सोमवार से होगी शारदीय नवरात्र की शुरुआत मंदिरों में लगेगा भक्तों का जमघट शारदीय नवरात्र के पहले दिन आज मां दुर्गा घर-घर विराजेंगी. विधि विधान से उनके कलश की स्थापना की जाएगी. आश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से नवमी पर्यन्त दशमी तक मां भगवती को पूजने मनाने एवं शुभ कृपा प्राप्त करने का यह सबसे उत्तम समय है. आश्विन मास में पडऩे वाले इस नवरात्र को शारदीय नवरात्र कहा जाता है. इस नवरात्र की विशेषता है कि हम घरो में कलश स्थापना के साथ-साथ पूजा पंडालों में भी स्थापित करके मां भगवती की आराधना करते है.


प्रयागराज (ब्यूरो)।उत्थान ज्योतिष संस्थान के निदेशक ज्योतिर्विद पं दिवाकर त्रिपाठी पूर्वांचली ने बताया कि इस शारदीय नवरात्र की शुरूआत उदय कालिक प्रतिपदा तिथि 26 सितंबर को सोमवार से होगी। प्रतिपदा तिथि को माता के प्रथम स्वरूप शैल पुत्री के साथ ही कलश स्थापना के लिए भी अति महत्त्वपूर्ण दिन होता है। कलश स्थापना या कोई भी शुभ कार्य शुभ समय एवं तिथि में किया जाना उत्तम होता है.इस बार कलश स्थापना के लिए दिन भर का समय शुद्ध एवं प्रशस्त है। शारदीय नवरात्र में दुर्गा सप्तशती का पाठ करना कराना तथा देवी चरित्र का पाठ सुनना मनुष्य को सभी प्रकार के बाधाओं से मुक्त करते हुए धन-धन पुत्र आदि से संपन्न करते हुए विजय को प्रदान करता है। .अभिजीत मुहूर्त सभी शुभ कार्यो के लिए अति उत्तम होता है। जो मध्यान्ह 11:36 से 12:24 तक होगा।शुभ चौघडिय़ासुबह 6 बजे से 7:3्र0 बजे तक


सुबह 9 से 10:30 बजे तक- दोपहर 1:30 से शाम 6 बजे तकहाथी पर सवार होकर आएंगी मातानवरात्र की शुरुआत सोमवार से हो रहा है अत: माता का घरों में आगमन गज की सवारी पर होगा। जो राष्ट्र की जनता के लिए सामान्य फल दायक एवं वर्षा कारक होगा। आम जन के स्वास्थ्य एवं धन पर सामान्य प्रभाव पड़ता है।

पूजा पंडालों में माता के आगमन का विचार सप्तमी तिथि के अनुसार किया जाता है एवं गमन के विचार दशमी तिथि में। सप्तमी तिथि को रविवार होने से बंगिया पद्धति के अनुसार देवी का आगमन हाथी पर होगा। इस प्रकार घरों में एवं पूजा पंडालों में माता का आगमन हाथी पर हो रहा है। जो राष्ट्र के राजा के विरुद्ध आम जनमानस का एकत्रीकरण, अत्यधिक वर्षा, राजनेताओं के मध्य वाक युद्ध की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। फिर भी मां का आशीर्वाद हम सभी के लिए शुभ कारक ही होगा।कब होगी कौन सी पूजा

4 अक्टूबर दिन मंगलवार को ही अपरान्ह काल में दशमी तिथि प्राप्त होने के कारण विजयदशमी के पर्व का मान भी हो जाएगा अत: देवी का प्रस्थान अथवा गमन चरणा युद्ध अर्थात मुर्गा पर होगा जो ज्यादा शुभ फलदायक नहीं होता है। अष्टमी की महानिशा पूजा 2 अक्टूबर को रात में होगी। महा अष्टमी का व्रत पूजा 3 अक्टूबर दिन सोमवार को होगी एवं संधि पूजा का समय दिन में 3:36 से लेकर के 4:24 बजे तक का होगा। महा नवमी का मान 4 अक्टूबर दिन मंगलवार को होगा एवं पूर्व नवरात्रि के समापन का हवन पूजन में नवमी तिथि पर्यंत दिन में 1:32 बजे तक कर लिया जाएगा। नवरात्र व्रत का पारण दशमी तिथि में प्रात: काल 5 अक्टूबर दिन बुधवार को किया जाएगा। इसी दिन श्रवण नक्षत्र युक्त दशमी तिथि में देवी प्रतिमाओं का विसर्जन भी कर दिया जाएगा।मंदिरों में हो गई तैयारी, नौ दिन उमडेंग़े भक्तज्योतिषाचार्य पंडित बालकृष्ण त्रिपाठी ने बताया कि भक्त घरों में घट की स्थापना करके विधि-विधान से पूजन करेंगे। पहले दिन मां के शैलपुत्री स्वरूप का पूजन किया जाएगा। वहीं, देवी मंदिरों में अखंड ज्योति जलाकर नौ दिनों तक जनकल्याण के लिए शतचंडी यज्ञ किया जाएगा। मां अलोपशंकरी, मां कल्याणी देवी, मां ललिता देवी सहित हर देवी मंदिर में रविवार को सफाई करने के साथ भक्तों के दर्शन, पूजन का प्रबंध किया गया।

Posted By: Inextlive