नजऱ नहीं आया मोहर्रम का चाँद
प्रयागराज (ब्यूरो)। माहे मोहर्रम के दौरान औरतें चूडिय़ां तोड़कर काले लिबास धारण कर लेंगी। लाल, पीले, नारंगी कपड़ो से दो महीना आठ दिन परहेज रहेगा। घरों व इमामबाड़ो पर सियाह परचम लहराने लगेंगे। शहर की लगभग दो दर्जन मातमी अन्जुमनों ने माहे मोहर्रम मे पढ़े जाने वाले नौहे की तैयारी एक हफ्ते पहले से ही शुरू कर दी है। अन्जुमनों ने अपने तयशुदा शायरों से कलाम कहलवा कर तजऱ्निगारों से तजऱ् बनवा कर मंजरे आम पर लाने के लिए प्रैक्टिस शुरू कर दी। अन्जुमन नकविया, अन्जुमन मोहाफिजे अजा, अन्जुमन असगरिया, अंजुमन हाशिमया, अन्जुमन मोहाफिजे अजा कदीम, अंजुमन हैदरी, अन्जुमन अब्बासिया, अन्जुमन हैदरिया, अन्जुमन आबिदया, अन्जुमन शब्बीरिया, अन्जुमन मज़लूमिया, अन्जुमन ग़ुन्चा ए क़ासिमया आदि ने अपने नौहाख्वानों व हमनवां साथियों व मातमदारों संग नौहे की तय्यारी शुरु कर दी।ताजिया भी होने लगी तैयार
इमामबाड़ों व इमाम चौक पर ताजिया रखने को ताजिया बनाने वालों ने दो साल के कोरोना असर के बाद इस बार काफी संख्या मे पहले से ताजिय़ा तैयार कर लिया। बख्शी बाज़ार पतंग का कारोबार करने वाले अच्छू भाई इन दिनो पतंग के काम को छोड़ कर ताजिय़ा बनाने मे लगे हुए हैं। उनके साथ उनके घर की महिलाएं और बच्चे भी ताजिय़ा बनाने मे सहयोग करते है। ताजिय़ा इराक़ के करबला शहर मे इमाम हुसैन के रौज़े की नकल के तौर पर घर-घर इमामबाड़ों व इमाम चौक पर हर वर्ष रखा जाता है और आशूरे यानि दसवीं मोहर्रम को इमामबाड़ों पर चढ़े फूलों के साथ ताजिय़े को भी करबला ले जाकर दफन किया जाता है।