इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में हुआ एलुमिनाई संवाद श्रृंखला का शुभारंभ


प्रयागराज ब्यूरो ।'यूनिवर्सिटी आफ इलाहाबाद एलुमिनाई एसोसिएशनÓ की ओर से गुरुवार को एलुमिनाई संवाद का शुभारंभ हुआ। 'जन्मशती के बहाने विजयदेव नारायण साही पर बातÓ विषय पर संवाद इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के ईश्वर टोपा सभागार में हुआ। दीप प्रज्जवलन और प्रो। विजयदेव नारायण साही के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित करने से प्रोग्राम की शुरुआत हुई। अध्यक्षता कर रहीं कुलपति प्रो। संगीता श्रीवास्तव ने यूनिवर्सिटी आफ इलाहाबाद एलुमिनाई एसोसिएशन के पुर्नगठन के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि साहसी पथिक के पदचिह्न पगडंडी बनाते हैं और समाज के लोग उसी पर चलते हैं। शिक्षक को भी ऐसा ही होना चाहिए जो दूसरों के पथप्रदर्शक का काम कर सके। हमें अपने महापुरूषों के बनाए रास्तों पर चलना चाहिए। हिंदी को प्रतिष्ठित किया
उन्होंने कहा कि देश की आजादी के बाद हिंदी राष्ट्रीय भाषा नहीं बन पाई और अंग्रेजी से पिछड़ गई। लेकिन, इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के शिक्षकों खासकर प्रो। विजयदेव नारायण साही और प्रो। हरिवंश राय बच्चन ने हिंदी को पुन: प्रतिष्ठित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। प्रो। साही अक्सर कहते थे कि अंग्रेजी मेरी पेट (आजीविका) की भाषा है, हिंदी मेरी मस्तिष्क की भाषा है। कविता 'तुरंताÓ का जिक्र करके उन्होंने प्रो। साही की व्यंग शैली का जिक्र किया। मुख्यवक्ता और लेखिका-रंगकर्मी सुस्मिता साही ने कहा कि प्रो। साही उर्दू और फारसी के विद्वान थे। उन्होंने कभी हिंदी नहीं पढ़ी लेकिन ज्यादातर लेखन हिंदी में किया। 'परिमलÓ संस्था के युवा लेखक बाद में धर्मवीर भारती, महेंद्र प्रताप और प्रो। वीडीएन साही जैसे बड़े साहित्यकार बने। प्रो। साही कहते थे कि अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई के बाद छायावाद की कोई जरूरत नहीं है। उन्होंने सदैव उत्तर छायावाद का विरोध किया। इमरजेंसी के दौरान अपनी गजल 'सरासर लुट रहा है, काफिला बचकर कहां जाएंÓ से प्रो। साही ने अपना विरोध व्यक्त किया। समानताओं का जिक्र


मुख्यअतिथि और वरिष्ठ कवि और आलोचक प्रो। राजेंद्र कुमार ने कहा कि मुझे इलाहाबाद में साही जैसे साहित्यकारों से मिलने का लोभ खींच लाया। उन्होंने फिराक गोरखपुरी और प्रो। विजयदेव नारायण साही में सामाजिक, राजनीतिक और साहित्यक समानताओं का भी जिक्र किया। उन्होंने प्रो। वीडीएन साही को हिंदी का फिराक बताया। 'परिमलÓ संस्था के माध्यम हिंदी के अध्यापक धर्मवीर भारती और अंग्रेजी के शिक्षक प्रो। साही ने 'नई कविताÓ की सदैव वकालत की। जब ये दोनों मिलते तो ऐसा लगता कि अंग्रेजी हिंदी को गले लगा रही है। एक वृतांत का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि प्रो। साही कहते थे कि कालीदास सदैव कल्पना के पंखों पर सवार होकर उड़ान भरते हैं। हालांकि इसके बाद भी वे कलात्मक संयम को नहीं खोते। हमें कल्पनाशील होने के बाद भी कलात्मक संयम नहीं खोना चाहिए। प्रो। साही में खूबी थी कि वे कुछ क्षणों में ही वे पूरी कविता बना देते थे। उनके भीतर असहमतियों के लिए भी आदर का भाव था।यूनिवर्सिटी आफ इलाहाबाद एलुमिनाई एसोसिएशन के प्रेसिडेंट प्रो। हेरम्ब चतुर्वेदी ने प्रोग्राम की प्रस्तावना रखी। उन्होंने प्रो। साही के व्यापक व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला। एसोसिएशन के सचिव प्रो। कुमार वीरेंद्र ने धन्यवाद ज्ञापित किया। संचालन प्रो। रचना आनंद गौड़ ने किया। इस मौके पर कुलसचिव प्रो। आशीष खरे, डीन कॉलेज डेवलपमेंट प्रो। एनके शुक्ल, डीन साइंस प्रो। संजय सक्सेना सहित विभागाध्यक्ष और शिक्षक मौजूद रहे।

Posted By: Inextlive