नौहा पढ़ते व मातम करते निकली टोली
प्रयागराज (ब्यूरो)।बता दें 1836 में क़ायम दुलदुल का जुलूस दो वर्ष तक कोरोना बंदिशों के कारण सड़कों व गलियों मे न घुमा कर इमामबाड़ा प्रांगण मे ही सजा कर जिय़ारत कराई गई थी। इस साल सभी बंदिशे हटने पर दुलदुल का जुलूस अपने क़दीमी रास्तों को तय करते हुए दूसरे दिन सुबह पांच बजे समाप्त हुआ। अन्जुमन ग़ुन्चा ए क़ासिमया के प्रवक्ता सैय्यद मोहम्मद अस्करी के मुताबिक़ दुलदुल जुलूस इमामबाड़ा सफदर अली बेग से भोर में पांच बजे निकाला गया। जो शाहगंज, बरनतला, नखास कोहना ,अहमदगंज, पुराना गुडिय़ा तालाब ,अकबरपुर, सियाहमुगऱ्, बख्शी बाज़ार ,रौशनबाग़, ताराबाबू की गली, गुलाबबाड़ी ,दायरा शाह अजमल, बैदन टोला ,सेंवईमण्डी इमामबाड़ा, हसन मंजि़ल ,समदाबाद, घंटाघर,सब्ज़ीमण्डी होते हुए प्रात: पांच बजे पुन: पानदरीबा स्थित इमामबाड़ा सफदर अली बेग पहुंचकर समाप्त हुई।
वहीं सातवीं मोहर्रम को दायरा शाह अजमल इमामबाड़ा अली नक़ी मरहूम से दो दर्जन अलम का जुलूस भी दुलदुल के साथ इमामबाड़ा डाक्टर मुस्तफा तक गया।
दूसरा जुलूस रानीमण्डी से निकला जिसमे अन्जुमन अब्बासिया, अन्जुमन हैदरिया ,अन्जुमन मज़लूमिया, अन्जुमन आबिदया अलम ताबूत व ज़ुलजनाह के साथ साथ नौहा पढ़ते व मातम करते निकली। कोतवाली से छोटी चक इमामबाड़ा तक सभी अन्जुमनों के सदस्य तेज़ धार की छूरीयों से लैस जऩजीरों से पुश्तजऩी कर अपने अक़ीदत का इज़हार करते रहे।
जुलूस में बाबर बेग, सोहैल, शमशाद, जहांगीर, तनवीर आलम, सलीम साहब ,माहे आलम, अहमद हुसैन, हसन मेंहदी ,मुर्तुज़ा अली बेग, मुजतबा अली बेग ,सादिक़ हुसैन, रिज़वान हुसैन, जाने आलम ,शहबाज़ मोहम्मद अली, सलमान हैदर ,तनवीर, अलमास, सैफ, फैज़, गौहर काज़मी, वक़ार भाई, असगऱ अब्बास ,सैय्यद मोहम्मद अस्करी, शजीह अब्बास ,आसिफ रिज़वी, अमन जायसी आदि जुलूस के साथ रहे।