मीडिया के भरोसे बचा था 'कथित मीडियाÓ से निबटा दिया
प्रयागराज ब्यूरो । दोनो बार पूरे रास्ते मीडिया ने लाइव किया था प्रयागराज लाया जाना, बन गया था सुरक्षा कवच
उमेश पाल हत्याकांड के बाद अतीक और अशरफ को मार दिये जाने का डर सताने लगा था। डर का कारण भी वाजिब था। बाबा ने कह दिया था कि माफिया को मिट्टी में मिला दूंगा। बैकग्राउंड में था कानपुर के बिकरु कांड का सरगना विकास दुबे का इनकाउंटर। इसी के चलते दोनो डरे हुए थे। उन्होंने अपने इस डर का इजहार भी किया था। मीडिया के सामने भी और कोर्ट के सामने भी। अतीक सुप्रीम कोर्ट और अशरफ हाई कोर्ट तक पहुंच गया था। दोनो नहीं चाहते थे कि उन्हें बाई रोड प्रयागराज लाया जाय। कोर्ट ने पुलिस को सुरक्षा की जिम्मेदारी सौंपते हुए दोनों को लाने की जिम्मेदारी सौंप दी थी।
पूरे रास्ते किया था लाइव
अतीक को पहली बार 27 मार्च को प्रयागराज लाया जा रहा था तो कुछ टीवी चैनलों पर लाइव प्रसारण हो रहा था। इस चक्कर में शू शू करने का फुटेज भी चल गया तो बहस शुरू हो गयी। बहरहाल, मीडियाकर्मियों के लगातार अतीक अशरफ के साथ बने रहने का फायदा यह हुआ कि दोनो बिना किसी अनहोनी के प्रयागराज तक पहुंच गये। वैसे इस सुरक्षा घेरे का फायदा अतीक को हो गया था। लेकिन, उसने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि इसी पीछा करने से कोई आइडिया चुराकर हत्या की साजिश को भी अंजाम दे सकता है। इस प्वाइंट को पुलिस ने भी सीरियसली शायद नोटिस नहीं लिया था तभी उसकी तरफ से कोई बंदिश नहीं लगायी गयी थी। अतीक और अशरफ भी निश्चिंत थे तभी वे बात करने के लिए रुके भी। बिना बात किये पुलिस के साथ चले जाते तो शायद यह कांड ही न हो पाता।
रेकी करके ही अंजाम दी घटना
माना जा रहा है कि यह घटना एक दिन का अंजाम नहीं है। इसके लिए फुल प्रूफ योजना बनाई गयी और फिर उसे एग्जीक्यूट करने के लिए शूटर को रिपोर्टर बनाने का आइडिया लिया गया। यही वह तबका था जो सीधे अतीक और अशरफ तक पहुंच सकता था। रिमांड के नियमों के मुताबिक थाने से कहीं भी बाहर ले जाने पर मेडिकल कराने के बाद ही फिर से थाने लाया जा सकता है। इसी के लिए धूमनगंज पुलिस शुक्रवार को भी काल्विन हॉस्पिटल पहुंची थी और शनिवार को भी। वैसे पुलिस कस्टडी में किसी भी अपराधी के मीडिया से बात करने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए थी। इसके बाद भी शनिवार को काल्विन हॉस्पिटल के बाहर रिपोर्टर्स को ऐसा मौका मिल गया कि उनसे अतीक की दूरी एक फिट से भी कम बची। पहले से ही अपनी योजना पर काम रहे शूटर्स ने इसकी का फायदा उठाया और अतीक को सिर से सटाकर पहली गोली मार दी।
तो एक ही मारा जाता
पुलिस अतीक और अशरफ को हथकड़ी पहनाकर रखे हुए थे। मंशा रही होगी कि दोनों भागने की कोशिश न करें। लेकिन, दोनों को एक ही गाड़ी और हथकड़ी की रस्सी एक ही रखने का रिस्क लेना महंगा पड़ गया। दोनो अलग अलग गाड़ी से होता और हथकड़ी और रस्सी अलग अलग होती तो शूटर शायद दोनों को मौत के घाट नहीं उतार पाते। एक ही रस्सी से बंधे होने का नतीजा यह हुआ कि गोली खाकर अतीक नीचे गिरा तो उसके साथ अशरफ भी जमीन पर गिर पड़ा। उसे संभलने या खुद को बचाने का मौका ही नहीं मिला, इसका फायदा शूटरों ने उठाया और दोनों का काम एक साथ तमाम कर दिया। शूटर्स ने मीडियाकर्मी का चोला न ओढ़ा होता तो शायद वह अतीक के इतने करीब पहुंंच ही नहीं पाते। इसे पुलिस ने नोटिस नहीं लिया नतीजा वह खुद तो सवालों से घिरी ही प्रदेश की सत्ता को भी सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया।