विजेताओं की है कॉमनवेल्थ गेम्स पर नजर
प्रयागराज (ब्यूरो)। इससे पहले वह स्प्रिंट रेस करते रहे हैैं। उनके कोच केसी पानू ने उनसे कहा कि उनके लिए मैराथन में उतरने का यही सही समय है। इसके बाद उन्होंने इंदिरा मैराथन में अपना नाम दर्ज करवाया था। पहली रेस में जीत मिलने से खुशी तो मिलती है साथ ही यह भी पता लग जाता है कि उनकी तैयारी कितनी है और किस तरह से वह खुद को बेहतर बना सकते हैैं। वेलिएप्पा एक साधरण परिवार से आते हैैं उनके पिता किसानी करते हैैं।
वल्र्ड यूनिवर्सिटी में हुआ था चयन पर कोरोना ने बिगाड़ा खेल
महिला वर्ग में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाली निरमाबेन भरत जी ठाकुर ने बताया कि उनका लक्ष्य वल्र्ड यूूनिवर्सिटी में अच्छा प्रदर्शन करना है। बताया कि यह उनकी पहली मैराथन है। वह पिछले 11 महीनों से मैराथन की ट्रेनिंग अपने कोच विजेंद्र सिंह से ले रही हैैं। वह बैचलर ऑफ आर्ट्स की छात्रा हैैं। वर्ष 2019 में उनका वल्र्ड यूनिवर्सिटी में चयन भी हुआ था लेकिन कोरोना के चलते वह नहीं हो पाया। साथ ही उन्होंने बताया कि वह गुजरात से हैैं लेकिन वहा नासिक स्थित भोंषला आर्मी स्कूल से पढ़ाई और ट्रेनिंग ले रही हैैं। नीरमाबेन के माता पिता किसान हैैं और खेती से अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैैं।
दूसरे नंबर पर आना खुशी अनिल सिंह को नहीं देता खुशी
प्रयागराज के लोकल बॉय व पुणे भारतीय सेना में एएसआई पद पर तैनात अनिल सिंह जब इंदिरा मैराथन में दूसरे स्थान पर आए तो उन्हे इसकी बिल्कुल भी खुशी न थी, उन्होंने बताया कि वह अपने प्रदर्शन से खुश नहीं है यह उनका बेस्ट प्रदर्शन नहीं था। अनिल सिंह ने बताया कि वह 2019 में भी दूसरे स्थान पर थे और आज भी दूसरे स्थान पर हैैं, इसका अर्थ है कि दो सालों उनमें कोई सुधार नहीं आया है।
मिरजापुर की रहने वाली तामसी सिंह ने इंदिरा मैराथन में तीसरा स्थान हासिल करने के बाद बताया कि वह अब हर मैराथन में हिस्सा लेंगी। तामसी ने कहा कि जब उन्होंने मैराथन में दौड़ लगाने का निर्णय लिया था तब उनके रिश्तेदार और परिवार वालों ने उनसे नाराजगी व्यक्त की थी। हाालंकि उनके पिता ने परिवार वालों के अगेंस्ट जा कर मैराथन में हिस्सा लेनेे के लिए प्रोत्साहित किया था। जीतने के बाद खिलाड़ी की राह आसान हो जाती है, और अब मुझे लगता है कि मैैं आने वाले समय में और बेहतर प्रदर्शन कर पाउंगी। इसलिए अब हर मैराथन में वह हिस्सा लेने के लिए तत्पर हैैं।