इलाहाबाद हाई कोर्ट की पूर्णपीठ ने गंगा प्रदूषण मामले में विभागों निगमों व अधिकरणों में सामंजस्य नहीं होने तथा विरोधाभासी हलफनामा दाखिल कर जवाबदेही स्थानांतरित करने पर कड़ा रुख अपनाया है. पूछा कि राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल व केंद्र सरकार के जल शक्ति मंत्रालय के प्रदूषण मानकों में भिन्नता क्यों है? एएसजीआइ और भारत सरकार के अधिवक्ता से जवाब मांगा. पीआईएल पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस राजेश बिंदल जस्टिस एमके गुप्ता और जस्टिस अजित कुमार की पूर्णपीठ ने महाधिवक्ता अजय कुमार मिश्र से कहा कि वह आदेशों के अनुपालन पर हलफनामा दाखिल करें. कोर्ट ने मुख्य सचिव को जांच कर जरूरी दिशानिर्देश जारी करने का आदेश दिया है. अगली सुनवाई एक दिसंबर को होगी.


प्रयागराज (ब्‍यूरो)। एएसजीआइ शशि प्रकाश ने जलशक्ति मंत्रालय के हलफनामे में गंगा स्वच्छता अभियान के मद में तीन हजार करोड़ धन देने व खर्च का ब्योरा पेश किया। कोर्ट ने कहा रिपोर्ट बहुत अच्छी है परंतु जमीनी हकीकत कुछ और है। रिपोर्ट में नाले टैप हैं, गंदा पानी नहीं जा रहा। किंतु गंगा का प्रदूषण खत्म नहीं हो रहा। जितना उत्सर्जन है शोधन क्षमता उससे काफी कम है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की तरफ से बताया गया कि 154 एसटीपी का निरीक्षण किया गया तो इनमें 64 में एनजीटी मानक का पालन होता मिला और 42 में नहीं जबकि 48 बंद मिले। ऐक्शन रिपोर्ट राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को दी गई है। जल निगम के अधिवक्ता संजय ओम ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की निरीक्षण रिपोर्ट को विरोधाभासी बताया तो कोर्ट ने आश्चर्य जताया। महाधिवक्ता ने कहा कि वह स्वयं विभागीय कार्रवाई से संतुष्ट नहीं हैं। आश्वासन दिया कि कोर्ट को आदेश का पालन कर रिपोर्ट दी जाएगी। किसने क्या तर्क रखा


कोर्ट ने कहा, कितना पानी उत्सर्जित हो रहा है निगम को पता ही नहीं है। शोधन क्षमता से कम वाले एसटीपी बनाए जा रहे हैं। राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिवक्ता डा एचएन त्रिपाठी ने बताया कि 61 उद्योगों को नोटिस दी गई है 44 अधिकारियों के खिलाफ अभियोग चलाने की राज्य सरकार से अनुमति मांगी गई है। नगर निगम के अधिवक्ता एसडी कौटिल्य ने कहा कि एसटीपी बनकर तैयार होने तक गंगा में गिर रहे नालों का बायोरेमेडियल ट्रीटमेंट सिस्टम अपनाया गया है। जल निगम ने कहा नेशनल मिशन फार क्लीन गंगा के अनुमोदन से प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट पर डीपीआर बनाने के बाद एसटीपी निर्माण किया जाता है। जल निगम (ग्रामीण) के अधिवक्ता ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट व गंगा जल प्रदूषण पर दाखिल रिपोर्ट की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए। कहा आइआइटी कानपुर की रिपोर्ट बोर्ड की रिपोर्ट से भिन्न है। कोर्ट ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिवक्ता कुंवर बाल मुकुंद सिंह से स्थिति स्पष्ट करने के लिए कहा। याची अधिवक्ता विजय चंद्र श्रीवास्तव व शैलेश सिंह ने कोर्ट के तमाम निर्देशों का पालन नहीं होने की बात कही।

अधिकतम बाढ़ बिंदु का भी उल्लेख


ओमेक्स सिटी प्रोजेक्ट की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता विजय बहादुर सिंह ने हाईकोर्ट द्वारा अधिकतम बाढ़ बिंदु से गंगा किनारे पांच सौ मीटर तक निर्माण पर रोक लगाने पर आपत्ति की। कहा मास्टर प्लान पूरे प्रदेश में लागू है। इसके तहत केवल 200 मीटर तक निर्माण पर रोक है। 1974 की बाढ़ को आधार बनाया गया है। कंपनी ने 500करोड़ खर्च कर दिए हैं और प्रोजेक्ट को लटका दिया गया है। इसलिए सुनवाई का मौका दिया जाए।

Posted By: Inextlive