भगवान धनवंतरी के अवतरण दिवस के अवसर पर सोमवार को इलाहाबाद संग्रहालय के ऑडिटोरियम में विशेष कार्यक्रम का आयेाजन हुआ. विश्व आयुर्वेद परिषद प्रयाग एवं इलाहाबाद संग्रहालय के संयुक्त तत्वाधान में हुए आयेाजन के दौरान कार्यक्रम की शुरुआत भगवान धनवंतरी की पूजा और मंत्रोच्चार के बीच दीप प्रज्जवलन से हुई. इस मौके पर कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्व आयुर्वेद परिषद के अध्यक्ष डॉ. जे नाथ ने की. कार्यक्रम में चीफ गेस्ट प्रो. गिरीश चन्द्र त्रिपाठी रहे. इस मौके पर प्रयागराज के कुछ प्रमुख वैद्यगणों को धन्वन्तरि सम्मान से सम्मानित किया गया. साथ ही आयुर्वेद चिकित्सक वैद्यों ने अपने अनुभव भी सांझा किए.


प्रयागराज (ब्‍यूरो)। कार्यक्रम के दौरान विश्व आयुर्वेद परिषद के मार्गदर्शक मंडल के सदस्य डॉ। प्रेमशंकर पाण्डेय ने कहा कि भगवान धन्वन्तरि ने आयुर्वेद को आठ अंगों में सुव्यवस्थित किया। इसमें शल्य के क्षेत्र में उनके योगदान अतुलनीय है। इन्होंने 135 प्रकार के शल्य शास्त्रों तथा 300 प्रकार के शल्य क्रियाओं का अविष्कार किया। मधुमेह की चिकित्सा सर्वप्रथम उन्होंने ही शुरू की। परिषद सचिव डॉ। सुधांशु शंकर उपाध्याय ने बताया कि अष्टांग आयुर्वेद में शल्यशास्त्र प्रधान चिकित्सा व्यवस्था है। यह आशुकरि चिकित्सा है। जो यंत्र, शस्त्र, अग्नि, क्षार आदि साधनों द्वारा किया जाता है। इस दौरान अन्य वक्ताओं ने भी अपने विचार रखे। सभा के अध्यक्ष डॉ। जे नाथ ने आयुर्वेद को गौरवपूर्ण तथा समृद्धिशाली व्यवस्था बताते हुए उन रोगों पर प्रकाश डाला, जो यन्त्रों से दिखाई नहीं देता है। चीफ गेस्ट प्रो। त्रिपाठी ने कहा कि आयुर्वेद धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष चोरों का दाता है। विशिष्ट अतिथि प्रो। चन्द्रशेखर पाण्डेय ने आयुर्वेदिक समस्त आहार बिहार से स्वास्थ्य रक्षण पर प्रकाश डाला। इस दौरान बड़ी संख्या में आयुर्वेदाचार्य मौजूद रहे। धन्यवाद ज्ञापन परिषद के वरिष्ठ बाल्यरोग विशेषज्ञ डॉ। ब्रजेन्द्र सिंह रघुवंशी ने किया। संचालन सचिव डॉ। नरेन्द्र कुमार पाण्डेय ने किया।

Posted By: Inextlive