फटे टायरों पर दौड़ रही 'जिंदगी'
रोडवेज की ज्यादातर बसों के टायर हो चुके हैं खराब, नहीं होती स्टेपनी
परिवहन निगम की कंडम बसें यात्रियों को सफर में दर्द तो दे ही रही हैं। साथ ही ये बसें लोगों की जिंदगी के साथ भी खिलवाड़ कर रही हैं। दरअसल टायरों के घिस जाने के बाद भी उसे बार-बार इस्तेमाल किया जा रहा है। जो कभी भी हादसे का कारण बन सकती है। प्रयागराज के चार वर्कशॉप के अंदर तकरीबन चार दर्जन से अधिक रोडवेज की बसें टायर व स्पेयर पार्ट्स के अभाव में खड़ी है। जिनमें से डेढ दर्जन के करीब एसी बसें है.जो बसें सड़कों पर दौड़ रही है। उनकी भी कंडीशन बहुत अच्छी नहीं है। शनिवार को दैनिक जागरण आई-नेक्स्ट की पड़ताल में परिवहन विभाग की लापरवाही निकल कर सामने आई है। राम भरोसे है पूरा सिस्टमदैनिक जागरण आई-नेक्स्ट ने छह जुलाई को एक खबर प्रकाशित की थी। जिसमें वर्कशॉप में काम करने वाले टायर निरीक्षक से लेकर सी फोरमैन से बातचीत की थी। जिसमें निकल कर सामने आया था कि रिपेयर के लिए कई बसें महीनों से वर्कशॉप में खड़ी है। स्पेयर पार्ट्स व टायर के लिए मुख्यालय से डिमांड किया गया है। पर दो बाद भी डिमांड नहीं पूरी हुई। दैनिक जागरण आई-नेक्स्ट रिपोर्टर ने राजापुर स्थित तीन व झूंसी स्थित एक वर्कशॉप का स्पेयर पार्ट्स और टायर के बारे में अपडेट लिया गया। वर्कशाप में मौजूद सी फोरमैन और टायर निरीक्षक द्वारा बताया कि डिमांड का आधा भी स्पेयर पार्ट्स और टायर नहीं मिल पा रहा है। रिपोर्टर द्वारा लगातार सवाल पूछने पर एक स्टाफ ने दबी जुबान बोला सही तरीके से देखा जाये तो हर बस में स्टेपनी टायर के साथ लगा होना चाहिए। पर नहीं होता है। रिपोर्टर ने सिविल लाइन व जीरो रोड डिपो पर खड़ी बसों में स्टेपनी का पड़ताल किया तो वहां अधिकांश बसों में स्टेपनी ही नहीं था।
कंडक्टर ने खोली विभाग की पोल प्रयागराज से गोरखपुर जाने के लिए तैयार खड़ी थी बस रिपोर्टर - कंडक्टर साहब स्टेपनी कहां होता है थोड़ा दिखा देते एक न्यूज प्रकाशित करने के सिलसिले में फोटो लेना है कंडक्टर - काफी देर तक पहले इधर-उधर देखने लगा। कुछ देर बताया इस जगह पर स्टेपनी होती है। मगर इस वक्त नहीं है। रिपोर्टर - स्टेपनी का होना तो काफी जरूरी है अगर रास्ते में टायर खराब हो जाये तब क्या करेंगे कंडक्टर - बनाकर लगाएंगे रिपोर्टर - अगर आसपास कोई टायर बनाने वाला न हो तबकंडक्टर - टायर को लेकर पीछे से आ रही दूसरी रोडवेज की बस से ले जाएंगे
रिपोर्टर - ऐसे में बसों में बैठे यात्री काफी परेशान हो जाएंगे कंडक्टर - यह तो विभाग के बड़े अधिकारियों को सोचना चाहिए रिपोर्टर - आप लोग नहीं बोलते है कंडक्टर - क्या बोले जब लगा टायर ही घिसे हुये तो स्टेपनी की क्या उम्मीद किया जाये, रास्ते में ड्राइवर और कंडक्टर झेले फिर से चढ़ाई जाती है रबर - नए टायरों की कीमत ज्यादा होने के कारण टायरों को रिट्रेड किया जाता है। यानी कि एक बार घिस जाने के बाद टायरों पर फिर से रबड़ चढ़ाई जाती है। ऐसे रिट्रेड टायर आमतौर पर ट्रक आदि में लगाए जा सकते हैं। लेकिन सवारी गाडि़यों में इसे लगाना जान जोखिम में डालना है। टायर फटने से कई बार दुर्घटनाएं हो चुकी है। हादसे में कई लोग घायल भी हो गए हैं। टायरों को कई बार किया जाता है रिट्रेड वर्कशॉप से मिली जानकारी के मुताबिक बसों के अगले टायरों के खराब होने पर उसे रिट्रेड किया जाता है। इसके बाद उन टायरों को पीछे लगा दिया जाता है। इसके अलावा कुछ टायरों को इमरजेंसी के समय इस्तेमाल किया जाता है।- यहां रोडवेज की बसों में पीछे के टायर ही नहीं आगे के टायर भी रिट्रेड मिल जाएंगे।
- एक्सपर्ट के अनुसार रोडवेज की बसों में लगने वाले टायर की उम्र 65 से 70 हजार किलोमीटर चलने के बाद खत्म हो जाती है। - इसके बाद इन टायरों को नियमत: बदल दिया जाना चाहिए लेकिन यहां तो घिसने के बाद भी बदला नहीं जाता है। ड्राइवर्स की लापरवाही - एक्सपर्ट के अनुसार नियम से बसों में अगला टायर नया होना चाहिए। - पिछले पहिए में रिट्रेड टायर करीब 40 हजार किलोमीटर तक चल सकता है। - ड्राइवर की लापरवाही के चलते ज्यादातर टायर खराब हो जाते हैं। - वह सिर्फ बसों को चलाना जानते हैं - बस के टायर में हवा है या नहीं, इसके बारे में थोड़ा भी ध्यान नहीं देते - हवा न होने की वजह से टायर का किनारा फट जाता है। ---------------- - बसों के टायरों की लाइफ - 65-70 हजार किलोमीटर -पुराने टायरों का उतार कर तीन बार किया जाता है रिट्रेड - रिट्रेड टायर को 40 हजार किलोमीटर चलाकर किया जाता है कंडम - एक साल में प्रयागराज रीजन में इशु होता है नया टायर करीब 1200-एक माह में रिट्रेड किये जाते हैं करीब 900 टायर
- प्रयागराज रीजन में टोटल 595 है बसें, जिसमें से 110 सिविल लाइन, 105 प्रयाग, 75 जीरो रोड और लीडर रोड 95 में है। अभी चार टायर मिले हैं। अभी आगे और माल आने की उम्मीद है। कुछ एसी बसें टायर के अभाव में खड़ी है। क्योंकि एक एसी बस में कोई एक तो टायर खराब होता नहीं है कि एक टायर लगाकर काम चला जा सके। किसी के दो खराब है तो किसी के तीन। अधिकारी सब लगे है। सुरेश चंद्र यादव सी फोरमैन प्रयाग वर्कशॉप