कॅरियर की शुरुआत ऑटो चालक के रूप में हुई थी राजू पाल से थी गहरी दोस्ती

प्रयागराज ब्यूरो । पूजा पाल के साथ राजू की शादी की उमेश ने की थी अगुवाई, दोस्ती के लिए दांव पर लगा दी जान
अब पूरा देश उमेश पाल को जानता है। उमेश के कार्यों के लिए नहीं बल्कि माफिया अतीक द्वारा उसकी हत्या करवा दिये जाने के चलते। आटो चलाते हुए परिवार की जिम्मेदारी संभालने वाला उमेश आखिर कैसे इतना बड़ा नाम बन गया? क्यों वह अकेल अतीक अहमद के साम्राज्य से टकरा गया? इसके पीछे थी गहरी दोस्ती और फिर बनी रिश्तेदारी। दोस्ती और रिश्तेदारी को निभाते हुए उमेश ने अपनी जान गंवा दी। वह उस केस का फैसला भी नहीं सुन सके जिसे उन्होंने खुद लड़ा था। मंगलवार को अपहरण कांड का फैसला आने के बाद उमेश पाल के जीवन संघर्ष की कहानी खुद सामने आ गयी।

कृष्ण कुमार पाल था पूरा नाम
उमेश पाल का पूरा नाम कृष्ण कुमार पाल था। उसका जन्म प्रयागराज में 20 जनवरी 1978 को हुआ था। उमेश पाल की शादी जया पाल से पंद्रह साल पहले हुई थी। इस रिश्ते से उमेश के चार बच्चे हैं। वह मां शांति देवी का दुलारा बेटा था। राजूपाल हत्याकांड के बाद मुख्य गवाह के रूप में उमेश पाल का नाम सामने आया था। वह पहले ऑटो चलाता था। इसी दौरान उसकी दोस्ती मोहल्ले के ही रहने वाले राजू पाल से हुई थी। दोनों की आर्थिक स्थिति एक जैसी थी तो दोस्ती का रंग गाढ़ा होता चला गया। उमेश पाल के बारे में करीबियों ने बताया कि राजू पाल जब सक्रिय राजनीति में नहीं थे तब से दोनों दोस्त थे। उमेश को राजू पाल का अंदाज बहुत पसंद था। उन्हें लगता था कि राजू ही है जो अतीक के खौफ का खात्मा कर सकता है। इसी के चलते राजू पाल इलेक्शन में कूदा तो वह दोस्त के साथ लग गया। राजूपाल जैसे ही शहर पश्चिमी का चुनाव जीत विधायक बना तो दोस्त से कहा, अब ऑटो चलाना छोड़ दो। तू मेरा जिगरी दोस्त है। मेरे साथ चला कर। करीबी बताते हैं कि इसके बाद उमेश पाल ने ऑटो चलाना छोड़ दिया। वह राजू के साथ रहने लगा।

पूजा ने दिखाया वकील बनने का रास्ता
25 जनवरी 2005 को राजूपाल की हत्या हो गई तो वह अकेला हो गया। काफी लंबे समय तक डर-डर कर रहने लगा। जब वह राजू पाल हत्याकांड में वह मुख्य गवाह बना तो पूजा पाल ने उसका खर्च उठाया। पूजा पाल और उमेश के बीच चचेरी बहन का रिश्ता था। उमेश पाल के पुराने करीबी बताते है कि वह राजू पाल हत्याकांड का मुख्य गवाह था। कोर्ट-कचहरी आने-जाने में काफी पैसा लगता था। जिस भी वकील को उमेश करता था वह अतीक गैंग के टच में आ जाता था। जिसके चलते मुकदमों की पैरवी अच्छे से नहीं हो पाता था। कई वकीलों को बदला गया। क्योंकि, अतीक के आंतक के डर से हर कोई दगा दे दे रहा था। इस बीच पूजा पाल ने उमेश पाल को वकालत करने की राय दी। उस वक्त पूजा पाल बसपा से विधायक बन चुकी थी। विधायक होने के नाते वह काफी मजबूत थी। उसने ही उमेश को वकालत भी कराया। देखते ही देखते उमेश ने वकालत की पढ़ाई पूरी कर ली। वह खुद अपने मुकदमो की पैरवी करने लगा। जिसके बाद केस में रफ्तार आया। वह अतीक-अशरफ को सलाखों के पीछे पहुंचाना चाहता था। जिसके लिए वह जी-जान से पैरवी करता चला आ रहा था।

प्रभावशाली हुआ तो जमीन के कारोबार में कूद गया उमेश
राजू पाल की मौत के बाद उमेश पाल ने राजनीति में भी हाथ आजमाया। सबसे पहले वह बसपा से जुड़ा था। 2006 में वह जिला पंचायत सदस्य बन गया। बीच में कुछ दिनों तक वह सपा से भी जुड़ा रहा। बाद में उसने भारतीय जनता पार्टी को ज्वाइन कर लिया था। इसके बाद अच्छे खासे बड़े नेताओं से मिलना-जुलना शुरू हो गया। उसके बाद अशरफ की भी गिरफ्तारी हो गई। उसके रास्ते से सब कांटा हटता दिखाई पडऩे लगा। इस बीच उसने प्रापर्टी के बिजनेस में भी किस्मत आजमायी और काफी पैसा कमाया।

Posted By: Inextlive