अक्षय नवमी पर शनिवार को शहर से गांव तक भगवान विष्णु की विधि विधान से पूजा अर्चना की गई. तमाम लोग इस पर्व को अक्षय नवमी के नाम से भी जानते हैं. पर्व पर आंवला पेड़ की पूजा करके उसी के नीचे लोगों द्वारा पकवान बनाए और खाए गए. पूजा पाठ के लिए जगह-जगह आंवला पेड़ के नीचे भक्तों की भीड़ देखने को मिली. 15 नवंबर को प्रबोधनी एकादशी तुलसी विवाह के बाद शुभ कार्यों का शुभारंभ होगा.

प्रयागराज (ब्यूरो)। अक्षय नवमी आंवला वृक्ष की पूजा करने वालों पर भगवान विष्णु व शिव की विशेष कृपा होती है। मान्यता है कि इस पर्व पर ऐसा करने वालों के घर सुख समृद्धि आती है। यही वजह रही कि शनिवार सुबह स्नान के बाद लोग आंवला वृक्ष के नीचे पहुंचे। यहां आंवला वृक्ष की विधि विधान से पूजा पाठ किए। इसके बाद वहीं पेड़ के नीचे खाना बनाए और खाए भी। भारद्वाज आश्रम, मिंटो पार्क, चंद्रशेखर आजाद पार्क सहित अन्य स्थानों पर आंवला वृक्ष के नीचे भक्तजनों की भीड़ दिखाई दी। सभी यहां पूजा पाठ और पकवान बनाने एवं खाने में व्यस्त दिखाई दिए।

स तरह से शुरू हुआ यह पर्व
आंवला वृक्ष के पूजन व उसके नीचे खाने की एक अहम वजह है। कहते हैं कि भगवान विष्णु के साले जालंधर की पत्नी वृंदा पतिव्रता थी। उसके इस तप बल से जालंधर सारे देवताओं को परास्त कर चुका था। पत्नी के तपोबल से वह अजेय बन गया था। इससे देवलोक में त्राहिमाम की स्थिति बन गई। फिर भगवान विष्णु ने लीला रची और जालंधर की पत्नी वृंदा के पतिव्रता धर्म को तोड़ दिए तो जालंधर की मृत्यु हुई। इससे कुपित होकर वृंदा ने भगवान विष्णु को पत्थर बनने का श्राप दिया था। विष्णु के पत्थर बनते ही भगवान शिव तक हिल गए। देवताओं के कहने पर वृंदा ने कहा था कि आज से विष्णु का यह पत्थर रूप शालिगराम के नाम से जाना और पूजा जाएगा। साथ ही वृंदा ने यह भी कहा कि आज से विष्णु के इस रूप के साथ तुलसी रूप में उनका नाम भी हमेशा जुड़ा रहेगा। इसके बाद अक्षय नवमी को ही भगवान विष्णु वृंदावन छोड़ कर मथुरा के लिए प्रस्थान किए। जाने से पूर्व वह आंवला वृक्ष के नीचे पूजा करके वृंदा को आर्शीवाद दिए थे। तभी से आंवला वृक्ष की पूजा व उसके नीचे खाने का विधान आरंभ हुआ।

आंवला वृक्ष की पेजा व उसके नीचे भोजन के पीछे एक धार्मिक वजह है। शास्त्रों में इन बातों के मर्म और कथाएं वर्णित हैं। तुलसी विवाह से शुभ कार्यों की शुरुआत होगी।
पं। विमल मिश्र, आचार्य

Posted By: Inextlive