ताकि कम न हो इलाहाबादी अमरूद की शान और रुतबा
प्रयागराज ब्यूरो ।प्रयागराज.जाता है। लेकिन पिछले कुछ सालों से कीट और फल मक्खी की वजह से बड़ी पैदावार खराब हो रही थी। ऐसे में सुरखा और सफेदा जैसी अमरूद की प्रजातियों को बचाने की कवायद अभी से शुरू हो गई है। ताकि अमरूद की पैदावार प्रभावित न हो सके। इसके लिए वैज्ञानिकों के एक दल ने अमरूद के बागों का दौरा किया है। बागवानों को सुझाव दिया गया है कि वे अमरूद को बचाने के लिए फोरमेन ट्रैप का इस्तेमाल करें। साथ ही अमरूद को फ्रूट बैग लगाकर संरक्षित किया जाए। ताकि कीट सीधे फल पर आक्रमण न कर सकें।
लखनऊ से आई वैज्ञानिकों की टीम
प्रयागराज पश्चिमी और कौशांबी का पूर्वी इलाका अमरूद की पैदावार के लिए जाना जाता है। हाल ही में केंद्रीय उपोषण बागवानी संस्थान रहमान खेड़ा लखनऊ के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा.पीके शुक्ला एवं डा.केके श्रीवास्तव प्रयागराज पहुंचे। दोनों वैज्ञानिकों ने उपनिदेशक उद्यान डा.कृष्ण मोहन चौधरी, वैज्ञानिक डा.दीपक लाल, जिला पौध रक्षा अधिकारी इंद्रजीत यादव, कृषि विज्ञान केंद्र कौशांबी के वैज्ञानिक डा.मनोज कुमार सिंह, डा.जितेंद्र प्रताप सिंह, वीके सिंह के साथ बकराबाद के इंद्रजीत पटेल, अजय पांडेय, कृष्णानंद पटेल, चायल के जानकीपुर में बृजेश, राजू, दिलीप कुमार साहू, उदयवीर सिंह, विनोद कुमार के अमरूद के बागों का दौरा किया।
फल मक्खी, फ्रूट बोरर कीट का आक्रमण
वैज्ञानिकों ने पाया कि अमरूद के बागों में फल मक्खी और फ्रूट बोरर कीटों का आक्रमण हो चुका है। जिसकी वजह से अमरूद की बागवानी प्रभावित हो रही है। वैज्ञानिकों ने बागवानों को बताया कि आधुनिक तकनीकि का सहारा लेकर अमरूद के फलों को बचाया जा सकता है। बागवानों को सलाह दी गई कि वे फोरमेन ट्रैप का इस्तेमाल करें। जिससे कीटों की जनसंख्या को नियंत्रित किया जा सके। वैज्ञानिक डा.पीके शुक्ला ने बागवानों को बताया कि फल भेदक कीटों पर नियंत्रण के लिए अमरूद के फल आते ही कीटनाशक का प्रयोग कर दिया जाए। लापरवाही की वजह से अमरूद के पचास फीसदी फल खराब हो जाते हैं।
क्या है फोरोमेन ट्रैप
फल मक्खी की मादा कीट अमरूद के अंदर अंडे देती है। जिससे फल तेजी से सडऩे लगते हैं। फल सडऩे से कीटों की संख्या तेजी से बढ़ती है। ऐसे में फल मक्खी की जनसंख्या नियंत्रित करने के लिए फोरमेन ट्रैप का इस्तेमाल किया जाता है। यह एक विशेष डिब्बा होता है। जिसमें फल मक्खी की मादा की गंध लगाई जाती है। जोकि मोम जैसा पदार्थ होता है। इसकी महक से फल मक्खी का नर कीट डिब्बे में आकर फंस जाता है। अंदर मादा मक्खी नहीं होती है। डिब्बे में कुछ दिनों बाद नर मक्खी मर जाती है।
प्रयागराज में तीन प्रजातियों का अमरूद बड़े पैमाने पर होता है। इसमें एप्पल कलर अमरूद, सफेदा अमरूद और सुरखा अमरूद की प्रजाति प्रसिद्ध है। फल मक्खी और फ्रूट बोरर कीट की वजह से तीनों प्रजातियां प्रभावित हो रही हैं। तीनों में से एप्पल कलर अमरूद और सफेदा अमरूद की पैदावार ज्यादा होती है। इसके अलावा ललित, पंत प्रभात, धवल और श्वेता प्रजाति के भी अमरूद की पैदावार है। 1200 हेक्टयेर में होती है अमरूद की पैदावार
2 हजार परिवार जुड़े हैं अमरूद की बागवानी से
50 करोड़ से ज्यादा का है अमरूद का कारोबार
7 प्रजातियों के अमरूद की है पैदावार
3 प्रजाति एप्पल कलर, सफेदा और सुरखा की है ज्यादा डिमांड
सेब को मात दे देता है अमरूद
कहते हैं कि वक्त सबका आता है। ऐसे में साल के बारहों महीने बाजार में रहने वाले सेब को अमरूद मात दे देता है। दिसंबर, जनवरी में एप्पल अमरूद और सुरखा का दाम सौ से 140 रुपये तक पहुंच जाता है। जबकि सेब अस्सी रुपये के आसपास ही रहता है।
कीटों के आक्रमण की वजह से अमरूद की पचास फीसदी अमरूद खराब हो जाता है। बागवानों को जागरुक होना चाहिए। बागवानों को बताया गया है कि वे अमरूद को बचाने के लिए फोरमेन ट्रैप का इस्तेमाल करें। साथ ही फ्रूट बैग भी लगाएं। ताकि कीटों से अमरूद को ज्यादा नुकसान न पहुंचे।
डा.कृष्ण मोहन चौधरी, उपनिदेशक उद्यान