रूफ रीडर, लेखक और अध्यापक सभी की जिम्मेदारी है कि पाठ की शुद्धि बनी रहे, इस पर अपनी जि़म्मेदारी सुनिश्चित करें।यहां तो टहनी भी बचायी जाती है
तृतीय सत्र में हिंदी आलोचना का आलोचनात्मक इतिहास विषय पर प्रो.अमरनाथ से डॉ। आशुतोष और कुमार वीरेंद्र की बातचीत का रहा। अमरनाथ जी ने कहा कि लेखक का व्यक्तित्व स्वतंत्र होता है और होना भी चाहिए। इस हवाले से कुमार वीरेंद्र ने और डॉ। आशुतोष ने आलोचना प्रत्यालोचना पर सवाल किये जिसका जवाब अमरनाथ जी ने दिया। उन्होंने कहा कि कविता कहानी से कठिन है आलोचना लिखना और कहा कि आलोचना ख़ुद भी आलोच्य है। चतुर्थ सत्र में आदिवासी विमर्श और हिंदी साहित्य विषय पर परिचर्चा हेतु डॉ। जनार्दन, डॉ। वीरेन्द्र मीणा, डॉ। सुदीप तिर्की ने अपने विचार रखे। सुदीप तिर्की ने कहा आदिवासी साहित्य सुंदरता का साहित्य है यहां पर व्यक्ति ही नहीं फूल को, पत्ती को, टहनी को भी बचाने का प्रयास है। वीरेंद्र मीणा ने कहा कि आदिवासी विमर्श 1990 से नहीं है संविधान सभा में, जयप्रकाश मुंडा के समय(1940) के साथ ही शुरू होता है।