दाल छूटी, सब्जी भी रूठी, खाएं क्या
- थोक मंडी से फुटकर मार्केट तक बढ़ जाता है दो से दस गुना तक दाम
- विचौलियों व व्यापारियों की मनमानी व तरह तरह के टैक्स से पब्लिक की कट रही जेब prakashmani.tripathi@inext.co.in ALLAHABAD: महंगाई के चलते निचले तबके की थाली से दाल तो गायब हो चुकी है। ऐसे में थोक मंडी से फुटकर मंडी तक पहुंचने तक सब्जी का दाम भी आसमान छू रहा है। व्यापारी, बिचौलियों और तरह तरह के टैक्स के चलते सब्जी का दाम दस गुना तक वसूल किया जा रहा है। थोक और फुटकर के रेट का डिफरेंस चौंकाने वाला है। आलम यह है कि थोक मंडी में पचास पैसे से लेकर एक रुपए में मिलने वाली लौकी फुटकर मार्केट में क्0 से क्ख् रुपए में बिक रही है। आईनेक्स्ट ने रियलिटी चेक किया तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। सामान की क्वालिटी बनती है बड़ा कारणकिसान के घर से लेकर आपकी थाली तक पहुंचने में सब्जियों को एक लंबा सफर तय करना पड़ता है। किसान जब अपनी सब्जियां लेकर मंडी परिषद में पहुंचता है तो वहां उसके सामान की नीलामी होती है। जहां व्यापारी सबसे अधिक बोली लगाकर सामान को खरीदता है। उसके बाद उसे छोटे व्यापारियों को देता है। किसान के पास से खरीदे गए सामान में सभी तरह की क्वालिटी मिक्स होती है। ऐसे में छोटे व्यापारी थोक में ली गई सब्जियों को अपने गोदाम में ले जाकर उसकी छटाई करते हैं और उसमें तीन तरह की क्वालिटी को अलग-अलग करते हैं। उसके बाद वे उसे आढ़तियों को कोची यानी तौलाई के लिए देते हैं। जहां उन्हें बोरी की साइज के हिसाब से पांच से ख्0 रुपए तक प्रति बोरी का मूल्य देना पड़ता है। उसके बाद आढ़तियों के यहां से सामान की बिक्री शुरू होती है।
चुकाना पड़ता है मंडी का टैक्समंडी परिषद के अध्यक्ष सतीश कुशवाहा ने बताया कि मंडी में छोटे थोक व्यापारी माल को खरीदने पहुंचते है। यहां भी उन्हें खरीदारी के दौरान कोची यानी तौल के माल के अलावा निर्धारित रेट पर पैसे देने पड़ते हैं। उसके बाद माल को मंडी से ले कर जाते समय ढाई प्रतिशत टैक्स देना पड़ता है। इतना खर्च देने के बाद सब्जियों को अपनी लोकल छोटी मंडी तक पहुंचाने में कई जगह चौराहों पर ख्0 रुपए प्रति चौराहा के हिसाब से पुलिस वालों को देना पड़ता है। कुल मिलाकर छोटी लोकल मंडियों तक पहुंचने के पहले ही सब्जियों के दाम दोगुना से अधिक बढ़ चुके होते हैं। इसके बाद जब छोटे व्यापारी इन सब्जियों को फुटकर दुकानदारों को बेचने के पहले अपने खर्च के अलावा अपना प्राफिट जोड़ते हैं। इसके बाद वे सब्जियों को बेचते हैं।
फुटकर व्यापारी भी वसूलते हैं मनमाना दाम फुटकर मंडियों से माल लेने के बाद बाजार में पहुंचने तक लगने वाले माल भाड़े से लेकर सब्जियों के खराब होने की स्थिति और अन्य कार्यो के नाम पर फुटकर व्यापारी अपने हिसाब से सब्जियों का दाम वसूलते हैं। फुटकर सब्जी व्यवसायी सुभाष चंद्रा बताते हैं कि उन्हें भी फुटकर मंडी में कोची के साथ ही साथ टैक्स देना पड़ता है। उसके बाद माल को मंडी से दुकान तक लाने में भी अधिक खर्च लगने लगा है। इसके बाद सब्जियों के रख रखाव, दुकान में काम करने वाले लेबर व बची सब्जियों के खराब होने पर होने वाले नुकसान आदि का खर्च भी इसमें जुड़ता है। जिसके कारण सब्जियों का दाम अधिक हो जाता है। सरकारी लापरवाही भी बढ़ा रही दर्दमंडी से लेकर फुटकर व्यापारियों तक पहुंचते-पहुंचते सब्जियों के दो गुने दाम को लेकर मुंडेरा मंडी परिषद के अध्यक्ष सतीश कुशवाहा बताते हैं कि इसके पीछे सबसे बड़ा कारण मंडी परिषद के सचिव व अन्य अधिकारी की मनमानी है। सचिव व अधिकारियों द्वारा कई जगह पर विभिन्न सब्जियों मंडियों को गलत तरीके से संचालित करने की छूट दी जाती है। उन्होंने बताया कि मुंडेरा मंडी सूबे की पांच बड़ी मंडियों में से एक है। ऐसे में फाफामऊ व अन्य दूसरे जगह पर भी कई मंडियां संचालित होती हैं। जहां किसानों से माल लेकर मुंडेरा मंडी में भेजा जाता है। ऐसे में माल भाड़ा से लेकर अन्य दूसरे खर्च मुंडेरा मंडी तक पहुंचने वाली सब्जियों के दाम पहले से ही बढ़ जाते हैं। इतना ही नहीं तेलियरगंज चुंगी के पास भी गलत तरीके से वसूली होती है। ऐसे में अगर कोई व्यापारी पैसे देने से मना करता है तो उसे जबरन जुर्माना लगाते हैं। ऐसे में व्यापारी भी सिर्फ वसूली के पैसे ही देकर खुद को इन सभी समस्याओं से मुक्त कर लेता है। सतीश कुशवाहा ने बताया कि अगर प्रशासन चाहे तो बिचौलियों को हटाकर खुद ही सब्जियों की सप्लाई की जा सकती है। लेकिन ऐसा न करके छोटी छोटी कई मंडियों को संचालित होने दिया जा रहा है। जिससे विभिन्न प्रकार के खर्च व्यापारियों को कई बार देने पड़ते हैं। जिससे रेट लगातार बढ़ता जाता है।
सब्जियों के दाम बढ़ने के मुख्य कारण - व्यापारियों द्वारा छोटे व्यापारियों को उधार माल देना- मंडी परिषद के सचिव के सहयोग से शहर के आस पास कई छोटी मंडियों के होना
- थोक सब्जी मंडी का सेन्ट्रलाइजेशन ना होना - कोची, पल्लेदारी, भाड़ा आदि का खर्च कई बार होना - छोटे व फुटकर दुकानदारों द्वारा पालीथिन आदि का उपयोग - विभिन्न मंडियों में लगने वाला ढाई प्रतिशत टैक्स - हर चौराहे पर पुलिस द्वारा होने वाली वसूली - कई बार माल को तौलने में लगने वाला खर्च सब्जियां मुंडेरा मंडी फुटकर रेट (प्रति किलो) आलू 7 से क्क् रूपए क्ख् से क्म् प्याज क्0 से क्ब् रुपए ख्0 टमाटर फ्00 रुपए प्रति कैरेट (ख्भ् केजी) ख्ब् बैगन फ्00 रुपए प्रति बोरी (ब्0 केजी) ख्0 से ख्ब् कद्दू भ् रुपए प्रति किलो क्ख् नेनुआ ब् रुपए प्रति किलो क्0 भिंडी 7 रुपए प्रति किलो क्म् लौकी भ्0 पैसे से क् रुपए क्0 (प्रति पीस) - मंडी का टैक्स सिर्फ एक बार ही वसूल किया जाता है। जहां तक बात सब्जियों की गाडि़यों के चलान व वसूली की है, तो मेरे द्वारा एक व्यवस्था लागू की गई थी। जिसमें सब्जियों के वाहन पर उक्त व्यापारी का लेटर पैड लगा होता है। जिन वाहनों पर व्यापारी का लेटर पैड लगा होता है, उसे सीधे मुंडेरा मंडी भेज दिया जाता है। जिन पर लेटर पैड नहीं लगा होता है, उन्हें खुल्दाबाद व बक्शी बांध मंडी का मानकर उस पर जुर्माना किया जाता है। सब्जियों के दाम बढ़ने में सबसे बड़ा कारण है कि कई तरह की क्वालिटी एक साथ होती है। जिसे फुटकर दुकानदार छांटते है। ऐसे में माल का एक बड़ा हिस्सा खराब निकलता है। जिससे उसके दाम बढ़ जाते है। संजय सिंह, सचिव मंडी समिति