इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन कार्यकारिणी की आकस्मिक निधि पीपीएफ में जमा करने की योजना का वकीलों के एक वर्ग ने कड़ा विरोध किया है. उनका कहना है कि बार एसोसिएशन पंजीकृत निजी संस्था है. कोई भी कल्याणकारी योजना अपने सदस्यों के शुल्क से ही लागू कर सकती है. वादकारियों से पांच सौ रुपये जमा कराने का वैधानिक अधिकार नहीं है.


प्रयागराज (ब्‍यूरो)। बार एसो। अध्यक्ष राधाकांत ओझा व महासचिव एस डी सिंह जादौन ने कार्यकारिणी की बैठक में फोटो आइडेंटीफिकेशन सेंटर में 70 रुपये की जगह 5 सौ रुपये जमा कराने का फैसला लिया और एक नवंबर से योजना लागू भी कर दी। कहा जा रहा है कि पांच सौ रुपये में से 430 रुपये उसी अधिवक्ता के पीपीएफ खाते में जमा कर दिया जाएगा। सभी वकीलों से पीपीएफ खाता खोलकर बार एसोसिएशन को सूचित करने का अनुरोध किया गया है। कुछ वकीलों का कहना है कि उन्होंने पीपीएफ खाते में डेढ़ लाख जमा कर दिया है। अब उसमें एक पैसा भी जमा नहीं हो सकता। इस फंड का पैसा छह साल बाद ही निकाला जा सकता है।

बार पदाधिकारियों का कहना है कि पैसा वकील के पीपीएफ में रहेगा। बीमारी हुई या धन की जरूरत हुई तो वह फंड से लोन लेकर समस्या का निदान कर सकेगा। कुछ वकीलों का कहना है कि पीपीएफ खाते में एक साल में डेढ़ लाख जमा करना अनिवार्य है। यदि किसी वकील को कम केस मिले और इतनी राशि जमा नहीं हो सकी तो उसे शेष धन जमा करना होगा तभी वह लाभ पा सकेगा। इस तरह कमजोर वकीलों के लिए योजना मुसीबत होगी। पैसा सेविंग एकाउंट में जमा हो
पूर्व संयुक्त सचिव संतोष कुमार मिश्र का कहना है कि यदि योजना लागू करना ही है तो वकीलों के बचत खाते में जमा की जाए ताकि वह आसानी से इस्तेमाल कर सकें। उन्होंने कहा 70 रुपये फोटो आइडेंटीफिकेशन सेंटर में जमा करने की योजना को चीफ जस्टिस की मंजूरी मिली है। यह राशि बढ़ाकर पांच सौ रुपये करने की योजना की मुख्य न्यायाधीश से मंजूरी नहीं ली गई है। ऐसे में हाई कोर्ट इसकी अनिवार्यता को अस्वीकार कर सकता है। ऋतेश श्रीवास्तव व प्रभा शंकर मिश्र की अगुवाई में कई वकीलों ने कहा इसमें बड़े घोटाले की आशंका है। बैंक से बात कर स्पष्ट योजना पर अमल किया जाना चाहिए। सभी वकीलों के पीपीएफ खाते नहीं खुले हैं। उनके पैसे कहां जमा होंगे, यह अनिश्चित है।

Posted By: Inextlive