Allahabad : मां की पूजा नवरात्र के सभी नौ दिन अलग-अलग रूपों में की जाती है. यह आस्था से जुड़ा मामला है. लेकिन रियलिटी में बेटियों के प्रयास कई बार नमन के योग्य होते हैं. गर्व की अनुभूति कराते हैं. नवमी के दिन मिलते हैं शहर की ऐसी नौ बेटियों से. पढि़ए और जानिए कौन हैं ये बेटियां...


नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमो नम: बेटी है तो कल है। हर कोई इसे कहता है लेकिन शायद मानता नहीं। तभी तो इलाहाबाद में सेक्स रेशियो 858 की चिंताजनक पोजिशन पर पहुंच गया है। इस नवमी पर हम सिटी की उन बेटियों के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्होंने अपनी हिम्मत, साहस और लगन के जरिए न केवल सोसाइटी में अपना मुकाम बनाया बल्कि उनकी कामयाबी की बदौलत हमें गर्व की अनुभूति भी होती है। पीछे नहीं हैं शहर की ये बेटियां
संगम की बेटियां नित नई उचाइयों को छू रही हैं। घर की चौखट से निकलकर कुछ ऐसी मिसालें पेश कर रही हैं जो बेटियों को लेकर दकियानूसी विचार रखने वालों के मुंह पर तमाचा हैं। ये देवी नहीं हैं लेकिन इनकी करनी में देवी का रूप दिखता है। गर्व की अनुभूति होती है। दूसरी लड़कियां इससे सबक लेकर आगे बढऩे का रास्ता तैयार करती हैं। मिसाल पेश करती हैं। वह मां-बाप को शादी के बाद छोड़ती नहीं है बल्कि ताउम्र उनकी सेवा करती हैं। उनमें बेटों के बराबर नहीं, बल्कि उनके आगे जाने का माद्दा है। घर से निकलेंगे तभी तो यह दिन देखने को मिलेगाऋतुषा आर्य


इस बेटी ने इंडियन जूनियर हॉकी टीम के इतिहास ने नया अध्याय जोडऩे में अहम किरदार निभाया है। रेलकर्मी पिता व टीचर मां की इस बेटी की फैमिली का स्पोर्टस से दूर-दूर तक कोई रिश्ता-नाता नहीं है फिर भी ऋतुषा ने एक सपना देखा। इस सपने को वह हर हाल में सच होते देखना चाहती थी, सो हर पल बस इसी के बारे में सोचती रहती थी। सच दे मूवी के टाइटिल सांग से इंस्पायर ऋतुषा की खेल प्रतिभा के बारे में परिवारवालों को पता चला तो एक पल के लिए उनके मन में डर भर गया। लड़की है। अकेले कैसे बाहर जाएगी। कुछ ऊंच, नीच हो गया तो जीवन भर पछताना पड़ेगा। जैसे तमाम सवालों ने परिवारवालों को परेशान किया लेकिन ऋतुषा पर इसका कोई असर नहीं था। उसे बस एक धुन थी और वह साबित करना चाहती थी कि डर के आगे ही जीत है। इसे फाइनली उसने साबित भी कर दिखाया। अब वह भारतीय सीनियर टीम का हिस्सा बनने को तैयार है।चैलेंज स्वीकार, तो मंजिल क्यों नहीं मिलेगीप्रेरणा वधावन

इस बेटी ने इलाहाबाद की पहली महिला डाइरेक्टर का तमगा अपने नाम किया है। पूर्व मेयर रवि वधावन की बेटी ने इलाहाबाद से स्कूलिंग की फिर लंदन व न्यूयार्क में हायर स्टडी। इंटरटेनमेंट की दुनिया में अपना सिक्का जमाने के लिए मैदान में आ गई है। उन्होंने अपनी फुल फ्लेज्ड डाइरेक्टेड मूवी में नील नितिन मुकेश व रिचा चढ्ढा को साथ लिया है। खास बात यह है कि उन्होंने अपनी पहली मूवी की 80 प्रतिशत की शूटिंग भी इलाहाबाद में ही पूरी की है। प्रेरणा इलाहाबादी गल्र्स के लिए सिर्फ एक बात कहती है कि उनको अपना ड्रीम पूरा करना है तो लगना होगा और रास्ते में चाहे जो चैलेंज आए स्वीकार करना होगा। बाधा देखकर रुकने की बजाय छलांग लगाकर बाधा पार करने का भरोसा अपने भीतर जगाना होगा। साथ देकर पहुंचाती हैं मंजिल तकविभा सिंह
सिविल लाइंस में रहने वाली विभा सिंह बीए की स्टडी कर रही है। वह महिलाओं के लिए लड़ी जाने वाली हर जंग में कूदने के लिए तैयार रहती है। बेसिकली, इसके पीछे का मकसद उनकी यह चाह है कि जो उन्होंने झेला है वह किसी को न झेलना पड़े। विभा बताती हैं कि उनकी कुछ फ्रेंड्स को शादी के बाद प्रताडि़त किया जा रहा था। उनके साथ भी कुछ युवकों ने जानसेनगंज चौराहे पर मारपीट की थी। पिता की मौत के बाद मां और विभा थी। ऐसे में वह खुद इस अन्याय के लिए सड़कों पर उतर आई। अब वह महिलाओं की लड़ाई में उनका हक दिलाने की कोशिश में जुटी हुई हैं। चाह है तो राह मिल ही जाएगीत्रिशा सिंह एजुकेशन के लिए जाने वाले इस शहर में त्रिशा सिंह ने शानदार इतिहास रच दिया है। रेलवेकर्मी पिता की इस बेटी ने एक साथ चार मेडिकल इंट्रेस क्वालीफाई किए। रिप्यूटेड जवाहर लाल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च, नीट, एम्स व सीपीएमटी में इन्होंने बेहतरीन रैंक पाई थी। त्रिशा के मन में बचपन से ही लोगों की सेवा करने भाव था, जिसके लिए उसको मेडिकल फील्ड अच्छी लगी और वह इसके लिए जी जान से जुट गई। त्रिशा के बड़े पापा भी डॉक्टर हैं। मरीजों के लिए मदद करते देख उसके भी मन में यह इच्छा जगी थी। किस्मत से लाचार फिर भी बोझ नहीं सरिता
बेटियों को बोझ समझने वालों की सोच पर सरिता की कामयाबी एक करारा तमाचा है। दोनों हाथ व एक पांव न होने के बाद भी सरिता अपंग जैसी नहीं है। कुदरत की नाइंसाफी के बाद भी उसने एक एग्जाम्पल सेट कर दिया है। एक पांव के बल पर सरिता जितने करीने से अपनी कल्पना को रंग देती है कि वह लोगों को चौंका देता है। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के बैचलर ऑफ फाइन आर्ट की डिग्री लेने वाली सरिता ने को स्टेट न नेशनल लेवल पर कई अवार्ड भी मिल चुके हैं। एक पांव और दोनों हाथ न होने के बाद भी सरिता किसी की मोहताज नहीं है। खुशहाली देना एक परंपरा हैडॉ। वंदना बंसल सूनी गोद में किलकारी भरने के शुरुआत डॉक्टर वंदना बसंल ने ही की है। सिटी में पहला टेस्ट ट्यूब बेबी सेंटर की स्थापना उन्होंने ने ही की। तब से लेकर आज तक वह सैकड़ों सूनी गोद को भर चुकी हैं। इतना ही नहीं बेहद हेक्टिक शेड्यूल व कई हॉस्पिटल की जिम्मेदारी होने के बाद भी वह अपना एक दिन चैरिटी के नाम करती हैं। नैनी में स्थिति वह अपने क्लीनिक में वीक में एक दिन जाती है और वहां पर महिलाओं की फ्री ऑफ कास्ट मदद करती हैं। अपनी प्रतिभा के बल पर उनका नाम न सिर्फ इलाहाबाद में बल्कि कई अन्य शहरों में भी है। काली का रूप भी धर सकती हैंबहादुर ऋतिका आमतौर पर चेन स्नेचिंग जैसी घटना के बाद पीडि़त रोने या शोर मचाने से ज्यादा कुछ नहीं करते हैं। लेकिन, सिविल लाइंस में रहने वाली ऋतिका ने अपनी बहादुरी से चेन स्नेचर्स को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया। हुआ यूं कि पिछले दिनों स्कूटी से आ रही ऋतिका को बाइक सवार स्नेचर्स ने सीएमपी ब्रिज के पास चेन छिन ली। इस झटके से ऋत्र्तिका की स्कूटी लड़खड़ा गई। बावजूद उसने हार नहीं मानी। तेज रफ्तार बाइकर्स स्पेचर्स का पीछा उसने खुद स्कूटी से करने लग गई। मेडिकल चौराहे के आगे वह पीछा किया। लेकिन, बदमाश गली में घुसकर भाग गए। इस दौरान ऋतिका ने बाइक का नंबर नोट कर लिया। वह तुरंत जार्जटाउन थाने पहुंची और बाइक नंबर बता कर पुलिस को सूचना दी। पुलिस ने तुंरत ट्रेस किया और दोनों बाइक स्नेचर्स को थोड़ी देर में गिरफ्तार कर लिया गया। जिद ने बदलने पर मजबूर कियारोजिता आमतौर पर हम दूसरे शहर या स्टेट जाते हैं तो फिर वहां पर कुछ बोलते नहीं हैं। कई बार गलत देखने या फिर खुद के साथ गलत होने पर भी चुप्पी साधे रहते हैं। लेकिन, इराक कंट्री से एमएनएनआईटी में स्टडी करने के लिए आई रोजिता ने अपनी लड़ाई लड़ी। संस्थान द्वारा दी जाने वाली डिग्री में यह मेंशन नहीं किया जाता था कि उसकी पढ़ाई हिंदी माध्यम से की है या इंग्लिश माध्यम से। रोजिता को इसके चलते जॉब से भी हाथ धोनी पड़ गई थी। इसके बाद बिना डरे वह इंस्टीट्यूट के खिलाफ खड़ी हो गई। यह प्रॉब्लम सिर्फ उसकी अकेले की नहीं थी, बल्कि ज्यादातर स्टूडेंट्स को यह प्रॉब्लम फेस करनी पड़ रही थी। कन्वोकेशन के दौरान राष्ट्रपति से डिग्री न लेने की जिद पर अड़ गई तो इंस्टीट्यूट एडमिनिस्ट्रेशन को भी झुकना पड़ गया। फाइनली उसने डिग्री पर एजुकेशन का माध्यम मेंशन करने का फैसला लिया।

Posted By: Inextlive