जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में 14 फरवरी 2019 को हुए आतंकी हमले में 40 जवान शहीद हो गए थे. इसके बाद सरकार ने पाकिस्तान के बालाकोट में अटैक कर बदला तो लिया लेकिन उनके परिजनों के आंसू अब भी नहीं सूखे हैं. इस हमले की तीसरी बरसी पर दैनिक जागरण आई-नेक्स्ट रिपोर्टर शहीद हुये मेजा के जवान महेश यादव के घर पहुंचे. परिजनों से उनका हाल पूछा. पिता राजकुमार और भाई अमरेश उस मंजर को याद कर फफक पड़े. उन्होंने बताया कि जब घटना हुई थी तो सब आए. अब तीन साल बीतने को आया है. सीआरपीएफ जवानों के अलावा कोई हालचाल पूछने तक नहीं आता है. वहीं सरकार की ओर से परिवार से किए गए वादे अभी तक अधूरे पड़े हैं.

प्रयागराज (ब्‍यूरो)। शहीद बेटे की तस्वीर सामने रख उनको याद कर रहे पिता राजकुमार, भाई अमरेश यादव, पत्नी संजू ने बताया कि अब तक सरकार की तरफ से नौकरी, तीन बीघा जमीन मिली है। जबकि कई वादे किए गए थे। पहली बरसी में जिला प्रशासन के अधिकारी व नेता तक आए। दूसरी बरसी में लोकल प्रशासन अधिकारी आए। तीसरी में कोई हालचाल पूछने तक नहीं आया। सिर्फ शहीद हुये जवान के साथी आए।

यह वादे अब भी अधूरे
शहीद की पत्नी संजू और भाई अमरेश ने बताया कि उस वक्त घर तक सड़क, शहीद स्मारक और उनके नाम से गेट बनवाने का वादा किया गया था। जो अब भी अधूरा है। यह ही नहीं गैस एजेंसी, पेट्रोल पंप या फिर विद्यालय इनमें से कोई एक चीज देने तक का वादा किया गया था। प्रशासन का रवैया इतना लचर है कि शहीद के परिजन इन वादों को याद दिलाने के लिए दफ्तरों के चक्कर लगाकर थक गए हैं। यह नहीं नेताओं द्वारा भी किये गए वादे अब भी अधूरे पड़े हैं। सड़क निर्माण की शुरूआत हुई लेकिन वह भी आधे में रोक दिया गया।

नेताओं का वादा भी अधूरा
शहीद के भाई अमरेश यादव ने बताया कि तत्कालीन विधायक द्वारा शहीद के दो बेटों सात साल के समर और आठ साल के साहिल के नाम पर एक-एक लाख रुपये एफडी की बात कही थी। जो आज भी पूरी नहीं हुई। यहां तक आश्वासन दिया गया था कि उनके बच्चों की पढ़ाई का सारा खर्च भी उठाया जाएगा। सिर्फ शुरुआत में एक साल की फीस जमा की गई थी। उसके बाद से कुछ नहीं हुआ। फीस आज भी परिवार के लोग जमा कर रहे हैं।

फौजी बनना चाहता है शहीद का बेटा
शहीद के आठ वर्षीय बेटे समर की चाहत भी अपने पापा जैसे बनने की है। वह भी फौजी बनकर दुश्मनों से बदला लेना चाहता है।

कंट्रोल रूम से मिली थी जानकारी
शहीद महेश यादव के पिता राजकुमार यादव आज भी उस मंजर को याद कर फफक पड़ते हैं। उन्होंने बताया कि जब घटना हुई थी तो कंट्रोल रूम से फोन आया कि महेश का कोई अन्य नंबर है क्या? जो नंबर है वो बंद बता रहा है। शहीद महेश के पिता ने सीओ से कई बार पूछा कि कुछ बात है तो बताइए। लेकिन उन्हें कोई जानकारी नहीं दी गई। फिर उन्होंने टीवी पर न्यूज देखा तो वे समझ गए कि उनका सपूत अब नहीं रहा। दूसरे दिन सुबह सात बजे फोन कर घटना के बारे में बताया गया और जानकारी दी गई कि महेश का पार्थिव शरीर उनके गांव के लिए रवाना हो गया है।

Posted By: Inextlive