बाहर हैं, मजबूरी है, कुछ खाना भी जरूरी है
प्रयागराज (ब्यूरो)। दस जून को जुमे की नमाज के बाद अटाला में पथराव, आगजनी और तोडफ़ोड़ हो गई थी। बमुश्किल बवाल शांत हुआ तो शांति व सुरक्षा के मद्देनजर भारी संख्या में फोर्स लगा दी गई। पूरे जोन से पुलिस के जवान बुलाए गए हैं। आग सी बरस रही धूप के बीच यह जवान मुश्तैदी से मोर्चे पर लगे हुए हैं। पुलिस के जवानों को न तो ठीक से खाना मिल रहा और न ही पानी। खाने के नाम पर दोपहर के वक्त पुलिस के जवानों को एक पैकेट दिया जाता है। एक जवान के लिए पैकेट में मौजूद खाने की स्थिति बेहद दयनीय है। कुछ ही पैकेट ऐसे थे जिसमें जवानों के नसीब में इस खाने के साथ अचार भी नसीब हुआ। जवानों को दिए गए पैकेट में मौजूद सब्जी में खट्टापन उत्पन्न हो गया था। यह बात उस वक्त पता चला जब कुछ जवानों के कहने पर रिपोर्टर ने खुद खाकर उस सब्जी को टेस्ट किया। पैकेट में मौजूद पूड़ी भी काफी कड़ी हो गई थी। कुछ जवानों ने बताया कि वह इस खाने की कंडीशन को देखते हुए खाए ही नहीं। ई-रिक्शा पकड़कर वह स्टेशन गए और खाना खाकर ड्यूटी पर लौटे। बताया गया कि पैकेट से एक आधा लीटर से भी छोटी पानी की बोतल दी जाती है।
बैठने के लिए न कुर्सी और न गद्दाबाहर से आई फोर्स को ईसीसी में ठहराया गया है। अटाला से लेकर ईसीसी कैंपस तक में जवानों को न तो कुर्सी दी गई है और न ही गद्दा।
ड्यूटी प्वाइंट अटाला पर तैनात जवान पुलिस के हों या पीएसी और सीआरपीएफ के सभी इस चिलचिलाती धूप में छांव तप रहे हैं
धूप से बचने के लिए जवान दुकानों के टीन शेड, बारजा और लोगों के दरवाजे पर लगे पेड़ के नीचे वक्त काट रहे हैं।
इन स्थानों पर ऐसे जलती हुई फर्स पर बैठने के लिए सभी जवान मजबूर हैं
ज्यादातर जवान बॉडी प्रोटक्कर को ही अपना बिछौना और कुर्सी बना लिए हैं
गिनी-चुनी संख्या में ही कुर्सियां उपलब्ध हैं। इसे जवानों ने खुद मंगवाया है, लोकल लोगों की हेल्प से मिली है या प्रशासन ने उपलब्ध कराया है? यह कोई बता नहीं सका। जवानों के लिए पूरी चौबंद व्यवस्था कराई गई है। यदि उन्हें कोई दिक्कत है तो वह भ्रमण में जाने वाले अफसरों से कह सकते हैं। फिलहाल मैं व्यवस्था देख रहे लोगों को बोलता हूं।
प्रेम प्रकाश, एडीजी